नई दिल्ली. नवजीवन विजय पवार से एक ज्योतिषी ने कहा था कि वह कभी भी आईएएस नहीं बन सकते। ये बात उन्हें इतनी चुभी कि उन्होंने ठान लिया कि वह अपनी हाथों की लकीर खुद बदलेंगे। हालांकि, ये सफर आसान नहीं था। इस दौरान उन्हें डेंगू से लेकर डायरिया जैसी बीमारियों से भी लड़ना पड़ा। आखिर में उन्होंने अपनी तकदीर लिख डाली और यूपीएससी 2018 में 316वीं रैंक हासिल कर सपने को साकार कर डाला।
पहले अटेंप्ट में आईएएस बनें नवजीवन ने दिल्ली नॉलेज ट्रैक से बातचीत में कहा कि- मैंने 2017 में मैंने यूपीएससी की तैयारी शुरू की। इस साल मैंने पहला अटेंप्ट दिया। प्रीलिम्स में सफलता हासिल की।
नवजीवन बताते हैं कि- मेन्स एग्जाम के एक महीने पहले मुझे तेज बुखार और शरीर में दर्द होने लगा। अस्पताल ले गए तो पता चला कि मुझे डेंगू हो गया है। मैं घर गया तो मुझे तुरंत अस्पताल भर्ती कर दिया गया। अस्पताल में एक हाथ पर डॉक्टर इंजेक्शन लगा रहे थे और मेरे दूसरे हाथ पर किताब थी।
ज्योतिष ने कहा- दिल्ली आए टाइम पास करने
नवजीवन ने बताया कि- डेंगू से उबरने के बाद 15 सितंबर को मैं दिल्ली वापस लौटा। इसके केवल 13 दिन बाद ही मेरा मेन्स का एग्जमा था। मैं काफी डिप्रेस हो गया था। तभी मुझे मराठी की एक कहावत याद आई कि जिंदगी दो ही विकल्प देती है या तो रोना है या फिर लड़ना है।
नवजीवन ने ज्योतिष का किस्सा बताते हुए कहा कि मेरे टीचर मुझे ज्योतिष के पास ले गए थे। ज्योतिष ने मुझसे कहा कि 27 साल की उम्र से पहले तुम आईएएस नहीं बन पाओगे। आप दिल्ली में केवल टाइम पास करने आए हो।
मैं अपना भविष्य खुद लिखूंगा
नवजीवन कहते हैं ज्योतिष की इस भविष्यवाणी के कुछ वक्त बाद मेरा मेन्स का रिजल्ट आया और मैंने सफलता हासिल की। इसके बाद अब मैं इंटरव्यू की तैयारी करने लगा। मैंने सोचा कि अगर आगे वाला मेरा भविष्य बता सकता है तो मैं अपना फ्यूचर क्यों नहीं लिख सकता।
सिविल सर्विस की परीक्षा को क्रैक करने के बाद वो महाराष्ट्र में एक मुहिम से जुड़े। इस मुहिम के तहत नवजीवन बाकी ऑफिसर के साथ मिलकर रूरल एरिया के कॉलेज में जाकर वहां के स्टूडेंट्स से मुलाकात करते हैं और सिविल सर्विस से जुड़े उनके सवाल का जवाब देते हैं।