Congress: घर की कांग्रेस,सबकी कांग्रेस: कांग्रेस की मुश्किलें कांग्रेस बराबर 

देश
प्रभाकर चतुर्वेदी
Updated Mar 18, 2022 | 14:37 IST

हालाँकि कोई भी सीधे तौर पर ये नहीं कहना चाह रहा है कि तक़रीबन 20 सालों से जो पार्टी का नेतृत्व है वो न तो विचारधारा समझ पा रहा है और न ही उस अनुभवी कैडर को फ्रंटफुट पर खेलने दे रहा है, हालाँकि देर सवेर बात इसी पर बनेगी।  

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घर की कांग्रेस, सबकी कांग्रेस: कांग्रेस की मुश्किलें कांग्रेस बराबर (प्रतीकात्मक फोटो) 

नई दिल्ली: हालिया पांच राज्यों के चुनावों के सन्देश बहुगामी होंगे, देश और राजनीति की दशा बदलने वाले होंगे और 2024 चुनावों के सेमीफाइनल होंगे ऐसे कयास तो लगाए जा रहे थे  पर जो कयास में बिल्कुल नहीं थे वो थे कांग्रेस के इतने दुर्दशा के।अब स्थिति ये है की पांचो राज्यों के चुनावों में पंजाब को छोड़ कर सभी राज्यों में भाजपा ने बाज़ी मार ली और पंजाब गया भी तो AAP के खाते में 

बेहद दिलचस्प बात ये रही है कि कांग्रेस को अभी तक सुदूर दक्षिण की बात छोड़ दी जाय तो जहां भी कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई है वहां ये काम AAP ने बखूबी निभाया है दिल्ली और उसके बाद पंजाब कांग्रेस पार्टी जड़ से उखाड़ फेकने का काम AAP ने जरूर किया है 

चलते है कांग्रेस पार्टी के इस दुर्दशा और अभी जो आतंरिक कलह चल रहा है उसकी तरफ 

पांच राज्यों में चुनाव हुए प्रियंका गाँधी और कुछ हद तक राहुल गाँधी ने भी अपना दम ख़म झोका। ''लड़की हूँ लड़ सकती हूँ'' जैसे नारे इज़ाद किये गए जो याद दिलाते हैं 2004 के कांग्रेस का हाथ गरीबों के साथ जैसे स्लोगन्स जो आंधी बन गयी और वो आम चुनाव कांग्रेस की झोली में आये, पर इस बार प्रियंका के ''लड़की हूँ लड़ सकती हूँ'' जैसे नारे फिसड्डी ही रहे और कोई दम नहीं दिखा पाए बताते चलें कि प्रियंका का ये स्लोगन वैसे पैन इंडिया नेचर का था नहीं क्यूंकि उत्तर प्रदेश में भले ही कांग्रेस पार्टी की विचारधारा में महिला सशक्तिकरण था पर ये न तो पंजाब में दिखा ना गोवा में दिखा ना ही उत्तराखंड मणिपुर जैसे बाकी राज्यों में दिखा। और ऐसी ही अफलातूनी कामों से शुरुआत होती है कांग्रेस पार्टी के आज की स्थिति में आने की, जब कांग्रेस के अंदर का एक अभिजात्य वर्ग या पुराने कांग्रेस वर्ग जिसे G-23 या G-21कहा जा रहा है तमाम बैठकें कर दावा कर रहा है कि पार्टी के अंदर कुछ तो कमी है जो इसे खाये जा रही है।

आज कांग्रेस की ऐसी अंतर्कलह की स्थिति मे अगर इतिहास को हम छोड़ भी दें तो हमे समझना पड़ेगा की आज जो बीजेपी की स्थिति है वो उनके धार्मिक राष्ट्रवादी और विकासवादी विचारधारा के चलते है और सच भी यही है कि पार्टी नेतृत्व को समझना पड़ेगा की चुनावों में विकास की बात कहते हुए इस बात का ध्यान रखना पड़ेगा की जनता, पार्टी की विचारधारा से अपने को जुड़ा महसूस करे।

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भाजपा निश्चय ही परिवारवाद जैसे कई मुद्दों पर पुरे विपक्ष को कटघरे में कैद कर रही है और तब जब भाजपाई भी अपवाद नहीं हैं, पर भाजपा में इतना लोच (फ्लेक्सिबल) है कि पद व्यक्तियों या परिवारों से चिपके नहीं हैं और इसी का सहारा ले करके भाजपा अपने विरोधियों को चारो खाने चित्त कर रही है ऊपर से प्रधानमंत्री और भाजपा के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी खुले तौर पर ऐलान कर सुर्खियां बटोर लेते हैं कि माफ़ करियेगा आपके बच्चो के टिकट काटने का सीधा जिम्मेदार मै हूँ, यही बात सोशल मीडिया के माध्यम से जनता के मन तक पहुंच जा रही है।  

आगे बढ़ते हैं, कांग्रेस को विचारधारा के अलावे संगठन पर भी काम करने की जरुरत है

कांग्रेस के दो पौध के तरफ हम देखें तो दोनों ही लड़ते हुए दिख रहे है दोनो ही तरह के कांग्रेसी  ''रिफॉर्मिस्ट कांग्रेसी'' है और दूसरे ''नो प्रॉब्लम कांग्रेसी'' कोल्ड वार कि स्थिति से निकल फुल फ्लेजड वार जिसे कहते हैं उस स्थिति मे आ गए हैं।इसी कड़ी मे कपिल सिब्बल का ये कहना की मैं "घर की कांग्रेस नहीं चाहता बल्कि सबकी कांग्रेस के लिए अपने अंतिम सांस तक लडूंगा" अपने आप में बगावत या असंतोष है पर कांग्रेस नेतृत्व का कोई आज तक सकारात्मक बयान नहीं आया कि आखिर ऐसी क्या बात है, जबकि इसके उलट अधीर रंजन या टीएस सिंह देव  या छ्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जैसे नेताओं ने और भी इन पुराने नेताओं के कांग्रेसी सफर को दागदार बना दिया और निष्ठा पर सवाल उठा दिए।

आज जरुरत है संगठन के स्तर पर कांग्रेस पार्टी को ये भी सिखने की कि विरोध के स्वर पार्टी के बाहर न जाएँ और समय रहते इन्हे सुलझाया जाय क्योंकि ये नेता स्वामी प्रसाद मौर्या जैसे नेता नहीं है और ये तब और सजगता से समझी जानी चाहिए जब ये नेता आपकी विचारधारा से जुड़े हुए हों, क्यूंकि जनता का मन आपकी विचारधरा के प्रति सच्चे जुड़ाव और उनको लेकर लड़ने वाले अनुभवी सिपाहियों से ही मत में बदलेंगे जैसे आज भाजपा के साथ जनता बनी हुई है।

अगर प्रियंका राहुल जैसे शीर्ष नेता यूपी में कुछ और पंजाब में कुछ और यूं ही बोलते रहे तो समझिये हो गया कांग्रेस से जनता का मोहभंग कांग्रेस के अस्तित्व को मिटा देगा। G-23 अपनी मांगो और सुझावों के साथ लगातार पार्टी हाई कमान से गुहार लगा रहा है पर सच ये भी है कि ये आंतरिक कलह अगर नहीं सुलझाया गया तो कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व पर बात बन आएगी।

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