पहले कैराना अब जाट नेताओं से मीटिंग, पश्चिमी यूपी में क्या कर रहे हैं अमित शाह

इलेक्शन
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Jan 26, 2022 | 20:42 IST

Amit Shah Meets Jat Leaders: पश्चिमी यूपी की कमान अब सीधे अमित शाह ने अपने हाथों में ले ली है। किसान आंदोलन को देखते हुए भाजपा के लिए 2017 जैसा इतिहास दोहराना बड़ी चुनौती है।

Amit Shah Meets Jat Leaders
पश्चिमी यूपी पर अमित शाह का फोकस  |  तस्वीर साभार: BCCL
मुख्य बातें
  • भाजपा को अहसास है कि तीन कृषि कानूनों के रद्द हो जाने के बावजूद पश्चिमी यूपी में उसे जाट समुदाय का वैसा समर्थन नहीं मिल रहा है।
  • भाजपा चुनाव के बाद जयंत चौधरी से गठबंधन का रास्ता खुला रखना चाहती है।
  • आरएलडी में टिकट बंटवारे से कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ी है।

नई दिल्ली:  उत्तर प्रदेश में अपने सबसे कमजोर दिखते गढ़ को बचाने के लिए भाजपा ने अपने सबसे मजबूत रणनीतिकार को मैदान में उतार दिया है। गृह मंत्री अमित शाह का इस समय पूरा फोकस पश्चिमी यूपी पर है। पहले वह 22 जनवरी को कैराना गए और अब 26 जनवरी को दिल्ली में पश्चिमी यूपी के जाट नेताओं से मुलाकात की। वहीं  पर अमित शाह ने जयंत चौधरी को खुला प्रस्ताव दे दिया। उन्होंने कहा कि हम भी जयंत चौधरी को चाहते हैं, उन्होंने गलत घर चुन लिया है। उनके लिए बीजेपी के दरवाजे खुले हैं। अब भी कोई देर नहीं हुई। चुनाव के बाद बहुत संभावनाएं बनती हैं। जाट समुदाय जयंत चौधरी से बात करेगा।

जाहिर है भाजपा को अहसास है कि तीन कृषि कानूनों के रद्द हो जाने के बावजूद पश्चिमी यूपी में उसे जाट समुदाय का वैसा समर्थन नहीं मिल रहा है। जैसा कि 2014, 2019 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे मिला था। ऐसे में वह उसे, अपने पक्ष में लाने के लिए चुनावों से ठीक पहले, भाजपा ने एक और दांव चल दिया हैं।

जयंत चौधरी को ऑफर का मतलब

जब पश्चिमी यूपी में पहले चरण के मतदान (10 फरवरी) को महज 15 दिन रह गए हैं। और सभी दलों ने अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है, तो भाजपा जयंत चौधरी को क्यों ऑफर दे रही है। सूत्रों के अनुसार इस बयान का चुनाव पूर्व अब कोई खास मतलब नहीं रह गया है। अगर अमित शाह के बयान को देखा जाय तो उन्होंने यह भी कहा है कि चुनाव के बाद बहुत संभावनाएं बनती हैं। यानी भाजपा चुनाव के बाद जयंत चौधरी से गठबंधन का रास्ता खुला रखना चाहती है। इसके अलावा पार्टी ऐसे बयान से जाट समुदाय से सहानुभूति भी चाहती है। जिससे कि चुनावों में उसका फायदा मिल सके। 

जाट बैठक का सियासी संदेश

भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा के घर हुई बैठक के जरिए भाजपा की यह दिखाने की कोशिश है कि जाट समुदाय उससे नाराज नहीं है और जो नाराज हैं, उन्हें भी खुले दिल से पार्टी आमंत्रित कर रहे हैं। हालांकि इस बैठक में राकेश टिकैत, नरेश टिकैत, यशपाल मलिक जैसे जाट नेता उपस्थित नहीं थे। लेकिन इस बैठक के जरिए भाजपा, बड़ा संदेश देना चाहती हैं। जिससे पश्चिमी यूपी में उन मतदाताओं को अपने पाले में लाया जा सके जो भाजपा के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर रखते हैं।

