आजमगढ़ छोड़ करहल क्यों गए अखिलेश, इसलिए तोड़ी परंपरा, जानें इनसाइड स्टोरी

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प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Jan 21, 2022 | 17:10 IST

UP Assembly Election 2022: मौजूदा मुख्यमंत्री और प्रमुख विपक्ष के नेता के चुनाव लड़ने से उत्तर प्रदेश का चुनाव बेहद रोचक हो गया है। दोनों नेताओं ने चुनाव के लिए सबसे सुरक्षित सीट चुनी है। जिससे उनके लिए पूरे प्रदेश पर फोकस करना आसान हो सके।

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अखिलेश यादव करहल से लड़ेगे चुनाव  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • योगी आदित्यनाथ के चुनावी मैदान में उतरने के बाद, अखिलेश के लिए चुनाव लड़ना राजनीतिक रूप से जरूरी हो गया था।
  • करहल सीट पर सपा का 30 सालों से दबदबा रहा है। मैनपुरी, शिकोहाबादा, इटावा,फर्रूखाबाद पर भी पॉजिटिव असर की उम्मीद
  • आजमगढ़ से चुनाव लड़ने पर पार्टी का फोकस पूर्वांचल पर ज्यादा हो जाता।

नई दिल्ली: 2022 के लिए आखिरकार अखिलेश यादव ने परंपरा तोड़ दी है। वह पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इसके पहले 2012 में मुख्यमंत्री बनने और 2017 के चुनाव के दौरान भी, उन्होंने विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। मौजूदा समय में अखिलेश यादव, आजमगढ़ से सांसद है। सबसे पहले यह कयास लगाए जा रहे थे कि अखिलेश यादव आजमगढ़ की किसी विधानसभा से चुनाव लड़ेंगे, इसको बल तब और मिला जब उन्होंने कहा कि वह आजमगढ़ की जनता से पूछ कर कोई फैसला करेंगे। और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं ने चुनावी रण की तैयारी भी कर ली थी। 

लेकिन इसके बाद अचानक पार्टी की तरफ से फैसला आया कि अखिलेश यादव मैनपुरी की करहल सीट से चुनाव लड़ेगे। करहल विधानसभा अखिलेश यादव के पैतृक गांव सैफई से सटी हुई है। और वहां पर समाजवादी पार्टी का करीब 30 साल से वर्चस्व रहा है।

इसलिए तोड़ी परंपरा

2012 में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने थे तो उस समय वह विधान परिषद सदस्य के जरिए सदन पहुंचे थे। इसी तरह मायावती कभी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ी और योगी आदित्यनाथ भी 2017 में विधान परिषद से ही सदन में पहुंचे थे। लेकिन इस बार योगी आदित्यनाथ गोरखपुर सदर से चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में अगर अखिलेश यादव चुनाव नहीं लड़ते तो भाजपा उसे मुद्दा बना देती। इसलिए उनका चुनाव लड़ना राजनीतिक रुप से जरूरी हो गया था।

30 साल में एक बार हारी समाजवादी पार्टी

मुलायम सिंह की राजनीति का केंद्र रही मैनपुरी, हमेशा से सपा के लिए मुफीद रही है। खुद मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से सांसद हैं। और करहल विधानसभा सीट की बात की जाय तो 1993 से 2027 के बीच केवल एक बार सपा को हार का सामना करना पड़ा है। साल 2002 में इस सीट से भाजपा को जीत हासिल हुई थी। ऐसे में अखलेश यादव के लिए यह बेहद सुरक्षित सीट है। 

समाजवादी पार्टी का गढ़ होने की सबसे बड़ी वजह करहल सीट का जातिगत समीकरण है। यहां पर कुल 3.71 लाख आबादी हैं। जिसमें से 1.44 लाख करीब यादव मतदाता हैं। इसके बाद शाक्य 34 हजार से ज्यादा, क्षत्रिय 24 हजार से ज्यादा है। जबकि 14 हजार से ज्यादा मुस्लिम और ब्राह्मण आबादी है। ऐसे में यादव और मुस्लिम आबादी को मिलाकर करीब 50 फीसदी आबादी हो जाती है। जो कि समाजवादी पार्टी परपंरागत रुप से समर्थक हैं। जिससे जीत की राह आसान हो जाती है।

आजमगढ़ से लड़ने पर कड़ी टक्कर होने की थी आशंका

वैसे तो आजमगढ़ भी समाजवादी पार्टी के लिए मजबूत गढ़ रहा है। लेकिन वह करहल जैसी सुरक्षित सीट नहीं होता। उसकी वजह यह है कि भाजपा ने जैसे 2019 में अखिलेश यादव के खिलाफ दिनेश यादव उर्फ निरहुआ को चुनाव में उतारा था। वैसे इस बार भी वह किसी ऐसे उम्मीदवार को चुनाव में उतार सकती थी। इन परिस्थितियों में अखिलेश यादव को काफी मेहनत करनी पड़ जाती है। जबकि सपा के चुनाव का पूरा भार उन्हीं के ऊपर है। अखिलेश यादव ने दिनेश यादव को 2.59 लाख से ज्यादा वोट से हराया था।भाजपा ने जिस तरह पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को घेरा था, वैसा कुछ वह यहां भी कर सकती थी। ममता बनर्जी बहुमत पाने के बावजूद शुभेंदु अधिकारी से चुनाव हार गई थीं। 

आजमगढ़ संसदीय सीट पर, सपा के लिए मैनपुरी जैसा कभी एकतरफा इतिहास नहीं रहा है। वहां 1996 से कभी बसपा, कभी सपा ही जीतती रही हैं। एक बार भाजपा को भी जीत का स्वाद मिला था। हालांकि गोपालपुर की जिस सीट से अखिलेश यादव के चुनाव लड़ने की चर्चा थी, वहां पर 1996 से सपा का बोलबाला रहा है। गोपालपुर में  लगभग 33 फीसदी यादव, 28 फीसदी अनुसूचित जाति, 13 फीसदी मुसलमान, 13 फीसदी सवर्ण एवं 12 फीसद अन्य पिछड़ी जाति के मतदाता हैं। 

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पूर्वांचल पर सिमट जाता फोकस

एक बात जो और अहम है कि अगर अखिलेश यादव आजमगढ़ से चुनाव लड़ते तो निश्चित तौर  पर उनको करहल की तुलना में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती। साथ ही अखिलेश यादव ने गठबंधन और दूसरे दलों से सपा में शामिल नेताओं के जरिए पूर्वांचल पर ही ज्यादा जोर लगाया हुआ है। ओम प्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, राम अचल भर,  कृष्णा पटेल ये सभी पूर्वांचल के जनाधार वाले नेता हैं। ऐसे में अखिलेश यादव भी पूर्वांचल पर ज्यादा फोकस करते। करहल से चुनाव लड़कर वह इटावा, फर्रुखाबाद , शिकोहाबाद आदि क्षेत्रों पर भी पॉजिटिव असर डालेंगे।

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