महामारी ने दुनिया को वो सब कुछ करने पर मजबूर कर दिया है जो अब तक सिर्फ एक विकल्प के तौर पर देखा जाता था। लॉकडाउन में स्कूल व अकादमी भी बंद हैं, ऐसे में बच्चों की पढ़ाई कैसे होती? इसका हल निकाला गया ऑनलाइन एजुकेशन या इंटरनेट के जरिए क्लासेस लेने से। कंप्यूटर के सामने बैठकर पढ़ाई पूरी करना ना ही आसान काम है बल्कि बच्चों की सेहत के लिए भी काफी घातक साबित हो सकता है। बेशक ऑनलाइन एजुकेशन को आज एक नए फॉर्मूले के रूप में देखा जा रहा है लेकिन असल में ये कई दशक पुराना फंडा है।
ऑनलाइन एजुकेशन और कॉरेसपोंडेंस पढ़ाई पिछले काफी सालों से साथ-साथ चल रहे थे। विदेश व देश के अन्य हिस्सों में पढ़ाई करने से लेकर घर में प्रोजेक्ट खत्म करने तक, कंप्यूटर पर पढ़ाई का ये चलन काफी समय से चल रहा था। फर्क बस इतना आया है कि लॉकडाउन की वजह से अब स्कूल के बच्चों को भी ऑनलाइन क्लासेस एटेंड करनी पड़ रही हैं। इसमें काफी कुछ इंटरनेट पर निर्भर करता है। शिक्षक उसी तरह क्लास लेते हैं जैसे कि स्कूल में, बस सब लोग आमने-सामने नहीं होते।
कंप्यूटर व इंटरनेट से पहले कॉरेसपोंडेंस पढ़ाई का चलन था। पत्र, पोस्ट, कागज, ये सभी शब्द उस समय मायने रखा करते थे लेकिन 1960 में सब कुछ बदलने लगा। अमेरिका में इंटरनेट इजाद हो चुका था लेकिन डिफेंस विभाग ने फिलहाल इसे अपने तक सीमित रखा था। ऐसे में यूनिवर्सिटी ऑफ इलीनॉय ने अपने बच्चों के लिए 'इंट्रानेट' (सीमित नेटवर्क) को बनाया। ये एक ऐसा सिस्टम था जो कंप्यूटर टर्मिनल्स से लिंक था और छात्र कोर्स मटीरियल को कंप्यूटर से हासिल कर सकते थे और शिक्षकों के रिकॉर्डेड लेक्चर सुन सकते थे।
इसके बाद 1979 में ऑनलाइन एजुकेशन का दायरा बढ़ा लेकिन इस बार सीधे पढ़ाई से संबंधित नहीं, बल्कि एक गेम के जरिए। एप्पल-2 के लिए लेमोनेड स्टैंड नाम के एक गेम को शुरू किया गया, जिसे एप्पल सॉफ्टवेयर के साथ 80 के दशक में खूब इस्तेमाल किया गया। ये एक एजुकेशनल गेम था जिसमें छात्र गेम खेलते हुए सीख सकते थे।
1984 में इलेक्ट्रॉनिक यूनिवर्सिटी नेटवर्क सामने आया जो कि EUN नाम से जाना गया। ये WWW के आने से पहले का समय था। 1992 तक पहुंचते-पहुंचते अमेरिका ऑनलाइन ने इसको और आसान बनाया जिसके जरिए यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए कंप्यूटर के जरिए पढ़ाई करना और आसान हो गया। फिर आया 1994 जब कैल-कैमपस यानी कंप्यूटर असिस्टेड लर्निंग सेंटर जहां ज्यादातर कोर्स मौजूद थे और ये पहला रियलटाइम पढ़ाई का जरिया बना जब आपको उधर से जवाब भी मिलता था।
कंप्यूटर तकनीक और इंटरनेट में विकास और सुधार होता गया, फिर देखते-देखते 2009 में दुनिया भर में छात्र और शिक्षक आपस में इंटरनेट के जरिए जुड़ने लगे। आलम ये था कि आज से 11 साल पहले ही दुनिया के लाखों छात्र कम से कम एक क्लास ऑनलाइन लेने लगे थे। समय बदलता रहा और सॉफ्टवेयर कंपनियों को इसमें भी बिजनेस मॉडल नजर आया, जिसके चलते इस सेक्टर में और पैसा आया और बात वर्चुअल एजुकेशन से लेकर होलोग्राम तकनीक तक जा पहुंची जहां आपसे काफी दूर होकर भी शिक्षक आपके सामने होता है। समय बदल रहा है, कोरोना वायरस ने चीजों को बदल दिया है। आने वाले दिनों में ऑनलाइन एजुकेशन का चलन और तेजी से बढ़ सकता है।