मुंबई. कश्मीरी पंडितों के पलायन पर बनी फिल्म शिकारा आज रिलीज हो गई है। साल 1990 में हुए कश्मीरी पंडितों के कत्लेआम की कहानी आज भी रूह कपां देती है। टीका लाल टपलू , नीलकंठ गंजू, लसा कौल, टेलिकॉम इंजिनियर बालकृष्ण गंजू जैसे कई कश्मीरी पंडितों को मौत के घाट उतार दिया था। आतंकियों ने बालकृष्ण गंजू (बीके गंजू) की हत्या के बाद उनके खून से सने चावल को उन्हीं की बीवी को खिलाया था।
30 साल के बीके गंजू छोटा बाजार श्रीनगर के रहने वाले थे। वह केंद्र सरकार के टेलिकॉम विभाग में इंजीनियर थे। 22 मार्च 1990 को बीके गंजू कर्फ्यू में ढील के बाद घर वापस आ रहे थे। इस दौरान आतंकियों की नजर उन पर थी और वह उनका पीछा कर रहे थे।
बीके गंजू को एहसास हो गया था कि उनका पीछा किया जा रहा है। गंजू ने घर में घुसते हुए ही अंदर से ताला लगा दिया था। हालांकि, आतंकी दरवाजा तोड़कर घर के अंदर घुस गए। गंजू तब तक घर की तीसरी मंजिल में एक चावल के बोरे के अंदर छिप गए थे।
पड़ोसी ने बताया ठिकाना
आतंकियों ने बीके गंजू के घर की तलाशी ली, उन्हें कोई नहीं मिला। आतंकी जब वापस जा रहे थे तो बीके गंजू के पड़ोसी ने बताया कि वह चावल के बोरे के अंदर छिपे हुए हैं। आतंकियों ने बाहर निकाला उन्हें गोली मार दी थी।
आतंकियों ने इसके बाद बीके गंजू की वाइफ को जबरदस्ती उनके पति के खून से सने चावल खिलाए थे। आतंकी ने कहा- 'तुम्हारे खून से सना ये चावल तुम्हारे बच्चे खाएं। वाह ये कितना स्वादिष्ठ खाना होगा।'
सुनंदा वशिष्ठ ने किया था जिक्र
2019 में अमेरिकी संसद में जम्मू कश्मीर पर बोलते हुए भारत की प्रतिनिधि और स्तंभकार सुनंदा वशिष्ठ से इस घटना का जिक्र किया था। सुनंदा ने कहा था- 'बीके गंजू जैसे लोगों को अपने पड़ोसियों पर विश्वास करने के बदले सिर्फ धोखा मिला।'
सुनंदा ने कहा- 'बीके गंजू को आतंकवादियों ने कंटेनर में ही गोली मार दी थी और उनकी पत्नी को खून से सने चावल खिलाए थे। अगर उनके पड़ोसी आतंकियों को उनके बारे में नहीं बताते तो वह आज जिंदा होते।’
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