एक सांस में हम सब पी रहे हैं इतना कुछ, जानें कैसे बनता है स्मॉग

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Updated Nov 04, 2019 | 09:52 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

What is Smog: सर्दियों में कोहरा तो होता ही है। लेकिन इस समय हम सब कोहरे का नहीं बल्कि स्मॉग का सामना कर रहे हैं। यहां हम जानने की कोशिश करेंगे कि आखिर स्मॉग क्या होता है।

smog in delhi ncr
स्मॉग के चादर में लिपटा दिल्ली और एनसीआर 
मुख्य बातें
  • बीसवीं शताब्दी में स्मॉग शब्द का हुआ ईजाद, स्मोक और फॉग से मिलकर बना ये शब्द
  • स्मॉग में नाइट्रोडन आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड और सल्फर डाई आक्साइड की मात्रा ज्यादा
  • पीएम 2.5 और पीएम 10 स्मॉग का सबसे महत्वपूर्ण अंग, स्वास्थ्य के लिए होते हैं खतरनाक

नई दिल्ली। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिंट मीडिया या डिजिटल मीडिया हर जगह प्रदूषण की खबरें सुर्खियों में है, उसके पीछे वजह भी है क्योंकि दिल्ली और एनसीआर प्रदूषण के जिस कहर को देख रहा है वो कई तरह के सवालों को जन्म देती है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। इसके लिए आखिर कौन जिम्मेदार है। क्या पराली जलाने वाले किसान जिम्मेदार हैं। क्या सिर्फ सरकार जिम्मेदार है या वास्तव में किसी न किसी रूप में हम सब जिम्मेदार हैं।

यह सवाल अपने आप में जटिल है और इससे बच निकलने का आसान रास्ता यही होता है कि अपनी खामियों के लिए किसी दूसरे को जिम्मेदार ठहरा दो। ये बात सच है कि दूसरों को कसूरवार ठहराकर हर एक शख्स फौरी तौर पर अपनी जिम्मेदारियों को तिलांजलि दे सकता है। लेकिन प्रदूषण के कहर से उसके शरीर पर जो असर पड़ रहा है उससे वो कैसे भाग सकता है। यहां पर हम बताएंगे कि किस तरह से स्मॉग बनता है और एक सांस में हम क्या कुछ पी रहे हैं।


कैसे बनता है स्मॉग
धरती से ऊपर की तरफ पहली परत को आमतौर पर हम वायुमंडल या वातावरण कहते हैं जिसमें हवा होती है। जब इस हवा से प्रदूषण के कण चिपक जाते हैं तो उसे स्मॉग कहते हैं। स्मॉग दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें स्मोक और फॉग शामिल होता है। इस शब्द का ईजाद 20वीं शती में किया गया था। इसकी वजह से वातावरण की हवा में एक अजीब तरह की गंध आने लगती है।

ऐसा नहीं है कि स्मॉग के कहर का सामना हम सिर्फ सर्दियों में करते हैं। गर्मियों में भी हम इस समस्या से दो चार होते हैं। इसके लिए कोयले का जलाया जाना, औद्योगिक ईकाइयों से उत्सर्जन, जंगलों और खेती योग्य जमीनों में अवशेषों का जलाया जाना शामिल होता है। स्मॉग में पीएम 2.5 और पीएम 10 के कण होते हैं जिसमें पीएम 2.5 सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। दरअसल पीएम 2.5 बारीक कण होते हैं जिन्हें खुली आंखों से देख पाना संभव नहीं हो पाता। इसकी वजह से न केवल फेफड़े बल्कि किडनी और लीवर पर असर पड़ता है। इसकी वजह से अस्थमा और सूगर के मरीज, खून की कमी वाले शख्स ज्यादा प्रभावित होते हैं।

एक सांस में हम इतना कुछ पीते हैं।
अगर आप किसी के घर पर जाएं तो चाय पानी के जरिए स्वागत होता है। लेकिन किसी के यहां जाने पर  नाइट्रोजन आक्साइड, सल्फर आक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइन से होने लगे तो क्या करेंगे। जनाब आप कुछ नहीं कर सकते हैं, दरअसल ये सब चीजें आप का मेजबान आप को मुहैया नहीं करा रहा है बल्कि अनचाहे तौर पर आप सासों के जरिए इन गैसों को पी रहे हैं जिसके लिए हम सब कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं।
नाइट्रोजन आक्साइड
यह गैसों का समूह है जिसमें नाइट्रोजन ऑक्साइड घुली होती है। इसकी वजह से त्वचा के कैंसर का खतरा और प्रतिरोधत क्षमता में कमी आम बात है।
कॉर्बन मोनो आक्साइड
इस गैस की खासियत ये है कि न तो इसका रंग होता है और न ही गंध। यह गाड़ियों के ईंधन से पैदा होती है। इसका अर्थ ये है कि गाड़ियों की संख्या जितनी ज्यादा होगी उतना ही ज्यादा इस गैस का उत्सर्जन होगा। इसकी वजह से सुनने की क्षमता में कमी के साथ साथ सिर और सीने में दर्द होता है।
सल्फर डाई आक्साइड
ईंधन की वजह से वातावरण में सल्फर की मात्रा बढ़ जाती है और वातावरण की नमी में यह घुलकर सल्फ्यूरिक एसिड बना लेती है और इसकी वजह से सांसें उखड़ने लगती है। 

 

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