देहरादून: उत्तराखंड में मतगणना से पहले, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने मंगलवार को राज्य के 13 जिलों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को पार्टी के उम्मीदवारों के साथ कॉर्डिनेशन करने के लिए तैनात कर दिया है। कांग्रेस पार्टी ने पार्टी सांसदों, एआईसीसी पदाधिकारियों और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित वरिष्ठ नेताओं को भेजा है।
अन्य नेताओं में कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा, एआईसीसी त्रिपुरा प्रभारी डॉ अजॉय कुमार, एआईसीसी सचिव जरिता लियातफ्लांग, राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रो गौरव वल्लभ, जीतू पटवारी, एमबी पाटिल, झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बाना गुप्ता, एआईसीसी उत्तराखंड प्रभारी देवेंद्र यादव, सह प्रभारी दीपिका पांडेय सिंह और एआईसीसी पर्यवेक्षक मोहन प्रकाश शामिल हैं। सीएम बघेल के 10 मार्च को देहरादून पहुंचने की उम्मीद है।
ये नेता पार्टी उम्मीदवारों के साथ समन्वय स्थापित करेंगे। परिणाम घोषित होने के बाद नवनिर्वाचित विधायक वरिष्ठ नेताओं के साथ भविष्य की रणनीति तय करने के लिए देहरादून पहुंचेंगे। एएनआई से बात करते हुए, मोहन प्रकाश ने कहा, 'भाजपा ने राज्यपाल की शक्तियों का उपयोग करके और पैसा खर्च करके छोटे राज्यों में बहुमत हासिल करने की कोशिश की है। वे उत्तराखंड में भी ऐसा करने की योजना बना रहे हैं। उनके विशेषज्ञ पहले ही यहां आ चुके हैं। लेकिन वे हमें सफलता नहीं मिलेगी क्योंकि हम किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं और हमें राज्य में पूर्ण बहुमत मिल रहा है।'
दरअसल उत्तराखंड विधानसभा चुनावों का परिणाम आने से पहले ही भाजपा नेताओं और रणनीतिकारों ने प्रदेश के संभावित चुनाव परिदृश्य को लेकर आपस में चर्चाओं का दौर शुरू कर दिया है। भाजपा रणनीतिकार कैलाश विजयवर्गीय ने रविवार को यहां पहुंचने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से उनके आवास पर भेंट की तथा 10 मार्च को आने वाले चुनाव परिणामों को लेकर विचार विमर्श किया। उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक के साथ भी चर्चा की। इसके अलावा, उत्तराखंड मामलों के पार्टी प्रभारी प्रह्लाद जोशी तथा अन्य नेताओं के साथ भी विजयवर्गीय की एक महत्वपूर्ण बैठक होनी है।
माना जाता है कि वर्ष 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के खिलाफ कांग्रेस विधायकों की बगावत में विजयवर्गीय ने अहम भूमिका निभाई थी और अब उनके आने को इसी नजरिये से देखा जा रहा है। यहां राजनीतिक प्रेक्षक जेएस रावत का मानना है कि नतीजों से पहले ही विजयवर्गीय जैसे रणनीतिकारों के आने से यह स्पष्ट है कि 60 से अधिक सीटें जीतने के दावे के विपरीत भाजपा अब स्पष्ट बहुमत मिलने को लेकर भी आश्वस्त नहीं है और ऐसी स्थिति में उसे निर्दलीयों तथा अन्य दलों के विधायकों का समर्थन लेना पड़ेगा।