11 की उम्र में कलम उठाकर अख्तर हुसैन बने Kaifi Azmi, बॉलीवुड को दिए 'मिलो न तुम तो हम घबराएं' जैसे गीत

कैफी आजमी, ये नाम है ऐसे गीतकार का जिसकी कलम से ऐसे गीत निकले जिसने युवा दिलों को खूब धड़कायाऔर टूट दिलों की रातों को सहारा दिया। फिल्म हीरा रांझा के गाने मिलो न तुम तो हम घबराए और ये दुनिया ये महफिल को उन्हें ही लिखा। ‘हीर-रांझा’ कैफी की सिनेमाई कविता कही जा सकती है। 

Kaifi Azmi
Kaifi Azmi 
मुख्य बातें
  • कैफी आजमी का उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखते थे।
  • आजमगढ़ के गांव मिजवां में 14 जनवरी 1919 को उनका जन्म हुआ था।
  • 11 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली गजल लिखी।

Geetkar Ki kahani Kaifi Azmi: "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो! आंखों में नमी हंसी लबों पर, क्या हाल है क्या दिखा रहे हो...', इन पंक्तियों ने हर किसी के दिल में जरूर हलचल मचाई होगी। हिंदी सिनेमा को रोमांस की अनगिनत पहचान देने वाले कैफी आजमी ने इन्हें लिखा है। कैफी आजमी, ये नाम है ऐसे गीतकार का जिसकी कलम से ऐसे गीत निकले जिसने युवा दिलों को खूब धड़काया और टूट दिलों की रातों को सहारा दिया। 

वक्त ने किया क्या हसीं सितम (कागज के फूल), इक जुर्म करके हमने चाहा था मुस्कुराना (शमा), जीत ही लेंगे बाजी हम तुम (शोला और शबनम), तुम पूछते हो इश्क भला है कि नहीं है (नकली नवाब) जैसे गाने उन्हीं की कलम द्वारा की गई नुमाइश के उदाहरण हैं। फिल्म हीरा रांझा के गाने मिलो न तुम तो हम घबराए और ये दुनिया ये महफिल को उन्हें ही लिखा। ‘हीर-रांझा’ कैफी की सिनेमाई कविता कही जा सकती है। 

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कैफी आजमी का उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखते थे। आजमगढ़ जिले के छोटे से गांव मिजवां में 14 जनवरी 1919 को उनका जन्म हुआ था। कविताएं पढ़ने का शौक लगा तो भाइयों ने प्रोत्साहित किया तो खुद लिखने लगे। 11 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली गजल लिखी। किशोर होते-होते मुशायरे में शामिल होने लगे। गजल लिखने का यही शौक उन्हें मुंबई ले आया। अपने जीवन में उन्होंने खूब शोहरत कमाई लेकिन उनके असली नाम से लोग बेखबर रहे। उनका असली नाम था अख्तर हुसैन रिजवी। 

वर्ष 1936 में वह साम्यवादी दल से जुडे। 1943 में साम्यवादी दल ने मुंबई कार्यालय शुरू किया और उन्हें जिम्मेदारी देकर भेजा। यहां आकर कैफी ने उर्दू जर्नल ‘मजदूर मोहल्ला’ का संपादन किया। यहां साहित्यिक संस्कारों वाली शौकत को कैफी के लेखन ने प्रभावित किया और दोनों ने एक होने का फैसला कर दिया। मशहूर अदाकारा शबाना आजमी उनकी ही बेटी हैं। 

दूसरों के लिए जीने की हसरत

वर्ष 1973 में ब्रेनहैमरेज से लड़ते हुए जीवन को एक नया दर्शन मिला - बस दूसरों के लिए जीना है। अपने गांव मिजवान में कैफी ने स्कूल, अस्पताल, पोस्ट ऑफिस और सड़क बनवाने में मदद की। उत्तरप्रदेश सरकार ने सुल्तानपुर से फूलपुर सड़क को कैफी मार्ग घोषित किया है। दस मई 2002 को कैफी यह गुनगुनाते हुए इस दुनिया से चल दिए - ये दुनिया, ये महफिल मेरे काम की नहीं। 

काम को मिला सम्मान

उन्होंने ‘काग़ज़ के फूल’, ‘गर्म हवा’, ‘हक़ीक़त’, ‘हीर रांझा’ जैसी कई फिल्मों के लिए काम किया। कैफी आजमी (Kaifi Azmi) को भारत का सबसे प्रतिष्ठित नागरिक अवॉर्ड पद्मश्री मिला था। इसके अलावा उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी अवॉर्ड, 'आवारा सजदे' रचना के लिए साहित्य अकादमी अवॉर्ड फॉर उर्दू, महाराष्ट्र उर्दू अकादमी का स्पेशल अवॉर्ड, सोवियत लैंड नेहरू अवॉर्ड , 1998 में उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने ज्ञानेश्वर अवॉर्ड दिया। दिल्ली सरकार और दिल्ली उर्दू अकादमी की तरफ से पहला मिलेनियम अवॉर्ड भी उन्हें मिला। 

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