नई दिल्ली: देश के गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार को कहा था कि हिंदी को स्थानीय भाषाओं के नहीं, बल्कि अंग्रेजी के विकल्प के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। शाह ने संसदीय राजभाषा समिति की 37वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्णय किया है कि सरकार चलाने का माध्यम राजभाषा है और यह निश्चित तौर पर हिंदी के महत्व को बढ़ाएगा।
वहीं इसे लेकर कुछ राजनीति दलों की मिली जुली प्रतिक्रिया सामने आ रही है, कांग्रेस ने बीजेपी पर सास्कृतिक आतंकवाद का आरोप लगाया है वहीं टीएमसी ने आलोचना करते हुए कहा है कि हम हिंदी का सम्मान करते हैं लेकिन हम हिंदी थोपने का विरोध करते हैं।
पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष और सांसद अधीर रंजन चौधरी ने इस मामले पर ट्वीट करते हुए लिखा है- हम इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं (यूनियन होम मिनिस्टर की टिप्पणी 'हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए')।
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिद्धरमैया ने शुक्रवार को कहा कि हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा नहीं है। उन्होंने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों के खिलाफ 'सांस्कृतिक आतंकवाद' के अपने एजेंडे को शुरू करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। राजभाषा के संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की टिप्पणी पर आपत्ति जताते हुए, कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता ने उन पर अपने राजनीतिक एजेंडे के वास्ते अपने गृह राज्य गुजरात और मातृभाषा गुजराती से हिंदी के लिए विश्वासघात करने का आरोप लगाया।
सिद्धरमैया ने 'इंडिया अगेंस्ट हिंदी इम्पोजिशन' टैगलाइन के साथ ट्वीट किया,'एक कन्नड़भाषी के रूप में, मैं गृह मंत्री अमित शाह की राजभाषा और संचार के माध्यम को लेकर की गई टिप्पणी के लिए कड़ी निंदा करता हूं। हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है और हम ऐसा कभी नहीं होने देंगे।' उन्होंने कहा कि भाषाई विविधता हमारे देश का सार है और हम एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करेंगे। बहुलवाद ने हमारे देश को एक साथ रखा है और भाजपा द्वारा इसे खत्म करने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध किया जायेगा।
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