आरएलडी में टिकट बंटवारे से जाटों में नाराजगी

जब से समाजवादी पार्टी और आरएलडी ने टिकट बंटवारे का ऐलान किया है। उसके बाद से आरएलडी कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ी है। उन्हें लग रहा है कि सीटों के बंटवारे में उनके नेता जयंत चौधरी को कम अहमियत दी गई है। और रसूख वाली सीटें सपा नेताओं के पास चली गई हैं। एक सूत्र के अनुसार राष्ट्रीय लोकदल का गढ़ मेरठ, मुजफ्फरनगर और बागपत है। लेकिन उम्मीदवारों के ऐलान में कार्यकर्ताओं को लग रहा है कि उनके नेता का कद घटा दिया गया है। अखिलेश यादव ने बड़ी चालाकी से रालोद के टिकट पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। ऐसे में रालोद का कार्यकर्ता जो 5 साल से और किसान आंदोलन में हर तरह से मेहनत कर रहे थे, उनकी अनदेखी कर दी गई है। खास तौर से मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत में टिकट बंटवारे को लेकर बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। अभी तक आरएलडी ने जो 32 उम्मीदवारों का ऐलान किया है उसमें 10 जाट नेताओं, 5 मुस्लिम और 8 अनुसूचित जाति के नेता हैं। 

भाजपा के लिए क्यों अहम

पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय की करीब 17-18 फीसदी आबादी हैं। और करीब 100 विधानसभा सीट पर सीधा असर रखते हैं। इसमें 40-50 सीट ऐसी हैं, जहां वह निर्णायक भूमिका में रहते हैं। जाट समुदाय के समर्थन का ही असर है कि भाजपा के पास 3 जाट सांसद और 14 विधायक हैं। इस बार भी भाजपा ने 17 जाट नेताओं को टिकट दिए हैं। जाट समुदाय पर खाप का बहुत असर है। क्षेत्र में बालियान खाप, देशवाल, 32 खाप, गठवाला खाप आदि हैं। इसमें बालियान का खाप का काफी असर है। जिसके नेता नरेश टिकैत, भाजपा के सांसद संजीव बालियान भी इसी खाप से आते हैं। हाल ही में उनकी राकेश टिकैत से मुलाकात भी चर्चा में रही है। 2017 के चुनाव में भाजवा ने करीब 80 सीटें पश्चिमी यूपी से जीती थीं।

कैराना पॉलिटिक्स कितनी कारगर

इसके पहले 22 नवंबर को अमित शाह कैराना पहुंचे थे। जहां से उन्होंने डोर-टू-डोर कैंपेन की शुरूआत की। वहां पर वह उन लोगों से मिले जिनका दावा है कि वह लोग समाजवादी पार्टी के शासन में पलायन कर गए थे और अब राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहतर होने के बाद वापस आ गए हैं। असल में भाजपा को कैराना पॉलिटिक्स हमेशा से सूट करती रही है। 2017 में भी उसने एक बड़ा मुद्दा बनाया था। 

असल में पश्चिमी यूपी के हर जिले में 4-5 कस्बे ऐसे मिल जाएंगे, जहां पर मुस्लिम आबादी, हिंदुओं की तुलना में ज्यादा है। मसलन बिजनौर में  चांदपुर, निंदूड़, नूरपुर ऐसे इलाके हैं। ऐसे में कैराना से पलायन का मुद्दा उठा तो इन इलाके के लोगों में यह भावना घर कर गई कि मुस्लिम आबादी बढ़ती जा रही है। और भाजपा को उसका फायदा पूरे इलाके मिला। एक बार फिर भाजपा समाजवादी पार्टी के समय की कानून-व्यवस्था के मुद्दे को उठाकर भुनाना चाहती है। 

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