मोरे चरखा का न टूटे तार... लोकगीतों में रचे-बसे हैं बापू और उनके किसान आंदोलन

देश
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Oct 02, 2021 | 11:39 IST

Mahtma Gandhi Jayanti: महात्मा गांधी, जब दक्षिण अफ्रीका से भारत पहुंचे तो उन्होंने सबसे पहले पूरे देश की एक आम इंसान के तौर पर यात्रा की और किसान आंदोलन से अपने सत्याग्रह की शुरूआत की।

Mahtama Gandhi Birthday
महात्मा गांधी ने किसानऔर मजदूरों के जरिए देश को एक सूत्र में पिरो दिया। फोटो-आई स्टॉक 
मुख्य बातें
  • चम्पारण आंदोलन से ही मोहनदास करम चंद गांधी को महात्मा की उपाधि मिली।
  • गांधी ने किसान और आम लोगों की समस्याओं को आजादी के आंदोलन से जोड़ दिया।
  • उनकी लोकप्रियता का आलम यह था कि उन्हें लोकगीतों में हर समस्या का तारणहार मान लिया गया।

महात्मा गांधी ने जब दक्षिण अफ्रीका में टॉलस्टॉय आश्रम बनाया तो उन पर दार्शनिक रस्किन का गहरा प्रभाव था। उनकी किताब 'अन टू दिस लास्ट' के जरिए ही, उन्हें पहली बार  समाज के उस अंतिम आदमी का अहसास हुआ। जिसका वह अपने जीवन में  बार-बार जिक्र करते रहे। जिसके लिए  वह कहते हैं कि कोई भी काम करने से पहले, हमेशा उस अंतिम आदमी के बारे में सोचो, जो कमजोर, असहाय है। असल में महात्मा गांधी को पहली बार इसी टॉलस्टॉय आश्रम से किसान के अस्तित्व और जीवन का अहसास हुआ। और उसके बाद जब वह भारत पहुंचे तो सबसे पहले किसान आंदोलन से ही उन्होंने भारत में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया। गांधी चंपारण आंदोलन से इतने लोकप्रिय हो गए कि उन पर लोकगीत बनने लगे। कोई उन्हें दूल्हा कहने लगा तो कोई भगवान का दर्जा देने लगा। 

गोपाल कृष्ण गोखले के बुलावे पर भारत आए गांधी

महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में अपने  अहसहयोग आंदोलन के जरिए लोकप्रिय हो चुके थे, और उनकी लोकप्रियता भारत में भी पहुंच गई थी। यही वजह थी कि गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधी को भारत आने के लिए कहा था। जब वह 1915 में भारत पहुंचे , तो भारत की स्थिति से पूरी तरह से अनजान थे। गांधी, गोखले को अपना गुरू मानते थे। और इसी आधार पर गोखले उनसे कहते हैं 'एक साल आंखें खुली और मुंह बंद रखो और इस देश को जानो-पहचानो और फिर तय करना कि क्या और कैसे करना है।' गांधी ने अपनी गुरू की बात मान ली और पूरे साल , भारत के एक गरीब नागरिक की वेश-भूषा में रेलगाड़ी के तीसरे दर्ज में बैठकर सारा देश घूमते हैं और यहीं से असली गांधी के जन्म की शुरूआत होती है। और जिसका पहला प्रयोग बिहार के चम्पारण में दिखाई देता है।

लोकगीतों में गांधी

मोरे चरखा के टूटे न तार, चरखवा चालू रहे।
गान्ही बाबा बनलै दुलहवा, अरे दुल्हिन बनी सरकार, चरखवा चालू रहे

इस लोक गीत में महात्मा गांधी के आने के बाद  सुराज की उम्मीद जग गई है...जिसमें महात्मा गांधी को दुल्हा बताया गया है
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कातब चरखा, सजन तुहु कात, 
मिलही एहि से सुरजवा न हो, 
पिया मत जा पुरूबवा के देसवा न हो

