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[PICS] गणेश चतुर्थी 22 अगस्त को, विराजेंगे गजानन, कोरोना के चलते मूर्तियों पर पड़ा असर

Updated Aug 13, 2020 | 16:14 IST

Ganeshotsav 2020: गणेश चतुर्थी इस साल 2020 में शनिवार, 22 अगस्त को मनाई जाएगी,इस साल कोरोना की मार के चलते गणेश भगवान की मूर्ति बनाने वालों पर भी इसका असर पड़ा है।

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गणेशोत्सव का पर्व वैसे तो पूरे देश में ही मनाया जाता है लेकिन इसकी छटा महाराष्ट्र में अलग ही होती है

Ganesh Idol Business Affected Due to Corona: कोरोना की मार से हर कोई बेहाल है जनजीवन से लेकर सभी धर्मों के त्यौहारों पर भी इसका असर साफ दिखाई दे रहा, इस दौरान जितने भी त्यौहार आए वो सभी फीके रहे चाहें वो ईद हो, नवरात्रि हो या रक्षाबंधन। अब 22 अगस्त से गणेशोत्सव शुरू होने जा रहा है, जिसकी तैयारियां महीनों पहले से होने लगती थी लोग गणेश मूर्तियों की स्थापना अपने घरों में पूजा मंडपों में करते हैं, लेकिन इस बार ऐसा होना मुश्किल लग रहा है।

गणेश चतुर्थी के त्यौहार को विनायक चतुर्थी के रूप में भी जाना जाता है, जो भगवान शिव और भगवान पार्वती के पुत्र भगवान गणेश को समर्पित सबसे महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है। गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्म का प्रतीक है और उनकी पूजा करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। 

कोरोना संकट का असर गणेश जी की मूर्तियां बनाने वाले कलाकारों पर सीधे तौर पर पड़ा है यानि मूर्तियों की डिमांड हर साल जितनी नहीं आ रही है जबकि पहले इस दौरान कई मूर्तियां बनाने के ऑर्डर पहले से ही मिल जाते थे।

गणेश जी की मूर्तियां बनाने से इन कलाकारों को आमदनी हो जाती थी लेकिन इस साल ये संभव नहीं लग रहा है क्योंकि मूर्तियों की डिमांड बेहद कम है जिसका असर उनकी आय पर पड़ा है।

गणेशोत्सव का पर्व वैसे तो पूरे देश में ही मनाया जाता है लेकिन इसकी छटा महाराष्ट्र में अलग ही होती है खासतौर पर मुंबई के गणपति पंडाल तो सभी का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं और इनकी शोभा देखने वाली होती है।

गणेशोत्सव गणेश चतुर्थी से शुरू होते हुए, 10 दिनों के बाद अनंत चतुर्दशी को समाप्त होता है अनंत चतुर्दशी के ही दिन श्री गणेश विसर्जन भी होता है, इस बार गणेश चतुर्थी 22 अगस्त से शुरु होकर 1 सितंबर तक है यानि 1 तारीख को अनंत चतुर्दशी है।

गणेशोत्सव महाराष्ट्र और गुजरात राज्य मेंगणपति विसर्जन के रूप में मनाया जाता है, गणेशोत्सव के अंतिम दिन यानि 10 वें दिन भगवान गणेश की मूर्तियों को पानी के एक बड़े स्रोत जैसे समुद्र, नदी या झील मे बड़े ही धूम-धाम से विसर्जित किया जाता है।