नई दिल्ली। आस्था के सबसे बड़े नायक मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मस्थान किस जगह पर है या था इसे लेकर सुप्रीम अदालत में 40 दिन तक सुनवाई हुई। पांच जजों की पीठ के सामने सभी पक्षकारों ने अपनी अपनी दलीलें पेश कीं। आस्था की नाव पर सवार होकर कानूनी सागर पार करने की कोशिश हिंदू पक्षकार करते रहे तो मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से 16वीं और 17वीं सदी में लिखे गए दस्तावेजों का सहारा लेना पड़ा। अदालत की जिरह में तमाम सारे रोचक प्रसंग सामने आए। हर एक दिन माननीय न्यायाधीश पक्षकारों की ज्ञान की परीक्षा लेते थे तो पक्षकार भी अपने अकाट्य तर्कों के साथ उनके सवालों का जवाब देते थे। इन सबके बीच अदालती सुनवाई में 30 वां दिन कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण रहा ।
आस्था और कानून की काट और प्रतिकाट में दो ऐसे विषय सामने आए जिस पर अदालत में दिलचस्प अंदाज में जिरह हुई थी। जिरह का पहला विषय राम चबूतरा और दूसरा विषय सीता रसोई थी। यहां हम इन दोनों जगहों के बारे में बताएंगे।
सीता रसोई
सीता की रसोई सही मायने में कोई रसोई नहीं बल्कि मंदिर है। सीता रसोई राम जन्म भूमि के उत्तर पश्चिम भाग में है। इस मंदिर में मर्यादा पुरुषोत्तम राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ साथ सीता, उर्मिला,मांडवी और सुक्रिति की मूर्ति लगी हुई हैं। आम रसोई की तरह इस मंदिर में चकला और बेलन रखे है। जैसे आज भी जव कोई वधू अपने ससुराल जाती है तो वो शगुन के तौर पर पूरे परिवार के लिए खाना बनाती है, ठीक वैसे ही हजारों साल पहले यही रीति और रिवाज परंपरा में थी। क्या देवी सीता ने खाना बनाया था या नहीं इसे लेकर मतभेद है।
कुछ जानकार कहते हैं कि शगुन के तौर पर उन्होंने खाना बनाया था। लेकिन कुछ विद्धान कहते हैं कि मां सीता ने अपने हाथों से खाना नहीं बनाया था। इस विषय पर तमाम वाद विवाद के बीच एक बात तो साफ है कि आम जनमानस उस सीता रसोई में मां अन्नपूर्णा को देखता है। देवी अन्नपूर्णा के बारे में कहा जाता है कि वो पूरे संसार का पेट भरती थीं। सीता रसोई या सीता मंदिर के बारे में एक रोचक जानकारी ये है कि कथित बाबरी मस्जिद के मुख्य मेहराब पर भी सीता की रसोई लिखा हुआ था जो सीता के अस्तित्व के बारे में बताता है।
राम चबूतरा
यह भी 2.77 एकड़ जमीन के हिस्से में आता है। कथित बाबरी मस्जिद में तीन गुंबद थे। दक्षिणी गुंबद, केंद्रीय गुंबद और उत्तरी गुंबद। 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ जमीन को तीन हिस्सों में बांटा जिसमें केंद्रीय गुंबद वाले हिस्से को राम का जन्म स्थान माना और वहां अब अस्थाई मंदिर में पूजा अर्चना होती है। बाकी के दोनों गुंबदों पर निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड का कब्जा माना। जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई तो राम चबूतरा का जिक्र सामने आया जिस पर दिलचस्प बहस हुई। सीता रसोई की तरह राम चबूतरा भी बाहरी सहन में और इसकी दिशा तीनों गुंबद वाली जगह से दक्षिण पूरब की तरफ है।
सुप्रीम कोर्ट में जिरह के दौरान जस्टिस एस एस बोबड़े ने मुस्लिम पक्ष से पूछा कि क्या राम चबूतरा को राम का जन्मस्थान मानते हैं इस सवाल के जवाब में पक्षकार जफरयाब जिलानी ने कहा कि इसमें किसी को आपत्ति नहीं है। तीन तीन अदालतें इस तथ्य पर मुहर लगा चुकी हैं। मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन ने कहा कि 1949 से पहले भी राम चबूतरा पर पूजा होती रही है इसमें 1885 का फैसला भी है। लेकिन अंदर वाले आंगन में कभी पूजा नहीं हुई। पूरा कैंपस मुस्लिम पक्ष के कब्जे में था। इसके साथ ही मुस्लिम पक्ष के दावे के समर्थन में मस्जिद की देखरेख करने वाले मुतवल्ली से भी है जिसे अंग्रेजी सरकार 302 रुपये सालाना देती थी।
इसके साथ ही राजीव धवन ने कहा था कि एक गवाह का बयान भी है कि वो अपने पिता के साथ राम चबूतरे पर पूजा के लिए आता था। लेकिन केंद्रीय गुंबद के नीचे कोई मूर्ति नहीं था। उसे तो बाद में पता चला कि 1949 में गर्भगृह में भगवान का अवतरण हुआ है और वो वही साल था जब साजिश के तहत केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्तियों को रखा गया था।
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