नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के टिकट पर पहली बार विधायक चुनी गईं अलका लांबा के लिए कांग्रेस में वापसी घाटे का सौदा साबित होती दिख रही है। कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाली अलका लांबा ने आम आदमी पार्टी में रहते हुए मुख्यमंत्री केजरीवाल के खिलाफ बगावत कर दी थी। विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही उन्हें अपनी सदस्यता भी गंवानी पड़ी। ऐसे में माना जा रहा था कि वो विधानसभा चुनाव में एक बार फिर चांदनी चौक से निर्वाचित होकर सदन में पहुंचेंगी और आप के खिलाफ मुखर आवाज बनेंगी। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में दिल्ली में वोट प्रतिशत के मामले में कांग्रेस भाजपा के बाद दूसरे पायदान पर रही थी। भाजपा के खाते में सबसे ज्यादा 56.86 प्रतिशत वोट गए थे। वहीं 22.63 प्रतिशत वोट हासिल कर कांग्रेस दूसरे पायदान पर रही थी। वहीं आम आदमी पार्टी 18.2 प्रतिशत वोट के साथ तीसरे पायदान पर थी। ऐसे में राज्य में 15 साल तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस पार्टी के लिए विधानसभा चुनाव में अलका लांबा में वापसी की मसाल थामे दिखाई दे रही थीं। लेकिन कांग्रेस की चाल यहां भी काम नहीं आई।
टाइम्स नाउ के एक्जिट पोल के मुताबिक कांग्रेस पार्टी पांच साल बाद एक बार फिर दिल्ली विधानसभा में अपना खाता खोलने में नाकाम रहेगी। जहां आम आदमी पार्टी 51 प्रतिशत वोट और 44 सीट के साथ सत्ता में वापसी करती दिख रही है। वहीं भाजपा 40.5 प्रतिशत वोट के साथ 26 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए आप को कड़ी टक्कर दे रही है। वहीं कांग्रेस के खाते में कुल 6 प्रतिशत वोट आ रहे हैं और एक भी सीट उसके खाते में दर्ज होती नहीं दिख रही है। जनता जनार्दन का अंतिम फैसला 11 फरवरी को आएगा लेकिन कांग्रेस पार्टी को एक्जिट पोल के नतीजों ने ही दौड़ से पूरी तरह बाहर कर दिया है।
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