Ravidas Jayanti: मोदी-योगी-चन्नी सब एक दर पर,जानें पंजाब-यूपी से रविदासियों का चुनावी कनेक्शन

इलेक्शन
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Feb 16, 2022 | 12:18 IST

Ravidas Jayanti: दलित राजनीति का पंजाब और यूपी में बेहद महत्व है। और चुनावी मौसम में संत रविदास की जयंती ने नेताओं को इसे भुनाने का मौका दे दिया है। ऐसे में सभी दलों की ओर से दलितों को लुभाने की कोशिश जारी है।

Sant Ravidas Jayanti
संत रविदास के दर पर नेता 
मुख्य बातें
  • पंजाब में रविदास जयंती की वजह से 14 फरवरी की वोटिंग टल गई थी, और अब 20 फरवरी को वोट डाले जाएंगे।
  • राज्य की करीब 45-50 सीटों पर दलित समाज का सीधा प्रभाव है।
  • यूपी में 84 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं। और करीब 20 जिलें हैं जहां 25 फीसदी से ज्यादा दलित वोटर है।

Ravidas Jayanti: चुनावी राजनीति में 16 फरवरी का दिन बेहद अहम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर यूपी-पंजाब के प्रमुख नेताओं का रास्ता एक ही मंदिर की ओर जा रहा है। और वह संत रविदास का मंदिर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां दिल्ली में स्थिति संत रविदास के मंदिर पहुंचे। वहीं यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी संत रविदास के जन्मस्थली बनारस पहुंच गए हैं। इसी तरह प्रियंका गांधी के भी बनारस पहुंचने की उम्मीद है। साफ है कि चुनावी मौसम में नेताओं का संत रविदास याद आने की वजह भी बेहद खास है।

रविदास जयंती का चुनावी कनेक्शन

असल में दलित समाज के संत रविदास का सीधा पंजाब और यूपी से कनेक्शन है। अकेले पंजाब से हर साल संत रविदास की जयंती पर लाखों दलित जाति के लोग पंजाब से बनारस पहुंचते हैं। बनारस संत रविदास की जन्मस्थली और कर्मस्थली रही है। और इस बार संत रविदास की जयंती 16 फरवरी को पंजाब और यूपी के चुनावों के बीच पड़ गई है। यूपी में जहां तीसरे चरण का चुनाव 20 फरवरी को है, वहीं पंजाब की सभी 117 सीटों पर वोटिंग भी 20 फरवरी को है। 

पंजाब में जयंती की वजह से टल गए चुनाव

पंजाब में चुनाव आयोग  ने पहले 14 फरवरी को वोटिंग तय की थी। लेकिन 16 फरवरी को संत रविदास जयंती होने के कारण, सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से एक सुर में चुनाव टालने की अपील की थी। चुनावी मौसम में करीब 80 लाख आबादी वाले दलित समाज की नाराजगी मोल लेने को कोई भी दल खतरा नहीं ले सकता था। हर साल पंजाब से रविदासियों के प्रमुख डेरे सचखंड बालन की ओर से चलाई जाने वाली एक विशेष ट्रेन से भी बड़ी संख्या में लोग बनारस पहुंचते हैं। ऐसे में चुनाव के समय बड़ी संख्या में वोटरों के पंजाब में मौजूद नहीं रहने की आशंका थी। इसे देखते हुए सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव टालने की मांग की थी और उसी आधार पर चुनाव आयोग ने 20 फरवरी की नई तारीख का ऐलान किया था।

पंजाब में रविदासियों की राजनीतिक हैसियत

117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा की 23 सीटें दोआब क्षेत्र से आती हैं। जहां पर रविदास समाज के ही 10-12 लाख लोग रहते हैं। इसके अलावा पूरे पंजाब में दलित समाज की 32 फीसदी आबादी है। इस वजह से राज्य की करीब 45-50 सीटों पर दलित समाज का सीधा प्रभाव है। साथ ही  राज्य में 34 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। ऐसे में कोई भी दल, पंजाब में दलित समाज की अनदेखी नहीं कर सकता है।

पंजाब में दलित कार्ड 

इस बार चुनाव से पहले कांग्रेस ने दलित कार्ड खेलते हुए न केवल कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया। बल्कि नवजोत सिंह सिद्धू की दावेदारी को दरकिनार करते हुए एक बार फिर से चरणजीत सिंह चन्नी को ही मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया है। पार्टी को पिछले चुनावों में दलित प्रभाव वाले मांझा और दोआब क्षेत्र से अच्छी खासी सीटें मिली थी। मांझा से कांग्रेस को 25 में से 22 सीटें और दोआब से 22 में से 15 सीटें मिलीं थीं। ऐसे में पार्टी चन्नी के जरिए फिर से उसी इतिहास को दोहराने की उम्मीद कर रही है।

कांग्रेस की तरह शिरोमणि अकाली दल (बादल गुट) ने भी दलितों वोटरों को लुभाने के लिए इस बार बसपा के साथ गठबंधन कर रखा है। और उसने वादा किया है कि अगर उसके गठबंधन की सरकार बनी तो डिप्टी सीएम दलित होगा। लेकिन कांग्रेस ने पहले ही दलित सीएम बनाकर,उसके दांव को कमजोर कर दिया है।

इसके अलावा आम आदमी पार्टी दलितों को लुभाने के लिए मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य, छात्रवृत्ति का वादा कर रही है।

यूपी में 20-22 फीसदी दलित और 84 रिजर्व सीटें

पंजाब की तरह यूपी में दलित राजनीति का बेहद महत्व है। प्रदेश की 403 में से 84 सीटें दलितों के लिए रिजर्व हैं। और यह इतिहास रहा है जिसे दलित वोटरों का साथ मिला, उसकी सरका बननी तय है। 2017 में भाजपा को 84 में से 70 सीटें मिली थीं। इसी तरह 2012 में सपा को 58 और 2007 में बसपा को 67 सीटें मिली थीं। 

राज्य में 20 जिले ऐसे हैं जहां पर 25 फीसदी से ज्यादा दलित आबादी है। जिसमें सोनभद्र, मिर्जापुर, झांसी, कानपुर, कैशांबी, आजमगढ़, बहराइच, जालौन, उन्नाव, सीतापुर, चित्रकूट, महोबा, बहराइच जैसे जिले बेहद अहम हैं।

इसी कड़ी में संत रविदास को महत्व देने का सबसे पहले कदम  बहुजन समाज पार्टी ने स शुरू किया।  मायावती ने संत रविदास के जन्मस्थली का राजनीतिक महत्व बढ़ाते हुए 1997 से 2008 के बीच कई अहम विकास कार्य कराए। वह मुख्यमंत्री के तौर पर रविदास जंयती में शामिल हुई थीं और सोने की पालकी भी भेंट कर चुकी हैं। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2016 में रविदास जयंती समारोह में शामिल हुए तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने कार्यकाल के दौरान कई बार आए। इसी तरह राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव भी संत रविदास की जन्मस्थली पहुंचे। अब देखना है कि नेताओं का यह चुनावी दांव, पंजाब और यूपी में किसके काम आता है।
 

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