Chanakya Niti: विद्या, धन, कुल और सुंदरता इन परिस्थितियों में हो जाती है नष्‍ट, रहें सावधान

Chanakya Niti in hindi: आचार्य चाणक्य की नीतियां हमें जीवन जीने का सही रास्ता दिखाती है। अगर इन नीतियों का हम पालन करें तो मुश्किल हालातों से निपट सकते हैं। ये हमें हर परिस्थिति से बाहर निकलने में हमारा मार्ग दर्शन करती हैं।

Chanakya Niti
Chanakya Niti  
मुख्य बातें
  • बिना गुण के व्‍यक्ति की सुंदरता व्‍यर्थ होती है
  • जिस विद्या से लक्ष्‍य प्राप्‍त न हो वह किसी काम की नहीं
  • जिस धन का सदुपयोग न हो सके वह नष्‍ट हो जाती है

Chanakya Niti in hindi: आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्‍त्र में कई ऐसे सूत्र बताए हैं, जो जीवन को आसान बना सकते हैं। उनके द्वारा बताए गई नीतियां व्‍यक्ति को कठिन से कठिन वक्‍त को पार करने का हौसला देती हैं। साथ ही इन नीतियों को अपना कर व्‍यक्ति अपने जीवन को खुशहाल व सफल बना सकता है। आचार्य चाणक्‍य ने अपनी नीति शास्‍त्र में व्‍यक्ति की सुंदरता, ज्ञान और धन के बारे में भी बहुत कुछ बताया है, साथ ही यह भी बताया है कि ये चीजें किन परिस्थितियों में व्यर्थ हो जाती हैं।

आचार्य चाणक्य के नीति शास्‍त्र के अनुसार, किसी भी व्‍यक्ति के शरीर की सुंदरता उसका बाहरी स्‍वरूप होता है। इसका उसके अंदर मौजूद गुणों से कोई लेना-देना नहीं होता। अगर कोई व्यक्ति सुंदर है, लेकिन उसमें सदगुण नहीं है तो उसकी सुंदरता को व्यर्थ ही समझना चाहिए। बिना गुण के सुंदरता किसी काम की नहीं, वह तो सिर्फ छलावा मात्र है।

दुष्टता कुल को नष्ट कर देती है
आचार्य चाणक्य के अनुसार, कोई व्‍यक्ति अगर दुष्ट स्वभाव का है तो वह चाहे कितने ही उच्च कुल का हो, उसका कुल नष्ट होने की संभावना बनी रहती है। क्योंकि किसी कुल से मिले संस्कार के अनुसार ही व्यक्ति का आचरण होता है। साथ ही जैसा व्‍यक्ति का आचरण वैसा ही कुल होता है।

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लक्ष्य सिद्धि के बिना विद्या व्यर्थ
बड़ा होने के बाद हर व्‍यक्ति अपने जीवन में किसी न किसी लक्ष्‍य को लेकर आगे बढ़ता है और उसे पाने की कोशिश करता है। इसके लिए व्‍यक्ति अच्‍छी से अच्‍छी विद्या प्राप्त करता है। लेकिन ऐसी शिक्षा जिससे कि लक्ष्य प्राप्त न हो, उसे व्यर्थ ही समझा जाना चाहिए। शिक्षा ही जीवन को सही दिशा दिखाती है और जो ज्ञान मार्ग प्रशस्त न करे, वह उस व्‍यक्ति के किसी काम का की नहीं।

जिस धन का सदुपयोग न हो, वह व्यर्थ
आचार्य चाणक्‍य के अनुसार, धर्म ग्रंथों में धन की तीन गति बताई गई है। पहली भोग, दूसरी दान और तीसरी नाश। यानी सबसे पहले धन का भोग करना चाहिए, इसके बाद उसे दान करना चाहिए। अगर इन दोनों कामों में धन नहीं लगाया तो उसका नाश होना निश्चित है। यानी अगर आप मिले हुए धन का किसी कार्य में सदुपयोग नहीं करते तो वह नष्‍ट हो जाएगी।

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