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गैंगस्टर अबू सलेम की याचिका पर 11 जुलाई को फैसला, आजीवन कारावास को सुप्रीम कोर्ट में दी थी चुनौती

Updated Jul 09, 2022 | 23:47 IST

सुप्रीम कोर्ट वर्ष 1993 के मुंबई बम धमाकों के गुनहगार अबू सलेम की उस याचिका पर 11 जुलाई को फैसला सुनाएगा, जिसमें उसने उसे सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को चुनौती दी गई है। 

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तस्वीर साभार:&nbspANI
1993 के मुंबई बम धमाकों के गुनहगार अबू सलेम

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट वर्ष 1993 के मुंबई बम धमाकों के गुनहगार अबू सलेम की उस याचिका पर 11 जुलाई को फैसला सुनाएगा, जिसमें उसने उसे सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को चुनौती दी गई है। सलेम की याचिका में आजीवन कारावास को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि वर्ष 2002 में प्रत्यर्पण के समय भारत की ओर से पुर्तगाल को दिये गये आश्वासन के मुताबिक उसे दी गई सजा 25 साल से अधिक नहीं हो सकती।
शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई 11 जुलाई की वाद सूची के अनुसार न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ उस दिन फैसला सुनाएगी।

शीर्ष अदालत ने पांच मई को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें केंद्र ने तर्क दिया था कि न्यायपालिका वर्ष 2002 में सलेम के प्रत्यर्पण के दौरान पुर्तगाल सरकार को दिए गए सत्यनिष्ठ संप्रभु आश्वासन से स्वतंत्र है और यह कार्यपालिका पर निर्भर है कि वह इस पर उचित स्तर पर फैसला ले।

केंद्र की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने अदालत से कहा था कि सरकार तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा पुर्तगाल सरकार को दिए गए सत्यनिष्ठ संप्रभु आश्वासन से बंधी है और वह उचित समय पर इसका पालन करेगी। उन्होंने तर्क दिया था कि अदालत इस आश्वासन से बाध्य नहीं है और वह कानून के अनुसार आदेश पारित कर सकती है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका पर सत्यनिष्ठ संप्रभु आश्वासन नहीं थोपा जा सकता। कार्यपालिका इस पर उचित स्तर पर कार्रवाई करेगी। हम इस आश्वासन से बंधे हैं, लेकिन न्यायपालिका स्वतंत्र है, वह कानून के अनुसार आगे बढ़ सकती है।

पीठ ने नटराज से कहा था कि सलेम का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ऋषि मल्होत्रा ​​की दलील थी कि अदालत को इस सत्यनिष्ठ आश्वासन पर फैसला करना चाहिए और उसकी सजा को उम्रकैद से घटाकर 25 साल करना चाहिए या सरकार को निर्देश देना चाहिए कि वह आश्वासन पर फैसला करे।
सलेम को यहां की अदालत के आदेश पर जारी रेड कॉर्नर नोटिस के बाद पुर्तगाल में गिरफ्तार किया गया था। नटराज ने तर्क दिया था कि इस आशय के निर्णय हैं कि आजीवन कारावास का अर्थ है संपूर्ण जीवन और इसमें कोई छूट नहीं हो सकती।

मल्होत्रा ने तर्क दिया था कि आश्वासन स्पष्ट शब्दों में था कि अगर भारत में मुकदमे के लिए पुर्तगाल द्वारा सलेम को प्रत्यर्पित किया जाता है, तो उसे मौत या 25 साल से अधिक कारावास की सजा नहीं दी जाएगी। पच्चीस फरवरी, 2015 को एक विशेष टाडा अदालत ने सलेम को 1995 में मुंबई के बिल्डर प्रदीप जैन की उसके ड्राइवर मेहंदी हसन के साथ हत्या के एक अन्य मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

वर्ष 1993 के मुंबई सिलसिलेवार बम धमाकों के दोषी सलेम को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 11 नवंबर, 2005 को पुर्तगाल से प्रत्यर्पित किया गया था।
जून 2017 में सलेम को दोषी ठहराया गया और बाद में मुंबई में 1993 के सिलसिलेवार बम धमाकों में उसकी भूमिका के लिए उम्रकैद की सजा सुनाई गई। बारह मार्च, 1993 को देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई में लगभग दो घंटे में एक के बाद एक 12 विस्फोट किये गये। इस हमले में 257 लोग मारे गए और 713 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे।