Immunity in Hindi: पिछले दो साल से एक चर्चा जोरों पर है कि अगर किसी को कोविड जैसी खतरनाक बीमारी से बचाव करना है तो उसे अपनी शरीर की इम्यूनिटी में इजाफा करना होगा, बढ़ाना होगा। इम्यूनिटी कैसे बढ़े और इसके लिए क्या किया जाए इसे लेकर इसपर तमाम दावे और रिसर्च होते रहे। अब हाल ही में एक नया रिसर्च सामने आया है कि आपके हाथों की उंगलियां भी आपके शरीर की इन्यूनिटी को जानने में सहायक हो सकती है।
(यूट्रेक्ट विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान और औषधि विज्ञान के प्रोफेसर अल्बर्ट जे आर हेक) यूट्रेक्ट (नीदरलैंड)- ऐसा प्रतीत होता है कि हर व्यक्ति की रोग प्रतिरोधी प्रणाली अलग होती है। मैंने और मेरे सहयोगियों ने स्वस्थ और बीमार लोगों के रक्त में एंटीबॉडी को मापने के बाद रोग प्रतिरोधी क्षमता में इस विविधता का पता लगाया।यह अनुसंधान यह बता सकता है कि कोविड-19 के टीके कुछ लोगों के लिए कम प्रभावी क्यों प्रतीत होते हैं। इसी के साथ यह व्यक्तियों में विशेष रूप से प्रभावी एंटीबॉडी की पहचान करने और उन्हें प्राप्त करने तथा दूसरों को ठीक करने में उनके उपयोग की संभावना की जानकारी देता है।
हमारा शरीर रोजाना कीटाणुओं से लड़ता है
हमारे रोजाना जीवन में हमारे शरीर का कई कीटाणुओं से सामना होता है और वे उस पर हमला करते हैं। वे हमारे शरीर पर नियंत्रण हासिल करने के लिए हमारे शरीर में बड़ी चतुराई से प्रवेश करते हैं। सौभाग्य की बात है कि हमारे पास एक शक्तिशाली सुरक्षा प्रणाली, हमारी रोग प्रतिरोधी क्षमता है।यदि हमारी रोग प्रतिरोधी क्षमता अच्छे से काम करती है, तो हम लगातार एवं आक्रामक तरीके से हम पर हमला करने वाले अधिकतर कीटाणुओं से सफलतापूर्वक लड़ सकते हैं। हमलावर कीटाणुओं को बेअसर करने के लिए हमारे शस्त्रागार में प्रोटीन अणु हमारे हथियार होते हैं जिन्हें एंटीबॉडी कहा जाता है।
हर रोगाणु से लड़ने के लिए एंटीबॉडी की जरूरत
हर कीटाणु से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए अलग हथियारों (एंटीबॉडी) की आवश्यकता होती हैं। अच्छी बात यह है कि हमारे शरीर ने अरबों विभिन्न एंटीबॉडी मुहैया कराए हैं, लेकिन ये सभी एंटीबॉडी एक ही समय पर नहीं बन सकते। अक्सर कुछ विशेष एंटीबॉडी किसी एक विशेष कीटाणु के हमले के समय ही बनते हैं।यदि हम जीवाणुओं से संक्रमित होते हैं, तो हम उन जीवाणुओं पर हमला करने और उन्हें मारने के लिए एंटीबॉडी बनाना शुरू कर देते हैं। यदि हम कोरोना वायरस से संक्रमित होते हैं, तो हम उस वायरस को बेअसर करने के लिए एंटीबॉडी बनाना शुरू कर देते हैं। फ्लू वायरस से संक्रमित होने पर भी हम फिर से अन्य एंटीबॉडी बनाते हैं।एक समय यह ज्ञात नहीं था कि रक्त में कितने अलग-अलग एंटीबॉडी बनते हैं और हमारे रक्त में कितने एंटीबॉडी मौजूद होते हैं। कई वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि यह कई अरब से अधिक हैं और इसलिए लगभग अथाह हैं।
सैद्धांतिक रूप से, हमारे शरीर में हजारों अरबों विभिन्न एंटीबॉडी बनाने की क्षमता है, लेकिन पहला आश्चर्य तब हुआ जब हमने देखा कि स्वस्थ और रोगग्रस्त दोनों लोगों के रक्तप्रवाह में उच्च सांद्रता में केवल कुछ सौ अलग-अलग एंटीबॉडी मौजूद थे।
हमें दूसरी बार हैरानी तब हुई, जब रक्त की कुछ बूंदों से इन प्रोफाइल का अध्ययन करते समय हमने देखा कि रोगाणुओं के खिलाफ हर व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली अलग-अलग प्रतिक्रिया देती है और प्रत्येक व्यक्ति की एंटीबॉडी प्रोफाइल अलग होती है।
इन एंटीबॉडी की सांद्रता बीमारी के दौरान या टीकाकरण के बाद एक अनोखे तरीके से बदल जाती है। परिणाम यह बता सकते हैं कि क्यों कुछ लोगों को फ्लू या कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा अधिक होता है या वे दूसरों की तुलना में कुछ बीमारियों से तेजी से ठीक क्यों होते हैं।
अब तक, वैज्ञानिक मानते थे कि रक्त में एंटीबॉडी के अत्यधिक जटिल मिश्रण का सटीक रूप से पता लगाना असंभव है, लेकिन मास स्पेक्ट्रोमेट्री पदार्थों को उनकी आणविक संरचना के आधार पर अलग करती है, और चूंकि प्रत्येक विशिष्ट एंटीबॉडी की एक अलग आणविक संरचना होती है, इसलिए हम सभी एंटीबॉडी को व्यक्तिगत रूप से मापने के लिए तकनीक का पता लगाने में सफल रहे।
100 लोगों में एंटीबॉडी प्रोफाइल मापा गया
इस पद्धति का उपयोग लगभग 100 लोगों में एंटीबॉडी प्रोफाइल को मापने के लिए किया गया है। इन लोगों में कोविड-19 रोगी और कोविड-19 के टीके वाले लोग शामिल थे। एक बार भी ऐसा नहीं हुआ, जब हमें दो अलग-अलग लोगों में एक ही एंटीबॉडी मिली हों, भले ही उन्होंने एक ही टीका लगवाया हो। यह कहना उचित है कि हर किसी की एंटीबॉडी प्रोफाइल उनके फिंगरप्रिंट यानी उंगलियों के निशान की तरह ही अद्वितीय होती है। (एजेंसी इनपुट के साथ)