अभिनव कुमार, नई दिल्ली: आज जब इस वैश्विक महामारी से लड़ते हुए प्रथम मई को हम मजदूर/श्रमिक दिवस के रूप में मना रहे हैं तो ऐसे में मजदूरों से जुड़े तमाम मुद्दों पर सवाल उठना भी लाजमी है। जरूरी यह भी है, कि इस उपजे हालत में हम उनके अधिकार, उनके संघर्ष और ट्रेड यूनियन की भूमिका का भी अवलोकन करें। साथ ही यह भी देखे की आज विश्व पटल पर अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन किस तरह की जवाबदेही पर खरा उतर रहे हैं?
अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन(आई.एल.ओ) मॉनिटर के तीसरे संस्करण के अनुसार, जिसका शीर्षक है “कोविड19 और वर्ल्ड ऑफ़ वर्क” नाम से प्रकाशित एक रिपोर्ट 29 अप्रैल 2020 को प्रकाशित हुई है उसमे यह कहा गया है कि जैसे-जैसे आने वाले दौर में लोगों की नौकरी छूटती है, लगभग आधे वैश्विक कार्यबल को आजीविका खोने का खतरा महसूस होने लगेगा। आई.एल.ओ की प्रेस कांफ्रेंस के अनुसार कोविड-19 के लगातार बढ़ते प्रकोप के कारण वैश्विक स्तर पर काम के घंटों में निरंतर गिरावट देखने को मिल रही है जिसका मतलब यह है कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में 1.6 बिलियन श्रमिक, जो कि वैश्विक कार्यबल का लगभग आधा हिस्सा है, वो अपनी आजीविका को समाप्त होने के तत्काल खतरे के कतार में शामिल हो गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन की यह रिपोर्ट वाकई में तमाम विश्व के देशों के लिए खतरे की घंटी है।
लॉकडाउन के बाद ले-ऑफ के बढ़ते आसार
आज जब लॉकडाउन में तमाम देश अपने नागरिक के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है ऐसे में दुनियाभर के अर्थव्यवस्था में भूचाल दस्तक देने को तत्पर है। कई कंपनियां अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती, छंटनी और छुटियों के नियम में कटौती की शुरुआत कर चुकी है| खबर ये आ रही है उबर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी ने अपने 20 प्रतिशत कर्मचारियों की छंटनी की योजना बना चुकी है।
भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर सभी क्षेत्रों के लिए राहत पैकेज की वकालत की है ताकि सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था को रफ्तार दी जा सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में भारतीय मजदूर संघ ने कहा कि, ‘अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को साझा समर्थन दिया जान चाहिए। इस रणनीति में प्रमुख क्षेत्रों को वित्तीय प्रोत्साहन शामिल है, जिससे नकारात्मक प्रभाव को कुछ हद तक कम किया जा सके।’ उन्होंने दैनिक मजदूरों की समस्याओं पर ध्यान देने की मांग की थी और साथ ही श्रमिकों के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए इस बात पर भी बल दिया था।
प्रवासी मजदूर के अधिकार से सम्बंधित
प्रवासी मजदूर जिस तरीके से कोरोना से प्रभावित हुए है, आने वाले वक़्त में भारत में बहुत सारी कंपनियों में मजदूरों की भरी किल्लत देखने को मिल सकती है। सवाल यह उठता है, उन मजदूरों के अधिकारों का क्या? उनके भरण-पोषण का क्या? कौन उठाएगा उनकी जिम्मेदारी? जरूरत है आज सामाजिक सुरक्षा अधिनियम के पुरजोर क्रियानव्यन की, तभी जाकर कहीं न कहीं समाज में कुछ सुधार दिखाई देगा अन्यथा कोरोना के पश्चात् हालात सही नजर नहीं आ रहे हैं। हालांकि सरकार द्वारा लगातार आश्वासन दिया जा रहा है जिससे उम्मीद की एक किरण तो दिखाई देती है।
कैसा हो मॉडल श्रम कानून?
आज के मौजूदा हालत में जरूरत इस बात की हो गयी है की एक मजबूत श्रम कानून की आवश्यकता जान पड़ती है, प्राइवेट क्षेत्र में कोरोना के वजह से आये परिवर्तन से निपटने के लिए मजबूती के साथ श्रम अधिनियम के तमाम कानूनों का पालन किया जाए। जरूरत इस बात की भी है जैसे आजकल इ-फाइलिंग और इ-कोर्ट्स के जरिये सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट सुनवाई कर रही है वैसे ही लेबर कोर्ट को जनता के लिए सुलभ बनाया जाये।
अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन(आई.एल.ओ) की निर्णायक भूमिका
आज दुनिया भर में जब विश्व के कई देशों ने श्रम सम्बन्धी कानूनों का जो मजाक बनाया है उसका प्रभाव कोरोना महामारी के बाद 'लेबर वर्कफोर्स' पर दिखने वाला है। ऐसे में आई.एल.ओ की निर्णायक भूमिका और श्रम सम्बन्धी सुधार से जुड़े विषयों को सभी देशों को अवगत कराना अत्य धिक महत्वपूर्ण जान पड़ता है। वक़्त आ गया है जब आई.एल.ओ सही मायने में विश्व में श्रम अधिकार और उससे जुड़े तमाम मुद्दों को बहुत बेबाकी से उठाये और दुनिया को अवगत भी कराये।
(डिस्क्लेमर: लेखक अभिनव कुमार सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय में विधि संकाय के शिक्षक हैं। प्रस्तुत लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है। )
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