यूपी में 20 साल पुरानी है एक्सप्रेस-वे राजनीति, 341 किलोमीटर से 150 सीटें साधेंगे योगी

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Nov 16, 2021 | 18:27 IST

PM Modi Purvanchal Expressway Inauguration: यूपी में पूर्वांचल एक्स्प्रेस-वे पर राजनीति गरमा गई है। जहां पर भाजपा एक्स्प्रेस-वे के जरिए पूर्वांचल साधने की कोशिश कर रही है, वहीं अखिलेश इसे अपनी योजना बता रहे हैं।

Purvanchal Express way Politics
पूूर्वांचल एक्स्प्रेस-वे राजनीति  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • पूर्वांचल एक्स्प्रेस-वे 9 जिलों से होकर गुजर रहा है। जो कि 50 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर सीधे असर डाल सकता है।
  • पूर्वांचल में 150 से ज्यादा सीटें हैं, भाजपा के लिए 2017 की तरह 2022 के चुनावों में सीटें जीतने की चुनौती है।
  • पश्चिमी यूपी में किसान आंदोलन की वजह से भाजपा को झटका लग सकता है। ऐसे में पूर्वांचल उसके लिए बड़ी उम्मीद है।

PM Modi Purvanchal Expressway Inauguration:  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सबसे लंबे एक्सप्रेस वे, पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन कर दिया है। 341 किलोमीटर इस लंबे एक्सप्रेस-वे के जरिए 9 जिले जुड़ेंगे। उद्घाटन के मौके पर जिस तरह प्रधानमंत्री ने पुरानी सरकारों पर पूर्वांचल की अनदेखी के आरोप लगाए हैं। उससे साफ है कि 2022 के चुनावों में भाजपा सरकार, इसे एक बड़ा मुद्दा बनाएगी। असल में उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक्सप्रेस-वे की एंट्री आज से 20 साल पहले हो चुकी थी। जब 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने यमुना एक्सप्रेस-वे को बनाने का फैसला किया था। और उस वक्त से एक्सप्रेस-वे की राजनीति राज्य में प्रमुख मुद्दा बन गई।

मायावती को सपना पूरा करने में लगे 10 साल

साल 2002 में जब मायावती ने ग्रेटर नोएडा से आगरा को जोड़ने वाले 165 किलोमीटर एक्सप्रेस-वे को बनाने का सपना देखा, तो उसे पूरा करने में करीब 10 साल लग गए। 2003 में मायावती की सरकार गिर गई  और उसके बाद सत्ता मुलायम सिंह यादव के पास आ गई। जिनकी सरकार ने एक्सप्रेस-वे के निर्माण पर रोक लगा  दी। उसके बाद जब 2007 में  मायावती की दोबारा सरकार बनीं तो फिर से उसका निर्माण कार्य शुरू हुआ। लेकिन 2012 के चुनावों से पहले, वह उसका उद्घाटन नहीं कर पाई। हालांकि चुनाव अभियान में बसपा ने अपनी उपलब्धियां गिनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन वह सत्ता में वापसी नहीं कर पाईं और एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन का मौका 2012 में ही नए-नए मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव को मिला। एक्सप्रेस-वे ग्रेटर नोएडा, जेवर, अलीगढ़, हाथरस, मथुरा और आगरा  जिले को जोड़ता है।

अखिलेश ने बनवाया आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे

2012 में समाजवादी  पार्टी  की सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे बनाने का फैसला किया। 302 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस-वे का निर्माण कार्य 2014 में शुरू हुआ और यह दिसंबर 2016 में चुनाव से पहले जनता के लिए खुल गया। एक्सप्रेस-वे  आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, शिकोहाबाद, औरैया, कन्नौज, कानपुर, हरदोई, उन्नाव और लखनऊ से होकर गुजरता है। अखिलेश यादव ने 2017 के चुनावों में इसे अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया। लेकिन वह भी मायावती की तरह सत्ता में वापसी नहीं कर पाए।

