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UP Assembly Election 2002: पहले चरण की ये हैं 5 ह़ॉट सीटें, तय करेंगी किस पार्टी की बहेगी हवा

Updated Feb 10, 2022 | 09:54 IST

UP Assembly Election 2022: पहले चरण में 58 सीटों पर उम्मीदवारों की किस्मत दांव पर है। पिछली बार भाजपा ने 53 सीटें जीती थीं। इस बार सपा-रालोद गठबंधन उसे बड़ी चुनौती दे रहा है।

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यूपी चुनाव: पहले चरण की टॉप-5 सीटें
मुख्य बातें
  • पश्चिमी यूपी में जाट मतदाता अहम भूमिका निभाता है। किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा इसी इलाके पर असर है।
  • मुजफ्फरनगर किसान आंदोलन के दौरान महापंचायतों का गवाह रहा है।
  • भाजपा ने कैराना से पलायन को बड़ा मुद्दा फिर से बनाया है।

UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश में पहले चरण की वोटिंग (UP Election First Phase Voting) जारी है । इसके तहत राज्य की कुल 58 सीटों पर वोटर अपने अधिकार का उपयोग कर रहे हैं। इन चुनावों में भाजपा (BJP), सपा-रालोद गठबंधन (SP-RLD Alliance), एआईएमआईएम (AIMIM), आजाद समाज पार्टी सहित प्रमुख दलों के उम्मीदवार मैदान में है। तीन कृषि कानूनों के वापस लिए जाने के बाद यह पहला चुनाव है। और पश्चिमी यूपी (Western UP) में सबसे ज्यादा किसान आंदोलन  का असर रहा था। ऐसे में पहले चरण  की कई सीटें हैं जिन पर सबकी नजर रहेगी। ऐसी ही 5 सीटों के बारे में हम आपको बता रहे हैं।

कैराना 

शामली जिले में आने वाली कैराना विधानसभा सीट उत्तर प्रदेश की राजनीति का बेहद अहम केंद्र रही है। भाजपा इस इलाके से हिंदुओं को पलायन का बड़ा मुद्दा बनाती रही है। 2022 के चुनावों में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ से लेकर गृहमंत्री अमित शाह यहां का दौरा कर चुके हैं। और पलायन के मुद्दे को भी उठाया है। ऐ2017 में प्रदेश में भारी बहुमत से जीतने वाला भाजपा यहां पर जीत हासिल नहीं कर पाई थी। इस बार भाजपा और सपा ने अपने पुराने प्रत्याशियों पर ही दांव लगाया है। भाजपा ने जहां पार्टी के वरिष्ठ नेता रह चुके हुकूम सिंह  की बेटी मृगांका सिंह को मैदान में उतारा है, वहीं समाजवादी पार्टी ने मौजूदा विधायक नाहिद हसन पर फिर से भरोसा जताया है। वहीं बसपा ने यहां से राजेंद्र सिंह को उम्मीदवार बनाया है। जबकि कांग्रेस से अखलाक को टिकट दिया गया है।

मथुरा

चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा की पूरी कोशिश रही है कि वह अयोध्या-काशी की तरह मथुरा को मुद्दा बनाकर वोटरों  को लुभा सके। इस रणनीति के जरिए पार्टी यादव वोटरों में भी सेंध लगाना चाहती है। इस सीट पर 2002 से 2017 तक कांग्रेस का कब्जा रहा है। हालांकि 2017 के चुनाव में श्रीकांत शर्मा ने यह सीट जीतकर बीजेपी की झोली में डाल दी थी। मंत्री के रूप में इस बार उनके सामने सीट बचाने की चुनौती है। कांग्रेस ने  फिर से प्रदीप माथुर को टिकट दिया है। जबकि बसपा ने जगजीत चौधरी और सपा-आरएलडी गठबंधन ने पूर्व विधायक देवेंद्र अग्रवाल को मैदान में उतारा है।

मुजफ्फरनगर 

किसान आंदोलन की वजह से मुजफ्फरनगर सीट पर इस बार सबकी नजर है। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का यह गृह जिला है। उनका गांव सिसौली भी इसी जिले में आता है। किसान आंदोलन की रणनीति और महापंचायतों का  यह जिला गवाह रहा है। पिछली बार यह सीट  भाजपा के खाते में थी लेकिन किसान आंदोलन के बाद पार्टी क्या अपनी सीट बचा पाएगी। इसी पर सबकी नजर है। इस बार भाजपा  ने विधायक कपिल देव अग्रवाल पर फिर से भरोसा दिखाया है। जबकि सपा-रालोद गठबंधन ने सौरभ स्वरूप को प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस से पंडित सुबोध और बसपा से पुष्कर पाल यहां से चुनावी मैदान में हैं।  

जेवर 

जेवर विधानसभा सीट पर भी इस बार सबकी नजर रहेगी। चुनावों से पहले जिस तरह से इंटरेशनल एयरपोर्ट के शिलान्यास के भाजपा ने वोटरों को लुभाने की कोशिश की है। उससे यह सीट चर्चा में हैं। यह सीट पर अवतार सिंह भड़ाना द्वारा भाजपा को छोड़ सपा-आरएलडी गठबंधन हाथ थामने से भी सबकी नजर में हैं। यहां उनका भाजपा विधायक धीरेंद्र सिंह से मुकाबला है। इस  सीट पर बसपा से नरेंद्र भाटी और कांग्रेस ने मनोज चौधरी को मैदान में उतारा है। इसके अलावा इस सीट गुर्जर-राजपूत समुदाय के बीच सम्राज मिहिर भोज की मूर्ति को लेकर चल रहे विवाद का भी असर दिख सकता है।

आगरा ग्रामीण 

इस बार आगरा ग्रामीण सीट भी कई मायने में खास है। भाजपा ने इस बार दलित चेहरे के रूप में पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को टिकट दिया है।  भाजपा की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उन्हें, मायावती का विकल्प बनाने की कोशिश है। जिससे वह दलित वोट को साध सके। ऐसे में उनके ऊपर न केवल अपनी जीत का दबाव है बल्कि दूसरे क्षेत्रों में भी भाजपा को जिताने का भी दबाव है।सपा गठबंधन से महेश कुमार यादव को टिकट दिया गया है। वहीं कांग्रेस से उपेंद्र सिंह और बसपा से किरण प्रभा चुनावी मैदान में हैं।