UP Election: योगी-अखिलेश से ज्यादा इस शख्स का लगा है दांव, हार पर बिगड़ेगा राजनीतिक करियर !

इलेक्शन
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Feb 09, 2022 | 18:31 IST

UP Assembly Election 2022: किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर पश्चिमी यूपी में दिखा था और वहां पहले चरण की वोटिंग 10 फरवरी को है।

RLD Leader Jayant Chaudhary
किसान आंदोलन के बाद रालोद को मिली संजीवनी  |  तस्वीर साभार: Twitter
मुख्य बातें
  • पश्चिमी यूपी में 55 सीटें ऐसी हैं, जहां पर जाट-मुस्लिम फैक्टर सीधे तौर पर काम करता है।
  • पहले चरण में 58 सीटों पर वोटिंग होगी। जिसमें कैराना, मुजफ्फरनगर, नोएडा, बागपत, मथुरा जैसी हॉट सीटे हैं।
  • भाजपा, सपा-रालोद गठबंधन, एआईएमआईएम और आजाद समाज पार्टी प्रमुख रूप से मैदान में हैं।

UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश में पहले चरण के चुनाव 10 फरवरी को होने जा रहे हैं। इसके तहत 58 सीटों पर वोटिंग होगी। इन चुनाओं में भले ही योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव चेहरे के रूप में आमने सामने हैं, उनकी राजनीतिक साख के लिए 2022 का चुनाव भी बेहद अहम है।  लेकिन एक नेता ऐसा भी है जिसका पश्चिमी यूपी में सबसे ज्यादा दांव लगा हुआ है। यह दांव ऐसा है कि अगर इस बार चुनावों में उनकी पार्टी कमाल नहीं दिखा पाई तो उनका राजनीतिकर करियर भी खत्म हो सकता है।

2014 से हार का सामना

जब से यूपी में भाजपा का उभार हुआ है, उसके बाद से राष्ट्रीय लोकदल को अपने गढ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी नुकसान उठाना पड़ा है। 2014 में राष्ट्रीय लोक दल के मौजूदा अध्यक्ष जयंत चौधरी मथुरा से भाजपा की प्रत्याशी हेमा मालिनी से चुनाव हार गए थे। वहीं पार्टी के संस्थापक और जयंत चौधरी के पिता अजीत सिंह बागपत से चुनाव हार गए थे। इसी तरह 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का केवल एक विधायक ही चुनाव जीत पाया। और वह भी बाद में भाजपा में शामिल हो गया। हार का सिलसिला 2019 में भी नहीं रूका और एक बार फिर जयंत चौधरी चुनाव हार गए। पार्टी का एक भी सांसद और विधायक नहीं है। इसके पहले 2012 के विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय लोकदल को 9 सीटें मिली थीं।

रालोद को फिर से खड़ा करने की चुनौती

पिछले साल पिता अजित सिंह के निधन के बाद जयंत चौधरी की जिम्मेदारी बढ़ गई। और उनके सामने 2022 में खुद को साबित करने की सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिए उन्होंने नए सिरे से पार्टी को खड़ा करने की कोशिशें भी की हैं। और पुराने  और जनाधार वाले नेताओं जैसे सोमपाल शास्त्री, प्रशांत कनौजिया,शाहिद सिद्दकी को साथ जोड़ा है।

किसान आंदोलन से मिली संजीवनी

लगातार हार से परेशान राष्ट्रीय लोकदल को किसान आंदोलन से संजीवनी मिली है। किसान आंदोलन को पार्टी ने पूरा समर्थन द‍िया । आंदोलन के दौरान तत्कालीन रालोद अध्यक्ष अजित सिंह का फोन राकेश टिकैत के पास पहुंचा और पूरा माहौल बदल गया। किसान आंदोलन के दौरान जयंत ने जगह-जगह किसान महापंचायतें कर अपनी सियासी जमीन मजबूत करनी शुरू कर दी थी। इसके अलावा गन्ना किसानों के भुगतान, एमएसपी और महंगी बिजली जैसे मुद्दों पर रालोद लगातार धरने-प्रदर्शन करती रही है। और बढ़ते प्रभाव का असर है कि समाजवादी पार्टी और रालोद का 2022 के चुनावों के लिए गठबंधन हो गया है। और इस बार पार्टी 30 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

भाजपा डाल रही है डोरे

हालांकि यह बात साफ है कि चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह रालोद  को समर्थन मिल रहा है। उसका अहसास भाजपा को भी हो गया है। इसीलिए गृहमंत्री अमित शाह भी जयंत चौधरी को भाजपा से हाथ मिलाने का ऑफर दे चुके हैं। हालांकि जयंत चौधरी ने यह कहकर मैं कोई चवन्नी नहीं  हूं, उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। 

इन जिलों में असर

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में करीब 17 फीसदी जाट समुदाय की आबादी है और वह 2014 से पहले परंपरागत रूप से लोकदल का ही वोटर रहा है। पार्टी का मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर,  बागपत, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर,आगरा, अलीगढ़, मथुरा, फिरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, बरेली, बदायूं, पीलीभीत और शाहजहांपुर जिले में असर है।

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