क्या है ETIM,जिससे डरा चीन, तालिबान से मांग रहा है मदद

दुनिया
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Aug 27, 2021 | 11:12 IST

अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता ने चीन की मुश्किलेंं बढ़ा दी हैं। उसे लगता है कि कहीं तालिबान ETIM को समर्थन न देने लगे। क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो उसके शिनचियांग इलाके में समस्याएं खड़ी हो जाएंगी

China President Xi-jinping
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग  |  तस्वीर साभार: AP
मुख्य बातें
  • चीन का शिनचियांग का इलाका अफगानिस्तान की सीमा से जुड़ा हुआ है और वहां उइगर समुदाय के लोग बड़ी तादाद में रहते हैं।
  • उइगर मूल रुप से मुस्लिम धर्म को मानने वाले हैं और चीन उन पर काफी सख्ती करता रहा है।
  • ETIM शिनचियांग इलाके को चीन से स्वतंत्र कराना चाहता है और उसके लिए वहां आतंकी गतिविधियां करते रहता है।

नई दिल्ली: एक तरफ जहां पूरी दुनिया तालिबान के साथ संबंधो को लेकर आशंका में है, वहीं अफगानिस्तान में चीन के राजदूत वांग यू ने  बीते मंगलवार को तालिबान के प्रतिनिधि अब्दुल सलाम हनाफी से मुलाकात की है। हनाफी कतर में तालिबान के राजनीतिक मामलों के उप प्रमुख हैं। तालिबान के एक प्रवक्ता ने यह जानकारी दी है। इस बैठक में चीन के दूतावास, डिप्लोमैट और अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति पर चर्चा की गई है। इसके अलावा पिछले महीने भी तालिबान प्रतिनिधियों से ईस्टर्न तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) के खतरे को लेकर बातचीत कर चुका है। साथ ही अमेरिका से भी अपील कर चुका है कि वह ईटीआईएम पर लगाम लगाने की दिशा में कदम उठाए। ऐसे में सवाल उठता है कि ईटीआईएम से चीन को किस बात का खतरा है। असल में ईटीआईएम चीन के शिनचियांग इलाके को स्वतंत्र कराकर ईस्ट तुर्कीस्तान बनाना चाहता है। जो कि 1988 से अपनी गतिविधयों को अंजाम दे रहा है। 

अफगानिस्तान मामलों पर नजर रखने वाले मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के रिसर्च फेलो विशाल चंद्रा ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से ईटीआईएम (ETIM) के तालिबान से रिश्ते और चीन को उससे होने वाले खतरे पर बातचीत की है। आइए जानते हैं कि क्या है ईटीआईएम और वह कैसे काम करता है और चीन के लिए वह खतरा क्यों हैं..

क्यों चीन को ETIM का डर

अफगानिस्तान की चीन के साथ एक छोटी सी सीमा एक पतले कॉरिडोर के रुप में जुड़ती है। जो कि चीन के शिनचियांग इलाके को जोड़ता है। जो कि अफगानिस्तान के बदख्शा से जुड़ा है। यह वह इलाका है जहां पर उइगर समुदाय के लोग रहते हैं। जो मूल रुप से मुस्लिम धर्म मानने वाले लोग हैं। इस इलाके में ताजिकिस्तान से भी पहुंचा जा सकता है। उइगर लोगों पर चीन ने काफी शिकंजा कसा हुआ है। यहां के लोग अपनी भाषा का इस्तेमाल नहीं कर सकते, स्कूल नहीं खोल सकते, ईस्लाम के रीति-रिवाज का खुलकर पालन नहीं कर सकते हैं। चीन की इस दमनकारी नीति के कारण ईटीआईएम वहां पर मूवमेंट चला रहा है। ईटीआईएम मूल रुप से उइगर लोगों का संगठन हैं। चीन में वह आतंकी हमले करते रहता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने ईटीआईएम को 2002 से आतंकी संगठन घोषित कर रखा है। लेकिन अमेरिका ने साल 2020 में डोनॉल्ड ट्रंप के समय इसे  अमेरिका द्वारा बनाई गई आतंकियों की लिस्ट से बाहर कर दिया था।

इस तरह की भी खबरें आती रहती है कि चीन ने वहां पर स्पेशल कैंप बना कर रखे हैं। उनमें कई हजारों उइगरों को रखा हुआ है। ऐसे में नब्बे के दशके से वहां ईटीआईएम के जरिए आतंकी घटनाएं होती रहती हैं। वह चीन के के लोगों  पर हमले करते हैं। लेकिन चीन की सख्ती की वजह से ईटीआईएम के ज्यादातर आतंकवादी चीन के बाहर हैं। वह अफगानिस्तान, पाकिस्तान और मध्य एशिया में छुपे हुए हैं। उस इलाके में पहाड़ियां, दर्रे हैं। इस वजह से ईटीआईएम के लोगों के लिए उत्तरी अफगानिस्तान शरण लेने की एक मुफीद जगह है।

इसके अलावा जब 2014 में वजीरिस्तान में पाकिस्तान की सेना ने  विदेशी आतंकियों के खिलाफ एक आपरेशन किया तो ईटीआईएम के बहुत से आतंकवादी अफगानिस्तान में छिप गए थे। जिसमें ईटीआईएम के आतंकी भी शामिल थे। हालांकि अभी तालिबान मौके की नजाकत को देखते हुए सबको यही भरोसा दिला रहा है, कि वह अपनी जमीन से किसी देश के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को नहीं होने देगा। अशरफ गनी सरकार ने भी चीन के साथ ईटीआईएम को रोकने के लिए काफी काम किया था। लेकिन चिंता यह है कि तालिबान अगर ईटीआईएम को समर्थन कर देता है तो शिनचियांग में उसके लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। क्योंकि अब तालिबान सत्ता में है।

सीपीईसी प्रोजेक्ट पर जोखिम बढ़ा

चीन की दूसरी चिंता  चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को लेकर है। यह प्रोजेक्ट चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का फ्लैगशिप प्रोजेक्ट है। ऐसे में वह इस प्रोजेक्ट में कोई रुकावट नहीं चाहते हैं। क्योंकि अगर इस पर असर पड़ेगा तो दूसरे प्रोजेक्ट पर असर होगा। चीन को यह बात पता है कि जब हमले होते हैं तो आतंकवादी डूरंड लाइन पार करके अफगानिस्तान चले जाते हैं। ऐसे में अगर तालिबान समर्थन देंगे तो इस प्रोजेक्ट पर भी असर होगा। इसके अलावा तहरीक-ए-तालिबान के साथ अलकायदा के बहुत मजबूत संबंध है। जो आने वाले दिनों में दूसरी समस्या खड़ी कर सकते हैं।

तालिबान हथियार के रुप में कर सकता है इस्तेमाल

एक बात हमें और समझनी चाहिए कि फरवरी 2020 में अमेरिका और तालिबान का जो समझौता हुआ है उसमें यही कहा गया है कि तालिबान अफगानिस्तान की जमीन को अमेरिका के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देंगे। लेकिन इसमें यह नहीं कहा गया है कि वह आतंकियों को शरण नहीं देंगे। तो ऐसा हो सकता है कि तालिबान कुछ दिनों तक इन आतंकी संगठनों को थोड़ा दबा कर रखेंगे। क्योंकि उन्हें अभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता चाहिए। लेकिन अगर उन्हें मान्यता नहीं मिलती है तो तालिबान फिर इन्हीं आतंकियों को अपना हथियार बना सकता है। जैसा कि उसने 90 की दशक में  किया था।

कहां से मिलती है फंडिंग

देखिए जब 1979 में सोवियत संघ अफगानिस्तान पहुंचा तो उसके बाद से अमेरिका, पाकिस्तान, सउदी अरब, चीन ने मिलकर सोवियत सेना के खिलाफ जेहाद शुरू किया। उस समय ऐसे कई चैनल बने जिसके तहत इन आतंकी संगठनों के पास पैसा आने लगा। इसके अलावा पाकिस्तान में डूरंड लाइन के पास कई मदरसें हैं, जहां से पैसा आता है। ईटीआईएम को अलकायदा, हथियारों की तस्करी और   कई चरमपंथी संगठनों से फंडिंग मिलती है। साथ ही दूसरे देशों में मौजूद उइगर भी फंडिंग कर सकते हैं। दूसरी बात यह भी समझनी चाहिए कि इन्हें बहुत फंडिंग नहीं चाहिए। उन्हें लोगों की जरुरत होती है। अभी तक वह बड़े आतंकी हमले नहीं कर पाए हैं। लेकिन चीन को डर है कि कहीं कोई देश ईटीआईएम को सपोर्ट करना न शुरू कर दें। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो उसके लिए नई समस्या खड़ी हो जाएगी।

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