दुनिया का सबसे बड़ा सवाल- पुतिन यूक्रेन पर करेंगे हमला ! भारत पर क्या होगा असर

Russia-Ukraine Dispute: यूक्रेन पर रूस के हमले के खतरे को देखते हुए, युद्ध के बादल मंडराने लगे हैं। जिसका भारत पर भी असर पड़ सकता है।

Russia Ukraine Dispute
रूस यू्क्रेन पर हमला करता है तो चीन को मौका मिलेगा  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • यूक्रेन की सीमा पर रूस ने एक लाख सैनिक तैनात कर रखे हैं।
  • 1991 में सोवियत संघ से अलग होने के बाद यूक्रेन की पश्चिमी यूरोप के देशों से नजदीकियां बढ़ी हैं।
  • रूस को डर है कि यूक्रेन नॉटो में शामिल हो सकता है। ऐसा होने पर उसकी सीमाएं नॉटो देश से मिल जाएंगी।

नई दिल्ली: भले ही भारत में पांच राज्यों के चुनाव का पारा चढ़ा हुआ हो लेकिन इस समय पूरी दुनिया की नजर रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन पर टिकी हुई है। क्योंकि रूस ने यूक्रेन की सीमा पर एक लाख से ज्यादा सैनिक तैनात कर रखे हैं। इसे देखते हुए अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस,चीन सबको यही डर हैं कि क्या पुतिन यूक्रेन पर हमला करने वाले हैं। अगर ऐसा होता है तो दुनिया की राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव आएगा और भारत भी उससे अछूता नहीं रहने वाला है। 

मामला कितना संवेदनशील है, इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि हाल ही में भारत आए जर्मनी के नौसेना प्रमुख वाइस एडमिरल के एचिम शोनबैच को रूस पर दिए एक बयान से इस्तीफा तक देना पड़ गया। 

जर्मनी के नौ-सेना प्रमुख ने क्या कह दिया

 दिल्ली में 21 जनवरी को एक कार्यक्रम में एचिम शोनबैच ने मास्को की उक्रेन की राजधानी कीव पर हमले की योजना को बेकार का काम करार देते हुए कहा कि वह रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का बहुत सम्मान करते हैं। पुतिन यूक्रेन पर हमला केवल इसलिए करना चाहते हैं कि वह यूरोपीय यूनियन की एकता को तोड़ना चाहते हैं। शोनबैच ने जर्मनी और भारत को रूस की जरूरत बताया था। कहा था कि हम रूस के साथ मिलकर चीन से लड़ सकते हैं। वहीं यूक्रेन के नाटो में शामिल होने के सवाल पर उन्होंने कहा था कि उससे कुछ फायदा नहीं होने वाला है। 

रूस, यूक्रेन पर क्यों हमला करना चाहता है

असल में यूक्रेन कभी रूस का हिस्सा हुआ करता था। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन को स्वतंत्रता मिल गई, लेकिन उसके बावजूद रूस उसे अपनी छत्रछाया में रखना चाहता था और यूक्रेन पश्चिमी देशों से अपने अपनी नजदीकियां बढ़ाना चाहता था।  2010 में विक्टर यानूकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति बनने के बाद फिर से यूक्रेन की रूस से नजदीकियां बढ़ानी  शुरू की। और इसी के तहत उन्होंने यूरोपीय संघ में शामिल होने से इंकार कर दिया। लेकिन इस फैसले के बाद उनका स्थानीय स्तर पर विरोध शुरू हो गया और 2014 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। उसके बाद रूस ने 2015 में यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। और 2015 में फ्रांस और जर्मनी की मध्यस्थता से युद्ध विराम हुआ। लेकिन रूस को आशंका है कि यूक्रेन नॉटो का सदस्य बन जाएगा। अगर ऐसा होता है तो नॉटो की सीमाएं रूस तक पहुंच जाएंगी। 

साथ ही रूस का आरोप है कि 2015 में हुए युद्ध विराम समझौता का पालन नहीं हो रहा है।  उसे यह भी लगता है कि पश्चिमी यूरोप की तरफ झुका यूक्रेन उसके सुरक्षा और सामरिक हितों के लिए खतरा है।  इस बीच यूक्रेन का दावा है कि रूस ने उसकी सीमा पर एक लाख सैनिक तैनात कर रखे हैं। इन चुनौती पूर्ण परिस्थितियों में नॉटो का प्रमुख होने के नाते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूस को चेतावनी दी है कि अगर वह यूक्रेन पर हमला करता है तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। ऐसा ही चेतावनी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भी दे चुके हैं। हालांकि रूस का कहना है कि वह कोई हमला नहीं करेगा।

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इस संघर्ष से भारत पर क्या होगा असर

असल में अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता है तो नॉटो के रवैये से साफ है कि उस पर पश्चिमी देश प्रतिबंध लगाएंगे। ऐसे में भारत के सामने दोहरी चुनौती खड़ी हो सकती है। भारत के रूस और नॉटो देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी से बेहतर संबंध हैं। और उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती चीन है। रूस पर किसी तरह की सख्ती होने में साफ है कि चीन, रूस के पक्ष में ही खड़ा होगा। रूस की चीन पर निर्भरता बढ़ने पर, वह रूस से भारत को हथियारों की सप्लाई पर असर डलवा सकता है। भारत रूस से अपने हथियारों की 50 फीसदी से ज्यादा जरूरतें पूरी करता है। हाल ही में भारत ने अमेरिकी दबाव के बावजूद रूस से भारत ने एस-400 मिसाइल सिस्टम खरीदा था।

हालांकि भारत अभी  क्रीमिया के मसले पर रूस के साथ ही खड़ा नजर आया है। चाहे 2015 में हुआ कब्जा हो या फिर 2020 में यूक्रेन द्वारा क्रीमिया में मानवाधिकारों को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में लाए गए प्रस्ताव का मामला हो। भारत रूस के साथ खड़ा रहा है। लेकिन परेशानी यह है कि अगर रूस पर हमले के बाद प्रतिबंध लगते हैं तो वह क्या करेगा। क्योंकि उसके अमेरिका और यूरोपीय देशों से भी बेहतर संबंध हैं। ऐसी स्थिति में भारत के लिए निश्चित तौर पर नई चुनौती खड़ी हो सकती है।

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