‘लव जिहाद’ का बहाना, धर्मांतरण पर निशाना ? आखिर क्यों हो रही है इतनी चर्चा

लव जिहाद के बारे में बीजेपी शासित राज्यों के सीएम ने जिस तरह से बयान दिए हैं आखिर उसका मतलब क्या है, क्या यह सिर्फ लव जिहाद से है या धर्मांतरण पर लगाम लगाने की कोशिश की जा रही है।

‘लव जिहाद’ का बहाना, धर्मांतरण पर निशाना ?
बल्लभगढ़ की निकिता मर्डर के बाद चर्चा में लव जिहाद 

(ओम तिवारी)
पिछले कुछ सालों से बीच-बीच में अचानक गरम हो जाने वाला ‘लव जिहाद’ का यह मुद्दा आखिर क्या बला है? क्या वाकई यह कोई हकीकत है या सिर्फ सियासी फसाना है? अगर हकीकत है तो बीजेपी शासित राज्यों की सरकारें और बीजेपी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार इस मुद्दे पर अलग-अलग जुबानों में बोलती क्यों नजर आती है? बीजेपी शासित राज्यों के मंत्री और केन्द्र सरकार में राजनाथ सिंह और जी. किशन रेड्डी जैसे बीजेपी के मंत्री एक दूसरे से सहमत क्यों नहीं दिखते? अंतरधर्मीय शादी के जो मामले कोर्ट तक पहुंचे और सुर्खियां बने उनमें ‘लव जिहाद’ के दावे निराधार क्यों साबित हुए? क्या ‘लव जिहाद’ के बहाने पूरे देश में धर्मांतरण पर पाबंदी की जमीन तैयार की जा रही है?

मध्य प्रदेश सरकार बनाने जा रही है कानून
मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून बनाने जा रही है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले ही ‘लव जिहाद’ करने वालों का राम नाम सत्य करने का संकेत दे चुके हैं. हरियाणा और कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने भी इस मामले में अपनी मंशा साफ कर दी है. अब सवाल यह है कि जिस अपराध की अभी तक व्याख्या नहीं हो सकी है, उसके खिलाफ कानून कैसे बनेगा? क्या सरकार दो मजहब के लोगों की शादी पर रोक लगा देगी? जो कि भारतीय कानून के मुताबिक नामुमकिन है और सुप्रीम कोर्ट देश के किसी भी हिस्से में बने ऐसे कानून को खारिज कर देगा. क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 21 के मुताबिक आपसी रजामंदी हो तो किसी भी भारतीय को अपना जीवनसाथी चुनने का कानूनी हक हासिल है. ऐसे में कोई भी सरकार अंतरधर्मीय शादी पर रोक नहीं लगा सकती.

क्या धर्मांतरण पर है निशाना
तो क्या बीजेपी शासित राज्यों में शादी से पहले धर्मांतरण पर रोक लगा दी जाएगी? क्या ऐसा मुमिकन है? वैसे तो संविधान के अनुच्छेद 25 के मुताबिक हर भारतीय को अपनी मर्जी के हिसाब से धर्म अपनाने, धर्म का प्रसार करने या कोई भी धर्म ना अपनाने का पूरा हक है. इसलिए तमाम विवादों और बीजेपी की पुरानी मांग होने के बावजूद केन्द्र सरकार पूरे देश में धर्मांतरण पर पाबंदी नहीं लगा सकती. क्योंकि यह मामला राज्य सरकारों के अधीन आता है, और अरुणाचल प्रदेश, ओडीशा, छत्तीसगढ़, गुजरात और झारखंड समेत देश के करीब 10 राज्यों में विशेष परिस्थितियों का हवाला देकर धर्मांतरण पर रोक लगाई जा चुकी है।

