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शेर ए पंजाब लाला लाजपत के जीवन से जुड़ी कुछ सुनी-अनसुनी बातें, जानें क्यों कहा जाता था उन्हें पंजाब केसरी

Updated Jan 28, 2022 | 07:18 IST

आज लाला लाजपत राय की 156वीं जयंती है। अपनी निडरता, बेदाग अखंडता के कारण आज भी वह करोड़ो युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं। उन्होंने महर्षि स्वामी दयानंद के साथ मिलकर आर्य समाज की स्थापना की...

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लाला लाजपत राय का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में शुमार होता है।
मुख्य बातें
  • आज है लाला लाजपत राय की 156वीं जयंती।
  • एक राष्ट्रवादी राजनेता, वकील और लेखक के रूप में देश को दिया था अपना अमूल्य योगदान
  • पंजाब मे लाला लाजपत राय की लोकप्रियता देख अंग्रेजी हुकूमत डगमगा उठी थी

नई दिल्ली: लाला लाजपत राय का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में शुमार होता है। उन्हें शेर ए पंजाब कहा जाता है। उन्होंने ना केवल भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई बल्कि एक आदर्श नेता रूप में अपनी पहचान बनाई। आज लाला लाजपत राय की 156वीं जयंती है। आइए उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बाते जानते हैं, जिसे शायद ही आप जानते होंगे।

उन्होंने एक राष्ट्रवादी राजनेता, वकील और लेखक के रूप में देश को अपना अमूल्य योगदान दिया। आर्य समाज से प्रभावित होकर उन्होंने पूरे देश में इसका प्रचार प्रसार किया। पंजाब में उनके कार्यों की वजह से उन्हें पंजाब केसरी की उपाधि मिली।

लाला लाजपत राय ने स्वामी दयानंद के साथ मिलकर आर्य समाज की स्थापना की। वो एक बैंकर भी थे उन्होंने देश को एक स्वदेशी बैंक दिया, जिसे आज पंजाब नेशनल बैंक के नाम से जाना जाता है। अपनी निडरता, बेदाग अखंडता की वजह से आज भी वह करोड़ो युवाओं के प्रेरणा स्रोत हैं।

ब्रिटिश राज्य के विरोध की वजह से लाला लाजपत राय बर्मा की जेल में भी बंद रहे। जेल से वापस आने के बाद 1907 में उन्होंने अमेरिका की यात्रा की और फिर प्रथम विश्व युद्ध के दौरान वापस लौटे।

जीवन परिचय

28 जनवरी, 1856 को लाला राजपत राय का जन्म पंजाब के मोंगा जिले में हुआ था। उनके पिता राधाकृष्ण अग्रवाल पेशे से एक टीचर और उर्दू के प्रसिद्ध लेखक थे। उनकी माता का नाम गुलाब देवी था जो एक गृहिणी थी। शुरूआती दिनों से ही वह एक मेधावी छात्र रहे। अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत की पढ़ाई की और हिसार से वकालत शुरू की।

लेकिन अंग्रेजों की न्याय व्यवस्था देख उनके मन में रोष पैदा हो गया। यही कारण था कि उन्होंने वकालत छोड़ बैंकिंग की तरफ रुख किया और अपनी आजीविका चलाने के लिए बैंकों का नवाचार करना शुरू किया।

बाल गंगाधर तिलक के बाद वो उन शुरुआती नेताओं में से एक थे जिन्होंने पूर्ण स्वराज्य की मांग की। 1905 में बंगाल विभाजन के बाद उन्होंने सुरेंद्रनाथ बैनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हांथ मिलाया और अंग्रेजों के इस फैसले का जमकर विरोध किया। देशभर में स्वदेशी आंदोलन को आगे बढ़ाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई। उनकी लोकप्रियता देख अंग्रेजों के पैर डगमगाने लगे थे। यही कारण था कि लाला लाजपत राय को गिरफ्तार कर लिया गया और बर्मा के जेल में बंद कर दिया गया।

पंजाब का शेर नाम से मशहूर

ब्रिटिश राज में लाला लाजपत राय की बात को पंजाब में पत्थर की लकीर माना जाता था। पंजाब में उनके प्रभाव को देखते हुए लोग उन्हें पंजाब केशरी यानी पंजाब का शेर कहते थे। पंजाब में ब्रिटिश राज के विरोध का झंडा लाला लाजपत राय ने उठाया। 

17 नवंबर 1928 को दिल का दौरा पड़ने के कारण लाला लाजपत राय का निधन हो गया। लाला लाजपत राय के निधन पर पूरे देश में शोक की लहर छा गई और पूरे देश में ब्रिटिश राज के खिलाफ आक्रोष पैदा हो गया। महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने लाल साहब की मौत का बदला लेने के लिए अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स को 17 दिसंबर 1928 को गोली से उड़ा दिया था।

पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अहम भूमिका

सन् 1914-1920 तक लाला लाजपत राय को भारत आने की इजाजत नहीं दी गई थी। अंग्रेज सरकार जानती थी कि लाल बाल और पाल इतने प्रभावी हैं कि उनकी बातें जनता के लिए पत्थर की लकीर हैं। इसलिए अंग्रेज सरकार ने उन्हें भारत वापस नहीं आने दिया। उन्होंने अमेरिका में रहकर यंग इंडिया पत्रिका का संपादन और प्रकाशन किया और न्यूयॉर्क में इंडियन इनफॉरमेशन ब्यूरो की स्थापना की।