उस समय जब मजदूर पूरब देस यानी कोलकाता, रंगून कमाने जाते थे तो उनकी पत्नियां मना करते हुए कह रही हैं कि परदेस क्या करने जाना है...घर में ही रहकर चरखा चलाओ, हम भी चलाएंगे, गांधीजी कह रहे हैं कि इससे कमाई भी होगी, सुराज भी आएगा 

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अपने हाथे चरखा चलउबै, हमार कोउ का करिहैं
गांधी बाबा से लगन लगउबै, हमार कोउ का करिहैं
सासू  ननद चाहे मारैं गरियावैं
चरखा कातब नाहीं छोड़बै, हमार कोउ का करिहैं

इस गाने में में एक गांव की स्त्री कहती  है  कि अपने हाथ से चरखा चलाउंगी, गांधी बाबा से लगन  लगाउंगी, सांस-ननद चाहे गाली दें, चरखा कातना  नहीं छोडूंगी।
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गांधी बाबा की है स्वर्ग कै सफरिया
लगनिया लागी भारत से रही
नाथू गोली जब चलाइस, बापू राम राम गोहराइन
देसवा होइग रै अनाथ बापू मारा गए ना

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चम्पारण किसान आंदोलन ने बदल दी दिशा

मोहनदास करम चंद गांधी को महात्मा बनाने वाला बिहार का चम्पारण आंदोलन ही है। गांधी अपनी आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में लिखते हैं, कि मैं चम्पारण का नाम तक नहीं जानता था। नील की खेती होती है , उसका ख्याल तक दिमाग में नहीं था, नील की गोटियां चम्पारण में बनती हैं, इसका भी अंदाजा नहीं था। और इसके कारण हजारों किसानों को कष्ट भोगना पड़ता था, इसका अहसास नहीं था। लेकिन गांधी जब किसान राजकुमार शुक्ल के कहने पर चम्पारण पहुंचे तो, सब कुछ बदल गया। और अंग्रेजों को 135 साल पुरानी प्रथा को बदलना पड़ा। चम्पारण में गांधी एक किसान बन कर, देश के पहले राजनैतिक किसान आंदोलन का नेतृत्व करते हैं। वैसे तो यह नील की खेती की शोषणकारी प्रथा से मुक्ति का आंदोलन था। लेकिन किसान आंदोलन को  आजादी की लड़ाई से भी जोड़ते हैं और  भारत में  कांग्रेस का स्वरूप ही बदल देते हैं।

खेड़ा सत्याग्रह

 चम्पारण के बाद गांधीजी ने साल 1918 में गुजरात के के खेड़ा किसानों की समस्याओं को लेकर आन्दोलन शुरू किया।  खेड़ा के कुनबी-पाटीदार किसानों ने सरकार से लगान में राहत की मांग की, लेकिन उन्‍हें कोई रियायत नहीं मिली। गांधीजी ने 22 मार्च, 1918 को खेड़ा आन्दोलन की बागडोर संभाली। गांधी जी ने खेड़ा के किसानों को सत्याग्रह करने को कहा और उका अर्थ समझाते हुए कहा  'सत्य की खातिर आग्रह पूर्वक ना कहना ही सत्याग्रह है।' और वहीं पर अहिंसा का नारा देते हुए उन्होंने कहा 'मैं आपको हक दिलवाऊंगा, पर एक शर्त है। अंग्रेज सरकार भले ही डंडे बरसाए या गोलियां, आप हिंसा नहीं करेंगे। यदि हिंसा हुई तो सत्याग्रह छोड़ दूंगा।' जाहिर है कि महात्मा गांधी ने देश को एक सूत्र में पिरोने के लिए गांव का रास्ता अपनाया और जन समस्याओं को आजादी के आंदोलन से जोड़ दिया। और उसी का परिणाम पूरे भारत में अंग्रेजों के खिलाफ माहौल हो गया और हमें आजादी मिली।

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