नई दिल्ली: दिल्ली चुनाव में सरकार बनाने के लिए आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों ने अपनी ताकत झोंक दी है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप 2015 के अपने ऐतिहासिक प्रदर्शन को दोहराना चाहती है जबकि भाजपा इस बार पिछले लोकसभा चुनाव जैसी सफलता पाने की फिराक में है। पिछले विस चुनाव में आप ने विधानसभा की 70 सीटों में से 67 सीटें जीती थीं जबकि भाजपा 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी सात सीटों पर कब्जा किया।
2013 से 2015 तक आप का चुनावी सफर
साल 2013 में दिल्ली की सत्ता पर दस्तक देने वाली आप ने अपने पहले चुनाव में 29.5 प्रतिशत वोटों के साथ 28 सीटें जीती थीं। इसके बाद दिल्ली में 2014 में लोकसभा, 2015 में विधानसभा, 2017 में एमसीडी और 2019 में लोकसभा चुनाव हो चुके हैं। 2013 के विस चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और सबसे बड़े दल के रूप में उभरी आप ने कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाई लेकिन यह सरकार महज 49 दिन चली और इसक दो साल बाद 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की पार्टी ने प्रचंड जीत दर्ज की।
बीजेपी-कांग्रेस की करारी हार से फायदे में रही आप
दरअसल, 2015 के विधानसभा चुनाव में आप पोर्टी को जो ऐतिहासिक जीत मिली उसके पीछे कांग्रेस सहित अन्य दलों का फीका प्रदर्शन रहा। इस चुनाव में कांग्रेस के वोटबैंक का एक बड़ा हिस्सा केजरीवाल की पार्टी से जुड़ गया। कुछ ऐसा ही हाल अन्य छोटे एवं निर्दलीय उम्मीदवारों का रहा। 2015 के चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 15.7 से घटकर 9.7 और अन्य का 21.8 से 3.7 प्रतिशत पर आ गया। जबकि भाजपा के वोट प्रतिशत में कुछ खास अंतर नहीं आया और वह 33 प्रतिशत के आसपास बना रहा।
सर्वें में आप को दूसरे दलों पर बढ़त
दिल्ली चुनावों पर हाल में हुए सर्वे में भी अन्य दलों पर आप की बढ़त होने की बात कही गई है लेकिन सवाल यह है कि केजरीवाल इस बार कितनी सीटें जीतेंगे। साल 2017 के एमसीडी और 2019 के लोकसभा चुनावों को देखें तो भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहा है। एमसीडी चुनाव में भाजपा ने 272 में से 181 सीटें जीती थीं और उसका वोट प्रतिशत 37 प्रतिशत था। जबकि आप को 26 प्रतिशत वोटों के साथ महज 49 सीटें मिलीं। केजरीवाल की पार्टी को 2015 के विस चुनाव में 54.3 प्रतिशत वोट मिला था।
एमसीडी चुनाव में आप का प्रदर्शन था निराशाजनक
माना जाता है कि एमसीडी चुनाव में आप के खराब प्रदर्शन का कारण कांग्रेस का अपने वोट प्रतिशत में सुधार था। साल 2015 के विस चुनाव में कांग्रेस को 9.7% वोट मिला था लेकिन उसने एमसीडी चुनाव में 21 प्रतिशत वोट हासिल किया जबकि अन्य 16% वोट पाने में सफल हुए। साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के वोट प्रतिशत में थोड़ा ही सही लेकिन सुधार देखा गया है। इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपना पुराना वोट बैंक पाने में यदि सफल हो जाती है तो आम आदमी पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। जाहिर है कि कांग्रेस के वोट बैंक में इजाफा आप के वोट शेयर को प्रभावित करेगा।
पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन वह एक भी सीट नहीं जीत पाई। बसपा ने इस बार भी सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। बसपा और आप दोनों के वोट बैंक एक ही समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में बसपा केजरीवाल का ही वोट काटेगी।
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