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अयोध्या से अलग है ज्ञानवापी मस्जिद विवाद ! जानें 31 साल पुराने विशेष कानून से कनेक्शन

Updated May 09, 2022 | 14:51 IST

Gyanvapi Masjid Dispute: ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का विवाद, अयोध्या मामले से दो मायने में बेहद अलग है। ऐसे में देखना यह है कि आने वाले समय में कोर्ट इस मसले को किस नजरिए से देखता है।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
ज्ञानवापी मामले में अब आगे क्या
मुख्य बातें
  • अयोध्या में केवल मस्जिद मौजूद थी। और हिंदू पक्ष का दावा था कि राम मंदिर को ध्वस्त कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी।
  • ज्ञानवापी मामले में मस्जिद और मंदिर दोनों मौजूद हैं।
  • उपासना के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत 15 अगस्त 1947 की स्थिति में मौजूद किसी उपासना स्थल में बदलाव नहीं हो सकता है।

Gyanvapi Masjid And Kashi Vishwanath Temple Dispute: बनारस में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का मामला अब तूल पकड़ते जा रहा है। एक तरफ जहां सर्वे का काम केवल एक ही दिन हो पाया, वहीं अब उसकी रिपोर्ट को कोर्ट को सौंपने का दिन भी नजदीक सामने आ गया है। कोर्ट ने 10 मई तक सर्वे रिपोर्ट सौंपने का कहा था। लेकिन इस बीच कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाया है कि वह अयोध्या की तरह काशी मुद्दे को भी उछालना चाहती है, जिससे कि वह राजनीति कर सके।

वहीं इस मसले पर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि कोर्ट द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वे का आदेश उपासना के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का उल्लंघन है। ओवैसी ने यह भी कहा कि भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को अदालत को बताना चाहिए था कि संसद ने उपासना के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को पारित किया था। इसमें कहा गया है कि कोई भी धार्मिक स्थल, 15 अगस्त 1947 को जिस अस्तित्व में था, उसमें छेड़छाड़ नहीं किया जाएगा। 

क्या है उपासना के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम

ऐसे में पहला सवाल यही उठता है कि उपासना के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 क्या है ? यह कानून 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय में अस्तित्तव में आया। इसके अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद किसी भी धर्म के उपासना स्थल को किसी दूसरे धर्म के उपासना स्थल में नहीं परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। अगर कोई ऐसा करने की कोशिश करता है तो उसे एक से तीन साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है। इसी के आधार पर ओवैसी ज्ञाननापी मस्जिद परिसर में फोटोग्राफी की कार्रवाई पर सवाल उठा रहे हैं।

असल में यह वह दौर था जब देश में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया था।  भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सितंबर 1990 में सोमनाथ से रथयात्रा निकाली। राम मंदिर आंदोलन के बढ़ते प्रभाव के चलते अयोध्या के साथ ही कई और मंदिर-मस्जिद विवाद उठने लगे थे। और उसके पहले 1984 में दिल्ली में हुई एक धर्म संसद में अयोध्या,मथुरा, काशी पर दावा करने की मांग की गई थी। इन विवादों पर विराम लगाने के लिए ही नरसिम्हा राव सरकार ये कानून लेकर आई थी। 

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अयोध्या से कैसे अलग है ज्ञानवापी विवाद

असल में अयोध्या और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद दो अहम बातों में अलग है। पहली बात तो यह है  कि अयोध्या में केवल मस्जिद मौजूद थी। और हिंदू पक्ष द्वारा यह दावा किया गया था कि वहां पर मौजूद राम मंदिर को ध्वस्त कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी। जबकि ज्ञानवापी मामले में मस्जिद और मंदिर दोनों मौजूद हैं। लेकिन हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी परिसर को काशी विश्वनाथ मंदिर के हिस्से को तोड़कर बनाया गया है।

दूसरी अहम बात यह है कि अयोध्या मामला कोर्ट में आजादी के पहले से चला आ रहा था। इसलिए उस पर 1991 में बना  उपासना के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम लागू नहीं होता था। लेकिन ज्ञानवापी मामाले को लेकर 1991 के कानून को लेकर विवाद है। एक पक्ष का मानना है कि चूंकि कानून 1991 में आया और उसी साल ज्ञानवापी मामला कोर्ट में दायर हुआ। ऐसे में वह भी स्पेशल कानून के दायरे से बाहर है। वहीं दूसरे पक्ष का कहना है कि ज्ञानवापी मस्जिद भी उपासना के स्थान (विशेष प्रावधान) अधिनियम के तहत आती है। ऐसे में उसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता है।

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