धर्म परिवर्तन पर वीरभद्र सरकार ने लगाई थी पाबंदी
ईसाई मिशनरियों पर आरोपों के बाद 2006 में हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में पहली बार किसी कांग्रेस सरकार ने धर्म परिवर्तन पर पाबंदी लगाई थी. तेरह साल बाद 2019 में जय राम ठाकुर की बीजेपी सरकार ने राज्य के कानून में बदलाव करते हुए ना सिर्फ जबरन धर्मांतरण पर सजा का प्रावधान बढ़ाया बल्कि धर्म परिवर्तन के लिए होने वाली शादी को भी गैरकानूनी करार दिया. नए कानून के मुताबिक धर्म परिवर्तन के इच्छुक व्यक्ति को एक महीना पहले ही जिला प्रशासन को इसकी जानकारी देनी होगी. 

क्या लागू किया जाएगा हिमाचल मॉडल
बताया जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश के इसी मॉडल को मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक जैसे बीजेपी शासित राज्यों में अपनाया जाएगा. शादी से पहले धर्मांतरण पर रोक लगाई जाएगी. शादी के लिए जबरन या प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन पर पाबंदी होगी, हालांकि धर्म बदलने के लिए एक महीना पहले जिला प्रशासन को जानकारी देने का प्रावधान भी रखा जाएगा ताकि कोर्ट द्वारा कानून को अमान्य ठहराये जाने का खतरा टाला जा सके. 

हिंदुवादी गुटों और पार्टियों का मानना है कि ‘लव जिहाद’ कट्टरवादी मुसलमानों की सोची समझी साजिश है. जिसके जरिए जानबूझकर हिंदू लड़कियों को प्यार के जाल में फंसाया जाता है, फिर जबरन उनका धर्म परिवर्तन कर उनसे शादी की जाती है. क्योंकि शरीयत के मुताबिक शादी के लिए पुरुष और महिला दोनों को मुसलमान होना जरूरी है. हिंदुवादी संगठनों के मुताबिक धर्मांतरण की इस साजिश से भारत में मुसलमान अपनी आबादी बढ़ा रहे हैं और सख्त कानून बनने से ‘लव जिहाद’ पर विराम लग जाएगा. 

निकिता मर्डर के बाद चर्चा में लव जिहाद
इस बार ‘आग’ हरियाणा के बल्लभगढ़ में निकिता हत्याकांड से ‘भड़की’. रिपोर्ट आई कि लड़की धर्म परिवर्तन और शादी के लिए राजी नहीं हुई इसलिए आरोपी तौसीफ ने उसकी हत्या कर दी. लिहाजा सोशल मीडिया से लेकर सियासी गलियारों तक एक बार फिर ‘लव जिहाद’ पर हंगामा खड़ा हो गया. लेकिन गौर करने वाली बात यह कि जिस ‘लव जिहाद’ का नाम लेकर बीजेपी के नेता चीख-चीख कर कानून लाने की बात कर रहे हैं, उसकी सरकार के पास ना तो परिभाषा है और ना ही कोई आंकड़ा मौजूद है.

फरवरी 2020 में खुद बीजेपी नेता और केन्द्र में गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी संसद को इसकी जानकारी दे चुके हैं. रेड्डी ने कहा कि मौजूदा कानून में कहीं ‘लव जिहाद’ की कोई व्याख्या नहीं है, ना ही किसी केन्द्रीय एजेंसी ने ऐसे किसी मामले की सरकार को जानकारी दी है. 2014 में बतौर गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी इस पर अपनी अनभिज्ञता जाहिर कर चुके हैं. तब मीडिया ने उनसे ‘लव जिहाद’ के मामलों पर सवाल पूछे, तो पलटकर उन्होंने जवाब दिया कि पहले वो इसकी परिभाषा समझना चाहेंगे. 

