नई दिल्ली : उत्तर दिल्ली नगर निगम ने उस प्रस्ताव को मंजूरी दी है, जिसमें इस क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली मीट की दुकानों और रेस्टोरेंट को पोस्टर के जरिये यह बताना होगा कि वे हलाल मीट परोस रहे हैं या झटका मीट। मेयर जय प्रकाश ने इसे आस्था से जुड़ा मसला बताया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है, जबकि इसे लेकर बीते कुछ समय से सियासी विवाद की स्थिति देखी जा रही है।
हलाल और झटका मीट को लेकर विवाद की स्थिति क्यों है? इसे देखें तो सबके अपने-अपने तर्क हैं। इसके पीछे दलील मुख्य रूप से धार्मिक वजहों की दी जाती है, लेकिन इसकी सियासी जड़ें कहीं अधिक गहरे नजर आती हैं। दलीलें हाईजीन और मांस की क्वालिटी को लेकर भी दी जाती हैं तो जानवरों को दोनों ही प्रक्रिया में होने वाली तकलीफ का जिक्र भी आता है।
हलाल और झटका मीट को लेकर विवाद चाहे जिस भी वजह को लेकर हो, सभी बातों में एक चीज समान रूप से नजर आती है, जानवर को मारने के लिए चाहे हलाल प्रक्रिया अपनाई जाए या झटका, जान तो उसकी दोनों में परिस्थितियों में जाती है और खाने वाले को एक खास स्वाद मिलता है, जो किसी को पसंद आ सकता है और किसी को नहीं।
हलाल और झटका मीट में अंतर तलाशें तो यह और कुछ नहीं, बल्कि मीट निकालने के लिए जानवर पर वार करने की अलग-अलग प्रक्रिया भर नजर आती है। झटका मीट के लिए जहां जानवर की गर्दन पर तेजधार वाले हथियार से वार किया जाता है और एक ही झटके में उसका काम तमाम कर दिया जाता है, वहीं हलाल मीट के लिए जानवर की सांस वाली नस काट दी जाती है, जिसके कुछ देर बाद ही उसकी जान चली जाती है।
जानवर की जान दोनों परिस्थितियों में जाती है, लेकिन जैसा कि सभी के अपने-अपने तर्क होते हैं, इन दोनों तरीकों के भी समर्थक और विरोधी हैं। झटका की तरफदारी करने वाले कहते हैं कि इसमें जानवर को दर्द से नहीं गुजरना पड़ता, क्योंकि एक झटके में ही सबकुछ हो जाता है और उसकी जान लेने से पहले उसे बेहोश भी कर दिया जाता है, ताकि उसे काटने के दौरान तकलीफ न हो।
मीट खाने वाले यूं तो हर धर्म में हैं, लेकिन जानवरों के काटने के तरीकों को लेकर सबकी अपनी मान्यताएं और दलीलें हैं। जैसा कि उत्तर दिल्ली नगर निगम के मेयर जयप्रकाश ने हिंदू और सिख धर्म में 'हलाल' मांस को निषिद्ध बताया है, उसी तरह इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, हलाल के अलावा अन्य किसी भी तरह के मीट की मनाही का जिक्र होता है।
बहरहाल, जानवरों को काटने की प्रक्रिया का जिक्र करें तो हलाल को जहां पारंपरिक तरीका माना जाता है, वहीं जानकारों का मानना है कि झटका का जिक्र 20वीं सदी में मिलना शुरू हुआ और इसे यह कहकर प्रचारित किया गया कि इसमें जानवरों को दर्द कम होता है। समय के साथ ये मान्यताएं मजबूत होती गईं और दुकानों में हलाल और झटका मीट के अलग-अलग ग्राहक हैं।
मीट के लिए जानवर को मारने के दो अलग-अलग तरीकों को बेहतर बताने के लिए दी जाने वाली दलीलें हों या इसका कोई धार्मिक या सियासी कारण हो, इतना तय है कि मीट जानवर को मारकर ही हासिल किया जाता है, भले ही उसे मारने के लिए कोई भी तरीका अपनाया जाए।
Times Now Navbharat पर पढ़ें India News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।