नई दिल्ली. दिव्य प्रताप सिंह जब छह साल के थे तो मां का आंचल छिन गया। वहीं, जब 12 साल के थे तो सिर से पिता का साया उठ गया। मुश्किलें यहीं पर नहीं रुकी परिवार में क्लेश के कारण वह तंग आकर से घर निकल पड़े। कभी न्यूजपेपर बेचा तो कभी बस में कंडक्टर बनें। इन सभी मुसीबतों से निखरते हुए यूपी पीसीएस ज्यूडिशयल सर्विस परीक्षा में 580वीं रैंक हासिल की।
दिल्ली नॉलेज ट्रैक से बातचीत में दिव्य ने बताया- मेरे पिता स्वर्गीय हेम चंद्र निमेश मेरठ जिले के सिवाल विधान सभी क्षेत्र से साल 1982-85 तक विधायक थे। मां की मौत के पिता ने मेरी चाची से दूसरी शादी की। हालांकि, पीलिया के कारण पिता का निधन हो गया।
दिव्य के मुताबिक परिवार से सपोर्ट न मिलने के कारण मेरी पढ़ाई को कई बार रोका गया। मेरे जब 12वीं के एग्जाम के तीन दिन बचे थे तो मैं घर से भाग गया। मैं सुबह अपने घर से हताश निकला और शाम तक मोहल्ले की गलियों में रोता हुआ घूम रहा था।
पिता के क्षेत्र में बेचा न्यूजपेपर
दिव्य कहते हैं कि पिता के देहांत से पहले भी मैंने कई नौकरियां की। सबसे पहले मैंने एक मेडिकल स्टोर में कंपाउंडर की नौकरी की। इसके बाद मैं एक प्राइवेट बस में कंडक्टर की जॉब की। यही नहीं, एक स्टेशनरी की दुकान में हेल्पर की भी नौकरी की थी। यहां तक कि मेरे पिता जिस क्षेत्र के विधायक थे वहां मैंने न्यूजपेपर भी बांटे।
दिव्य के मुताबिक 12वीं के बाद उन्होंने एलएलबी कोर्स किया। हालांकि, जब उन्होंने इसमें एडमिशन लिया तो मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। ऐसे में मैंने पढ़ाई के साथ कई नौकरियां भी की। हालांकि, कितनी भी कठिन परिस्थिति हो पर मैंने पढ़ाई नहीं छोड़ी।
क्वालिफाई किया यूजीसी नेट का एग्जाम
एलएलबी के बाद दिव्य ने क्लैट का एग्जाम क्वालिफाई कर लिया था। दिव्य के मुताबिक- क्लैट परीक्षा पास करने बाद एलएलएम में एडमिशन के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। मेरे पास जितनी भी बचत थी वो सब लेकर मैं एडमिशन लेने चला गया था।
दिव्य के मुताबिक- काफी मिन्नतों के बाद नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ने मुझे दो महीने के मोहलत दे दी थी। इस तरह मेरा नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में दाखिला हो गया। यही नहीं, कॉलेज के आखिरी साल में उन्होंने यूजीसी नेट की परीक्षा भी पास कर ली थी। दिव्य कहते हैं कि अगर आपके पास शिक्षा है तो आप कुछ भी कर सकते हैं।