25 मार्च 2022 का दिन यूपी के राजनीतिक इतिहास में खास दिन के तौर पर जाना जाएगा। दरअसल उसके पीछे वजह यह नहीं है कि योगी आदित्यनाथ सीएम पद की शपथ लेंगे। खास इसलिए कि कोई दल 37 साल बाद दोबारा सत्ता में वापसी कर रहा है। योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण के लिए अटल बिहारी वाजपेयी इकाना स्टेडियम को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है। शपथ ग्रहण का हिस्सा बनने के लिए बीजेपी की तरफ से विपक्ष के कद्दावर चेहरों को भी न्यौता भेजा गया है जिसमें अखिलेश यादव का नाम भी शामिल हैं। लेकिन अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण में की जा रही है तैयारियों की आलोचना की है।
शपथ ग्रहण में शामिल होने के लिए इच्छुक नहीं
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेथ यादव ने कह कि सरकार को मेरा एक ही सुझाव है कि वे अब उत्तर प्रदेश के लोगों से झूठ न बोलें। शपथ ग्रहण में शामिल होने के सवाल पर कहा कि उन्हें लगता है न तो बुलाया जाएगा और न ही 25 मार्च को यूपी के मनोनीत सीएम योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण समारोह में जाने का इच्छुक हूं। बता दें कि सामान्य व्यवहार में सत्ता दल की तरफ से विपक्ष को शपथ ग्रहण समारोह में बुलाए जाने की परंपरा रही है।
करीब 70 हजार लोग होंगे मौजूद
बताया जा रहा है कि शपथ ग्रहण समारोह में करीब 70 हजार लोग मौजूद होंगे। समारोह को भव्य बनाने के लिए बड़े स्तर पर तैयारी चल रही है। करीब 20 कर्मचारियों की टोली दिन रात पूरे इलाके की सफाई में जुटी है। 10 जगहों पर पीने के पानी की व्यवस्था की गई है। जिला स्तर से निमंत्रित लोगों को लाने की जिम्मेदारी सांसदों और विधायकों को दी गई है। नगर निगम करीब 58 हजार वरग फुट में वाल पेंटिंग बना रहा है। इसके साथ ही एल्डिको कालोनी, रायबरेली रोड, शहीद पथ के किनारे भी वॉल पेंटिंग कराई जा रही है।
क्या कहते हैं जानकार
जानकारों का कहना है कि जीत तो जीत ही होती है, जीत पर जश्न तो बनता ही है। लेकिन 2022 में बीजेपी की जीत इसलिए खास है कि इसने कई कीर्तिमान स्थापित किए। यूपी जैसे बड़े प्रदेश में किसी दल का दोबारा सत्ता में आना बड़ी बात है। करीब 37 साल के बाद बीजेपी ने इसे हकीकत में बदला। अगर 2017 के नतीजों को देखें तो बीजेपी की जीत में केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका अहम रही। उस वक्त बीजेपी की तरफ से औपचारिक तौर किसी को सीएम का चेहरा का नहीं बनाया गया था। लेकिन इस दफा योगी आदित्यनाथ चेहरे के तौर पर पेश किए गए थे। 2022 के नतीजों को व्यक्तिगत तौर पर हार और जीत के तौर पर भी देखा जा सकता है। सामान्य तौर सत्ताधारी दल अपने शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष को न्यौता भेजता है, आमतौर पर विपक्षी दल शामिल भी होते हैं।