Gopaldas Neeraj Lesser Known Facts: आज (04 जनवरी) पद्म भूषण से सम्मानित, महान गीतकार, कलमकार और दिग्गज कवि गोपालदास नीरज की जयंती है। इटावा जिले के ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गांव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहां आज ही के दिन गोपालदास नीरज का जन्म हुआ। उन्होंने 1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की। कुछ वक्त बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहां से नौकरी छूटी तो कानपुर के डीएवी कॉलेज में क्लर्क बन गए। फिर बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पांच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएं देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बीए और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एमए किया।
इसके बाद वह मेरठ कॉलेज, मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य किया। उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये। यहां से उनके कविताएं लिखने का सिलसिला शुरू हुआ जो कवि सम्मेलनों के मंच तक पहुंचा। कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का न्योता दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
1968 में आई शशि कपूर की फिल्म 'कन्यादान' के लिए प्रोड्यूसर राजेंद्र भाटिया ने जाने माने गीतकार गोपाल दास नीरज से एक गाना लिखने को कहा था। गोपालदास नीरज उस समय व्यस्ततम गीतकारों में से थे। लेकिन जब उन्हें बताया गया कि यह गाना शशि कपूर पर फिल्माया जाना है, तो गोपालदास नीरज ने तुरंत कलम उठाई और केवल छह मिनट में वो गाना लिख दिया, जिसने इस फिल्म को हिट करा दिया। ये गाना उस समय से लेकर आज तक कई प्रेम कहानियों का गवाह बना है। ये गाना था 'लिखे जो खत तुझे , जो तेरी याद में...'। इससे खुश होकर गोपालदास नीरज को प्रोड्यूसर राजेंद्र भाटिया ने अपनी कनवर्टिवल कार तोहफे में दी थी। ये वही कार थी, जो इस गाने में दिखाई दी।
पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत 'जैसे कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे' और 'देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूर्त निकल जायेगा' बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बंबई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा। बंबई की ज़िन्दगी से उनका मन बहुत जल्द भर गया और वह फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये।
गोपालदास नीरज जी की कविता
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!
गोपालदास नीरज को शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से। नीरज को सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिए 70 के दशक में लगातार तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। जिन गीतों पर उन्हें यह पुरस्कार मिला वो हैं- ‘काल का पहिया घूमे रे भइया! (फिल्म: चन्दा और बिजली-1970), ‘ बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं (फिल्म: पहचान-1971) और ‘ए भाई! ज़रा देख के चलो’ (फिल्म: मेरा नाम जोकर-1972)। 'प्रेम पुजारी' में देवानंद पर फ़िल्माया उनका गीत 'शोखियों में घोला जाए ..' भी उनके एक लोकप्रिय गीतों में शामिल है जो आज भी सुनl जाता है।
कुछ शख्सियतें ऐसी होती ही हैं कि लिखने को जी चाहता है। शायद इसलिए भी कि आज के वो युवा भी उनसे रूबरू हों, जो 'आज ब्लू है पानी पानी' जैसे गानों को ही गीत समझते हैं। नीरज जी जैसे लोग विरासत हैं और इस विरासत को सहेजना आवश्यक है। गोपालदास के नाम के साथ जब तक सक्सेना शब्द जुड़ा था, तब तक वह टाइपिस्ट की नौकरी कर अपनी पहचान तलाशते रहे लेकिन जब टाइपराइटर के बटन पीटते पीटते उनके हाथों ने कलम उठाई तो वह 'नीरज' हो गए और वह असल पहचान उन्हें मिली जिसके वह हकदार थे। ‘ए भाई! ज़रा देख के चलो’, 'लिखे जो खत तुझे', 'आप यहां आए किस लिए' जैसे शानदार गीतों से हिंदी सिनेमा को गुलजार करने वाले गीतकार गोपालदास नीरज की कहानी कुछ ऐसी ही है। उनकी जयंती पर उनको सादर नमन।
Times Now Navbharat पर पढ़ें Entertainment News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।