केरल का हादिया मामला रहा चर्चा में 
केरल की हादिया जो मामला कई दिनों तक सुर्खियों में बना रहा, उसमें भी जांच एजेंसियां ‘लव जिहाद’ का एंगल साबित नहीं कर पाईं. जबकि लड़की के पिता का आरोप था कि शफीन नामके शख्स ने जबरन उनकी बेटी अखिला अशोकन का धर्म बदलवाकर उससे शादी कर ली. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा लेकिन हादिया ने साफ कर दिया कि वो अपने शौहर के साथ रहना चाहती है. जहां केरल के मुख्यमंत्री रहे ओमान चांडी 2006 से 2014 के बीच राज्य में ढ़ाई हजार से ज्यादा लड़कियों के धर्म परिवर्तन की बात विधानसभा में कबूल चुके हैं, जबरन धर्म परिवर्तन के सबूत होने या ‘लव जिहाद’ का कोई मामला सामने से उन्होंने साफ इनकार कर दिया. 

उत्तर प्रदेश के कानपुर में ‘लव जिहाद’ के कथित मामलों की जांच के लिए सरकार ने अगस्त 2020 में एसआईटी को सौंपी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 14 में से 7 मामलों में आपसी रजामंदी से शादी की पुष्टि हो चुकी है, बाकी मामलों की जांच जारी है. धर्म परिवर्तन कर शादी के बाद सुरक्षा की मांग करने वाले एक दंपति की याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद कोर्ट ने हाल में ही कहा कि शादी के लिए धर्मांतरण को स्वीकार नहीं किया जा सकता. जस्टिस महेश चन्द्र त्रिपाठी के इस फैसले ने बीजेपी की मुहिम में नई जान फूंक दी. पहले योगी आदित्यनाथ ने ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून का भरोसा दिया, फिर एक-एक कर हरियाणा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकारें भी सामने आ चुकी हैं. 

कैसे साबित होगा लव जिहाद
सवाल यह है कि कानून बन भी जाए तो ‘लव जिहाद’ का आरोप साबित कैसे हो? जहां प्यार पर जाति और धर्म का पहरा कोई नहीं बात है, वहीं शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने में भी प्रेमियों को कोई गुरेज नहीं होता. कोई दबाव में आकर धर्मांतरण कर भी ले तो आगे शांति से अपनी शादीशुदा जिंदगी बसर करना चाहता है, अगर पति-पत्नी के संबंध ठीक हों तो धर्म की खातिर कानूनी पचड़ों में पड़कर अपना भविष्य दांव पर नहीं लगाना चाहता. यही केरल की हादिया के साथ हुआ और कानपुर के उन मामलों में भी हुआ जिसे ‘लव जिहाद’ बताया जा रहा है. 

अगर शादी के लिए जबरन धर्मांतरण की घटना होती है तो कानून बनाकर उसे जरूर रोका जाना चाहिए. गुनहगारों को सजा भी मिलनी चाहिए. अगर ऐसी कोई साजिश किसी धार्मिक कट्टरवाद के तहत अंजाम दी जा रही है तो सबूत भी सामने आने चाहिए और उसे बेनकाब करने की जिम्मेदारी भी सरकार की है. लेकिन इतना तो तय है कि इस देश में ना तो अंतरधर्मीय शादी पर पाबंदी लगाई जा सकती ना ही दो धर्म के लोगों के प्रेम पर पाबंदी लग सकती है. शादी से इतर देश में जबरन धर्मांतरण की हर कोशिश को विफल करने की जरूरत है और इस मुहिम में सभी राजनीतिक दलों को साथ आना चाहिए. वक्त की दरकार है कि धर्म पर सियासत के दायरों को मिलजुल कर कम किया जाए, आपसी टकराव की संभावनाओं को कम किए जाएं. साथ ही जरूरत इस बात की भी है कि संविधान के मुताबिक धर्म का चुनाव और उसके निर्वहन की व्यक्तिगत आजादी भी अक्षुण्ण रहनी चाहिए.

डिस्क्लेमर: टाइम्स नाउ डिजिटल अतिथि लेखक है और ये इनके निजी विचार हैं। टाइम्स नेटवर्क इन विचारों से इत्तेफाक नहीं रखता है।

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