नौ जिलों के जरिए योगी साधेंगे 150 सीटें

अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ  के ड्रीम प्रोजेक्ट पूर्वांचल एक्स्प्रेस के जरिए पार्टी पूरे पूर्वांचल को साध रही है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि पहले की सरकारें पूर्वांचल की अनदेखी करती रही हैं। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, से जो शहर जुड़ रहे हैं, वह कोई मेट्रो या विकसित शहर नहीं है। लेकिन अब पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे से इन शहरों को नई रफ्तार मिलेगी। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे लखनऊ, बाराबंकी, सुल्तानपुर,अमेठी,अयोध्या,अंबेडकर नगर, आजमगढ़,मऊ और गाजीपुर से गुजरेगा। इसके अलावा पूर्वांचल एक्स्प्रेस-वे से निकलते हुए लिंक एक्स्प्रेस-वे गोरखपुर को जोड़ेगा। पूर्वांचल में 150 से ज्यादा सीटें हैं, और उसमें से 100 से ज्यादा सीटें भाजपा ने जीती थी।

हालांकि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन पर निशाना साधा है। उन्होंने ट्वीट किया 'उद्घाटन फ़ीता आया लखनऊ से और नयी दिल्ली से कैंची आई, सपा के काम का श्रेय लेने को ‘खिचम-खिंचाई’ मची है. आशा है अब तक अकेले में बैठकर लखनऊवालों ने ‘समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे’ की लंबाई का आंकड़ा रट लिया होगा '। असल में पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे की परिकल्पना अखिलेश यादव की सरकार ने की थी। लेकिन एक्स्प्रेस-वे बन नहीं पाया था।

मोदी और योगी दोनों के लिए पूर्वांचल की जीत अहम

वैसे तो पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे जुड़े 9 जिलों में 50 से ज्यादा विधान सभा सीटें हैं। इसमें से 30 से ज्यादा सीटें भाजपा ने 2017 में जीतीं थीं। लेकिन भाजपा को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र बनारस और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि गोरखपुर पूर्वांचल में होने से उसे पूर्वांचल में किए गए कामों का डबल रिटर्न मिलेगा। इसीलिए प्रधानमंत्री ने पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करते वक्त भी कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट और प्रदेश में खुल रहे मेडिकल कॉलेज का जिक्र किया है।

पूर्वांचल में अखिलेश ने गठबंधन कर भाजपा को दी है चुनौती

असल में इस बार पूर्वांचल की राह, भाजपा के लिए 2017 की तरह आसान नहीं रहने वाली है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछली बार भाजपा के साथी रहे ओम प्रकाश राजभर ने , 2022 के लिए समाजवादी पार्टी यानी अखिलेश यादव के साथ गठबंधन कर लिया है। इसे देखते हुए राजभर समुदाय का वोट भाजपा से छिटक सकता है। हालांकि पार्टी ने इसे बैलेंस करने  के लिए निषाद पार्टी को इस बार अपने साथ जोड़ा है। वहीं अनुप्रिया पटेल का अपना दल पहले से ही पार्टी के साथ है। 

किसान आंदोलन के बाद भाजपा के लिए पूर्वांचल बेहद अहम

पिछले एक साल से चल रहे किसान आंदोलन को देखते हुए, भाजपा के लिए पश्चिमी यूपी में पिछली बार की तरह प्रदर्शन दोहराना चुनौती बन गया है। पार्टी के नेता भी मानते हैं, पिछले बार जैसा प्रदर्शन करना मुश्किल है। 2017 में पार्टी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की करीब 120 सीटों में से 80 से ज्यादा सीटें मिली थीं। लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी, आरएलडी और महान दल के साथ गठबंधन भाजपा विरोधी वोटों को एक-जुट करने की कोशिश की है। पश्चिमी यूपी की परिस्थितियों को देखते हुए भाजपा के लिए पूर्वांचल अब कहीं अहम हो गया है। इसे देखते हुए पार्टी कोई कसर नहीं छोड़ रही 

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