नई दिल्ली: भारत में इस समय जिस विषय पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो है अयोध्या केस (Ayodhya Case) इस मामले पर देश की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का फैसला 17 नबंवर से पहले आने की बात कही जा रही है। इस फैसले का पूरा देश बेसब्री से इंतजार कर रहा है कि क्या डिसिजन सामने आता है। सरकार भी फैसला आने से पहले मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए तमाम एडवायजरी जारी कर रही है।
वहीं सरकार इसको लेकर तमाम सुरक्षा इंतजाम करने में जुटी है और खासी गंभीरता बरतते हुए समाज में सद्भाव एवं शांति कायम रखने के लिए कदम उठाए रही है। खास बात ये की हिंदू और मुस्लिम दोनों धार्मिक संगठनों के लोगों ने एक सुर में कहा है कि अयोध्या केस में आने वाले फैसले को वह खुले दिल से स्वीकार करेंगे।
साल 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस केस की सुनवाई करते हुए विवादित 2.77 एकड़ जमीन को निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान के बीच बराबर हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया। हाई कोर्ट के इस फैसले को 14 याचिकाओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। इन याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
विवाद में ये हैं अहम पक्षकार?
अयोध्या केस के टाइटिल सूट में तीन मुख्य पक्षकार निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और राम लला विराजमान हैं।
निर्मोही अखाड़ा देवस्थान का प्रबंधक है और यह वर्षों से भगवान राम की पूजा करते आ रहे हैं। निर्मोही अखाड़ा राम मंदिर के प्रबंधन और संचालन के मालिकाना हक का दावा करता है। निर्मोही अखाड़ा वैष्णव समप्रदाय का एक अखाड़ा है ये अखाड़ा विशेषकर अयोध्या प्रकरण में 1959 में चर्चा में आया, जब इन्होंने अदालत में विवादित ढांचे के संदर्भ में वाद प्रारम्भ किया। उसने विवादित भूमि पर स्वामित्व का दावा करते हुए कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर हटाया जाए। उसने खुद को उस स्थल का संरक्षक बताया जहां माना जाता है कि भगवान राम का जन्म हुआ था।
अयोध्या मामले में सबसे पहली कानूनी प्रक्रिया 1885 में इसी अखाड़े के महंत रघुवीर दास ने प्रारम्भ करी। उन्होने एक याचिका दायर कर राम चबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी, लेकिन एक साल बाद फैजाबाद की जिला अदालत ने अनुरोध खारिज कर दिया।
साल 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आया। विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटा गया। जिसमे से एक हिस्सा एक तिहाई जमीन निर्मोही अखाड़ा को, दूसरा जहां रामलला विराजमान हैं और आसपास की जमीन राम मंदिर को। एक तिहाई सुन्नी वक्फ बोर्ड को।
सुन्नी वक्फ बोर्ड- राज्य की सभी वक्फ संपत्तियों का देखभाल करता है। सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा है कि विध्वंस से पहले बाबरी मस्जिद में नमाज अता की जाती रही है। बोर्ड का यह भी दावा है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को गिराकर नहीं हुआ। बोर्ड का आरोप है कि 22-23 दिसंबर 1949 की रात में चुपचाप तरीके से यहां मूर्तियों को रखा गया था।
राम लला विराजमान- अयोध्या विवाद केस में साल 1989 में पक्षकार बने। इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज देवकी नंदन अग्रवाल ने राम लला के मित्र के रूप में अदालत का रुख किया और उनकी तरफ से पक्ष रखा। राम लला विराजमान का भी दावा है कि बाबरी मस्जिद से पहले इस स्थान पर मंदिर हुआ करता था।
वरिष्ठ अधिवक्ता के पाराशरण ने राम लला का पक्ष रखा है, हिंदू पक्ष की तरफ से 92 वर्षीय पाराशरण ने रामलला विराजमान के संबंध में अकाट्य तर्क पेश किए तो मुस्लिम पक्ष की तरफ से राजीव धवन ने यह समझाने की कोशिश की राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई थी।
इस मामले को लेकर ये हैं अहम जानकारियां-
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