नई दिल्ली: गैंगस्टर विकास दुबे अंतत: एनकाउंटर में मारा गया औऱ उसके मारे जाने के बाद तमाम सवाल उठ रहे हैं और उठने भी चाहिए। सवाल अहम ये भी कि आखिर एक दुर्दांत अपराधी जो महाकाल मंदिर में दर्शन करने जाता है औऱ फिर पुलिस पकड़ लेती है लेकिन वह तब भी भागने की कोशिश नहीं करता है। ऐसे में स्वाभाविक है कि पुलिस कस्टडी में रहते हुए वह भागने की कोशिश कैसे कर सकता है? वो भी तब जब उसके पीछे पूरा पुलिस काफिला चल रहा हो। इन सवालों के जवाब तो यूपी पुलिस ही बेहतर तरीके से दे पाएगी।
उठ रहे हैं सवाल
यह तो वह देश है जिसने अजमल कसाब जैसे आतंकी को अपनी बात रखने के लिए पूरा मौका दिया। इस न्यायिक प्रणाली के माध्यम से कसाब हो या फिर अफजल गुरु, सबको सजा मिली। तुरंत न्याय, न्याय नहीं बदला होता है जो अपराधियों का काम है। अब बात करते हैं एनकाउंटर पर उठ रहे सवालों की। दरअसल सोशल मीडिया पर एक तबका ऐसा है जो कह रहा है कि बिल्कुल सही किया क्योंकि ऐसे अपराधी बाद में सबूतों के आधार पर बरी हो जाते हैं और फिर नेता या मंत्री बनते हैं। वहीं दूसरे लोग भी हैं जो कह रहे हैं कि विकास जिंदा रहता तो कई नेताओं, पुलिसकर्मियों के गठजोड़ का खुलासा कर देता और कई चेहरे बेनकाब होते।
इतिहास को नहीं भूलना चाहिए
खैर ये तो रही बात सोशल मीडिया के शूरवीरों की, अब बात करते हैं कि अगर विकास जिंदा रहता तो क्या होता। कई लोगों को लगता है कि विकास जिंदा रहता तो वो कई खुलासे कर देता। ये बात हजम नहीं होती और इसके कई उदाहरण सामने हैं। विकास दुबे ने जब 2002 में थाने में घुसकर बीजेपी विधायक संतोष शुक्ल की गोली मारकर हत्या की थी तो किसने उसके खिलाफ गवाही दी थी? सैकड़ों लोगों ने देखा, किसी ने गवाही नहीं दी, कोर्ट से छूट गया। अगर विकास जिंदा रहता तो वह तब भी अपना मुंह शायद ही खोलता क्योंकि उसे इसी सिस्टम में रहकर अपनी राजनीति या गैंग चलाना था। अगर वह जिंदा रहता तो शायद जेल से और सशक्त होकर अपना सम्राज्य चलाता और गवाहों को प्रभावित करनी की पूरी कोशिश करता और फिर कभी मंत्री भी बन सकता था।
शहाबुद्दीन औऱ अंसारी बंधुओं को कौन नहीं जानता
यही वो सिस्टम है जिसने विकास दुबे को यहां तक पहुंचाया। जो लोग कह रहे हैं कि वो कई गठजोड़ का खुलासा करता उन्हें एक बार बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय के हत्यारों के बारे में पता करना चाहिए कि उन्हें किस तरह सम्मानित कर विधानसभा और संसद तक पहुंचाया गया और अदालत से बरी हुए। शहाबुद्दीन के बारे में कौन नहीं जानता लेकिन सबको पता है कि उसका क्या हुआ बल्कि उलटा राजनीतिक जमीन मजबूत हुई और सांसद बनकर संसद तक पहुंचा। कुंडा में पुलिस उपाधीक्षक जिया उल हक की हत्या के बाद क्या हुआ वो सारा देश जानता है।
एनकाउंटर को सहीं नहीं ठहरा सकते
एककाउंटर पर सवाल उठ रहे हैं और उठाए भी जाने चाहिए। इस सिस्टम में विकास दूबे जैसे लोग जेल से चुनाव जीत लेते हैं। कहने का मतलब ये है कि विकास जैसे लोग ही सिस्टम की खामियों का फायदा उठाते हैं और फिर राजनीति करते हैं। यहां हम विकास के एनकाउंटर को कतई सहीं नहीं ठहरा रहे हैं।
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