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बुलेट ट्रेन से लेकर काशी तक शिंजो आबे का है नाता, चीन की गुस्ताखी पर दिया भारत का साथ

Updated Jul 08, 2022 | 14:33 IST

Shinzo Abe : काशी को क्योटो के तर्ज पर विकसित करने के समझौते से लेकर बुलेट ट्रेन परियोजना, न्यूक्लियर एनर्जी, इंडो पेसिफिक रणनीति और एक्ट ईस्ट पॉलिसी को लेकर भारत और जापान के बीच अहम समझौते हुए।

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तस्वीर साभार:&nbspBCCL
शिंजो आबे के समय भारत-जापान के संबंध नई ऊंचाई पर पहुंचे
मुख्य बातें
  • चीन के साथ डोकलाम और गलवान विवाद पर भी आबे ने भारत के पक्ष का समर्थन किया ।
  • चीन पर लगाम कसने के लिए क्वॉड को रिवाइव करने में आबे की अहम भूमिका रही है।
  • भारत में 'दो सागरों का मिलन' के नाम से आबे का दिया गया भाषण आज भी याद किया जाता है।

Shinzo Abe: जापान (Japan) के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे (Shinzo Abe) को गोली मार दी गई है। और काफी कोशिशों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका । शिंजो आबे न केवल जापान के सबसे ज्यादा लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे ह, बल्कि वह सबसे ज्यादा बार भारत आने वाले जापानी प्रधानमंत्री थे। अपने करीब 9 साल के शासन में आबे 4 बार भारत आए। साथ ही वह जापान के पहले प्रधानमंत्री थे, जो कि 2014 में गणतंत्र दिवस के मौके पर मुख्य अतिथि रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मित्रता भी इस दौरान काफी चर्चा में रही है। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi and Abe Relation) और शिंजो आबे के दौर में भारत और जापान के रिश्ते नई आयाम पर भी पहुंचे । इस दौरान काशी को क्योटो के तर्ज पर विकसित करने के समझौते से लेकर बुलेट ट्रेन परियोजना, न्यूक्लियर एनर्जी, इंडो पेसिफिक रणनीति और एक्ट ईस्ट पॉलिसी को लेकर दोनों देशों के बीच अहम समझौते हुए। इसके अलावा चीन (China) के साथ डोकलाम और गलवान विवाद (Doklam And Galwan) पर भी आबे ने भारत के पक्ष का समर्थन किया और जापान ने चीन को यथास्थिति बनाए रखने की भी नसीहत दी। 

काशी को क्योटो बनाने और बुलेट ट्रेन लाने की नींव

साल 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र ने जापान की यात्रा की थी, तो उस समय दोनों देशों के बीच काशी को क्योटो सिटी के तर्ज पर विकसित करने का समझौता हुआ था। इसके तहत जापान से काशी को स्मार्ट सिटी बनाने में अहम इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को विकसित करने के साथ-साथ उसकी ऐतिहासिक धरोहरों, कला, संस्कृति को संरक्षित करने भी मदद करने का समझौता किया गया था।

भारत में पहली बुलेट ट्रेन चलाने की नींव में आबे के कार्यकाल में रखी गई थी। इसके तहत दोनों देशों के बीच 2015 में समझौता हुआ था। समझौते के तहत अहमदाबाद से मुंबई तक बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में करीब 1.1 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसके लिए 81 फीसदी राशि जापान सरकार के सहयोग से जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (जेआईसीए) देगी। इसके अलावा टेक्निकल सपोर्ट से लेकर बुलेट ट्रेन (शिनकानसेन) की आपूर्ति भी समझौते का हिस्सा थी। भारत में पहली बुलेट ट्रेन 2026 से चलने की संभावना है।

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चीन की गुस्ताखी के समय भारत का दिया साथ

भारत और जापान की दोस्ती का मजबूत उदाहरण, चीन की नापाक हरकतों के समय दिखा। जब 2014 में चीन ने डोकलाम में विवाद शुरू किया तो भारत के साथ जापान मजबूती से खड़ा रहा, इसी तरह 2020 में गलवान घाटी के विवाद के समय भी जापान ने चीन को नसीहत दी और उससे यथास्थिति में किसी तरह की बदलाव नहीं करने की चेतावनी दी। चीन के हरकतों पर लगाम लगाने के लिए भारत के साथ एक्ट ईस्ट पॉलिसी, इंडो पेसिफिक रणनीति बनाने के साथ-साथ क्वॉड (Quad)की संकल्पना और उसे फिर रिवाइव करने में भी आबे का अहम योगदान रहा है।

भारत में उनके प्रसिद्ध भाषण ने रखी संबंधों की नई नींव

आबे जब पहली बार प्रधानमंत्री बनें तो वह अगस्त 2007 में भारत आए थे। उस समय उन्होंने भारत और जापान के संबंधों को लेकर एक अहम भाषण दिया था जिसे 'दो सागरों का मिलन' (Confluence of the Two Seas) के रूप में याद किया जाता है। कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत-जापान के संबंधों को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में उस भाषण ने नींव रखी थी। जिसके बाद NPT (Nuclear-Proliferation-Treaty) का सदस्य नहीं होने के बाद भी भारत के साथ सिविल न्यूक्लियर समझौते से लेकर विदेश और रक्षा मंत्री के साथ (2+2) मीटिंग, रक्षा उपकरणों की तकनीकी ट्रांसफर करने के समझौते से लेकर दोनों देशों के बीच कई अहम समझौते हुए। जिसने भारत के लिए दुनिया के कई देशों के साथ संबंधों को नए सिरे से मजबूत करने में मदद की। मसलन साल 2016 में भारत के साथ सिविल न्यूक्लियर समझौते ने अमेरिका और फ्रांस के साथ न्यूक्लियर समझौते करनेका रास्ता खोला। 

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