अयोध्या केस: आने वाला है फैसला,जानें इस मामले के अहम पक्षकारों के बारे में, इस मामले पर वर्षों की है पैरोकारी

देश
रवि वैश्य
Updated Nov 08, 2019 | 16:20 IST

Main Parties of  Ayodhya Case: इस समय देश भर क्या दुनिया के लोगों की निगाहें अयोध्या पर आने वाले फैसले पर लगी हुईं हैं, इस मामले के हिंदू और मुस्लिम पक्षकार हैं जिन्होंने इस मामले पर वर्षों पैरोकारी की है।

AYODHYA
अयोध्या टाइटल केस में सुप्रीम कोर्ट में अब आना है फैसला, देश-दुनिया की निगाहें टिकीं हैं इसपर  

नई दिल्ली: भारत में इस समय जिस विषय पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो है अयोध्या केस (Ayodhya Case) इस मामले पर देश की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का फैसला 17 नबंवर से पहले आने की बात कही जा रही है। इस फैसले का पूरा देश बेसब्री से इंतजार कर रहा है कि क्या डिसिजन सामने आता है। सरकार भी फैसला आने से पहले मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए तमाम एडवायजरी जारी कर रही है। 

वहीं सरकार इसको लेकर तमाम सुरक्षा इंतजाम करने में जुटी है और खासी गंभीरता बरतते हुए समाज में सद्भाव एवं शांति कायम रखने के लिए कदम उठाए रही है। खास बात ये की  हिंदू और मुस्लिम दोनों धार्मिक संगठनों के लोगों ने एक सुर में कहा है कि अयोध्या केस में आने वाले फैसले को वह खुले दिल से स्वीकार करेंगे। 

साल 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस केस की सुनवाई करते हुए विवादित 2.77 एकड़ जमीन को निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान के बीच बराबर हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया। हाई कोर्ट के इस फैसले को 14 याचिकाओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। इन याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। 

विवाद में ये हैं अहम पक्षकार?
अयोध्या केस के टाइटिल सूट में तीन मुख्य पक्षकार निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और राम लला विराजमान हैं। 

निर्मोही अखाड़ा देवस्थान का प्रबंधक है और यह वर्षों से भगवान राम की पूजा करते आ रहे हैं। निर्मोही अखाड़ा राम मंदिर के प्रबंधन और संचालन के मालिकाना हक का दावा करता है। निर्मोही अखाड़ा वैष्णव समप्रदाय का एक अखाड़ा है ये अखाड़ा विशेषकर अयोध्या प्रकरण में 1959 में चर्चा में आया, जब इन्होंने अदालत में विवादित ढांचे के संदर्भ में वाद प्रारम्भ किया। उसने विवादित भूमि पर स्वामित्व का दावा करते हुए कहा कि अदालत द्वारा नियुक्त रिसीवर हटाया जाए। उसने खुद को उस स्थल का संरक्षक बताया जहां माना जाता है कि भगवान राम का जन्म हुआ था।

अयोध्या मामले में सबसे पहली कानूनी प्रक्रिया 1885 में इसी अखाड़े के महंत रघुवीर दास ने प्रारम्भ करी। उन्होने एक याचिका दायर कर राम चबूतरे पर छतरी बनवाने की अनुमति मांगी, लेकिन एक साल बाद फैजाबाद की जिला अदालत ने अनुरोध खारिज कर दिया।

साल 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला आया। विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटा गया। जिसमे से एक हिस्सा एक तिहाई जमीन निर्मोही अखाड़ा को, दूसरा जहां रामलला विराजमान हैं और आसपास की जमीन राम मंदिर को। एक तिहाई सुन्नी वक्फ बोर्ड को।

सुन्नी वक्फ बोर्ड- राज्य की सभी वक्फ संपत्तियों का देखभाल करता है। सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा है कि विध्वंस से पहले बाबरी मस्जिद में नमाज अता की जाती रही है। बोर्ड का यह भी दावा है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर को गिराकर नहीं हुआ। बोर्ड का आरोप है कि 22-23 दिसंबर 1949 की रात में चुपचाप तरीके से यहां मूर्तियों को रखा गया था।  

राम लला विराजमान- अयोध्या विवाद केस में साल 1989 में पक्षकार बने। इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व जज देवकी नंदन अग्रवाल ने राम लला के मित्र के रूप में अदालत का रुख किया और उनकी तरफ से पक्ष रखा। राम लला विराजमान का भी दावा है कि बाबरी मस्जिद से पहले इस स्थान पर मंदिर हुआ करता था।

वरिष्ठ अधिवक्ता के पाराशरण ने राम लला का पक्ष रखा है, हिंदू पक्ष की तरफ से 92 वर्षीय पाराशरण ने रामलला विराजमान के संबंध में अकाट्य तर्क पेश किए तो मुस्लिम पक्ष की तरफ से राजीव धवन ने यह समझाने की कोशिश की राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई गई थी। 

इस मामले को लेकर ये हैं अहम जानकारियां-

  • राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद की ऐतिहासिक सुनवाई वर्षों तक कानून की चौखट पर हुई है। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था, 1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ।
  • 1859 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा। 1949 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया। 
  • सन् 1986 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।सन् 1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की।
  • 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराई गई। परिणामस्वरूप देशव्यापी दंगों में करीब दो हजार लोगों की जानें गईं।उसके दस दिन बाद १६ दिसम्बर १९९२ को लिब्रहान आयोग गठित किया गया। 1993 में केंद्र के इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली। चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी था। मगर कोर्ट ने इस चुनौती को ख़ारिज कर दिया कि केंद्र सिर्फ इस जमीन का संग्रहक है। जब मलिकाना हक़ का फैसला हो जाएगा तो मालिकों को जमीन लौटा दी जाएगी। हाल ही में केंद्र की और से दायर अर्जी इसी अतिरिक्त जमीन को लेकर है।
  • 2003 में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता। 30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपी।
  • साल 2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदू गुटों को दे दिया जाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि वहाँ से रामलला की प्रतिमा को नहीं हटाया जाएगा। 
  • न्यायालय ने यह भी पाया कि चूंकि सीता रसोई और राम चबूतरा आदि कुछ भागों पर निर्मोही अखाड़े का भी कब्ज़ा रहा है इसलिए यह हिस्सा निर्माही अखाड़े के पास ही रहेगा। दो न्यायधीधों ने यह निर्णय भी दिया कि इस भूमि के कुछ भागों पर मुसलमान प्रार्थना करते रहे हैं इसलिए विवादित भूमि का एक तिहाई हिस्सा मुसलमान गुटों दे दिया जाए।
    लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से अस्वीकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उच्चतम न्यायालय ने 7 वर्ष बाद निर्णय लिया कि 11 अगस्त 2017 से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सितंबर-अक्टूबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने 40 दिनों तक अयोध्या केस की रोजाना सुनवाई की और सुनवाई पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था जो अब आना है। 

 

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