Janaki Jayanti: माता सीता का धरती से हुआ था अवतरण, जानकी जयंती पर जानिए पूजा विधि और उनके जन्म की कथा 

फाल्गुन मास में मनाए जाने वाली जानकी जयंती इस बार 06 मार्च को मनाई जाएगी। जानकी जयंती पर मां सीता की पूजा करने से सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद प्राप्त होता है तथा वैवाहिक जीवन खुशियों से भर जाता है।

Janki Jayanti
Janki Jayanti 
मुख्य बातें
  • हर वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मनाई जाती है जानकी जयंती
  • हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी दिन हुआ था माता सीता का जन्म
  • सीता अष्टमी के नाम से भी जानी जाती है जानकी जयंती

Janaki Jayanti 2021: हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक, फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर मां सीता का अवतरण धरती से हुआ था इसीलिए इस दिन को जानकी जयंती कहा जाता है। हर वर्ष इस दिन मां सीता की पूजा होती है और उन्हें श्रृंगार का सामान भेंट किया जाता है। जानकी जयंती को भारत के कई प्रांतों में सीता अष्टमी भी कहते हैं। इस वर्ष सीता अष्टमी 06 मार्च को मनाई जाएगी। जनक दुलारी माता सीता की पूजा करने वाले भक्तों का जीवन सुखमय हो जाता है इसके साथ वैवाहिक जीवन में आ रहीं सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। 

जानकी जयंती पूजा विधि

जानकी जयंती पर सुबह ब्रह्म मुहुर्त में उठ कर स्नान आदि करके व्रत रखने का संकल्प लिजिए फिर भगवान गणेश की पूजा करके मां सीता और भगवान राम की पूजा-अराधना कीजिए। परंपरा के अनुसार, माता सीता को पीले फूल और पीले वस्त्र के साथ सोलह श्रृंगार का सामान भेंट करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि पूजा करने के बाद मां सीता को पीले चीज अर्पित करना शुभ माना जाता है। पूजा करने के बाद माता सीता की आरती कीजिए। माता सीता को दूध और गुड़ से बने प्रसाद अर्पित किजिए और रामाभ्यां नम: मंत्र का जाप कीजिए। 

मां सीता की जन्म कथा

रामायण के मुताबिक, एक दिन मिथिला के राजा पूजा-पाठ और यज्ञ करवाने के लिए हल से खेत जोत रहे थे, तभी उनका हल एक ठोस चीज से टकराया। उन्होनें इस ठोस चीज को निकाला और देखा की वह एक लोटा था। उस लोटे में एक सुंदर और कोमल कन्या थी। राजा का नाम जनक था और उनकी कोई संतान नहीं थी। उस कन्या को देखकर वह बहुत खुश हुए और उसे पालने-पोसने लगे। इसीलिए माता सीता को जनकपुत्री और जनक दुलारी भी कहा जाता है। बहुत ही कम लोग यह जानते हैं कि मैथिलि भाषा में हल का मतलब सीता होता है। राजा जनक को यह कन्या हल चलाने के दैरान मिली थी इसलिए इस कन्या का नाम सीता रखा गया था। 

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