नई दिल्ली: गर्दन की चोट से उबरने के बाद टोक्यो ओलंपिक के लिये 'ए' कट से क्वालीफाई करने वाले पहले भारतीय तैराक साजन प्रकाश 23 जुलाई से शुरू होने वाले इस महासमर में सेमीफाइनल या फाइनल तक पहुंचने की उम्मीद लगाये हैं। केरल के पुलिस अधिकारी साजन ने इटली के रोम में सेटी कोली ट्राफी में 200 मीटर बटरफ्लाई स्पर्धा में 1:56.38 सेकेंड का समय निकालकर ए कट से ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने वाला पहला भारतीय तैराक बनकर इतिहास रचा। ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने का समय 1:56.48 सेकेंड था।
भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) द्वारा आयोजित वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में साजन ने कहा, 'अभी ओलंपिक शुरू होने में 20 दिन हैं तो छोटी छोटी चीजों पर काम करेंगे, गति बढ़ाने पर काम करेंगे। मुझे पूरा भरोसा है कि मैं इस समय को और कम करने में सफल रहूंगा जिससे मैं सेमीफाइनल या फाइनल तक भी पहुंच सकता हूं।' साजन का यह दूसरा ओलंपिक होगा और उनका कहना है कि 2016 रियो ओलंपिक के बाद उन्होंने काफी चीजें सीखी हैं।
कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन से हालांकि काफी दिक्कतें पेश आयीं क्योंकि तरणताल सबसे पहले बंद हो जाते थे और बस कमरे में ही सीमित रहना पड़ता था, जिससे उन्हें चोट से उबरने में भी परेशानी हुई। उन्होंने कहा, 'पिछले साल मार्च में इटली में था, लेकिन तरणताल में नहीं जा सकते थे, कमरे में ही थे। जून में थाईलैंड में था, लेकिन ट्रेनिंग नहीं कर सकते थे। फिर चिकनगुनिया हो गया तो मुझे मूवमेंट में काफी दिक्कत होती थी। फिर दुबई में अगस्त से ट्रेनिंग शुरू हुई।'
साजन ने कहा, 'मैंने ट्रेनिंग के बाद बदलाव देखना शुरू किया। मैं कुशाग्र (रावत) से प्रतिस्पर्धा करता था। नवंबर में मैंने स्थानीय प्रतियोगिता में फ्रीस्टाइल वर्ग में हिस्सा लिया और इसमें जीत हासिल की। इसके बाद खुद पर भरोसा हो गया कि मैं अब कर सकता हूं, पर इसके लिये ज्यादा समय नहीं था। कोचों ने मेरे ऊपर काम किया, भारतीय तैराकी महासंघ और फिना (अंतरराष्ट्रीय तैराकी महासंघ) ने काफी मदद की।'
चोट से उबरने के बाद साजन जी-जान से ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने की मुहिम में जुट गये। उन्होंने कहा, 'मेरे पास 'ए' कट से क्वालीफाई करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था इसलिये मेरा लक्ष्य सिर्फ 'ए' क्वालीफिकेशन समय निकालना था।' वह 18 जुलाई को टोक्यो पहुंचेंगे और उन्होंने कोविड-19 के दोनों टीके दुबई में ही लगवा लिये हैं।
साजन ने 'बायो-मैकेनिक्स' की खेल में अहमियत पर बात करते हुए कहा, 'हमारे पास कोई 'बायो-मैकेनिक्स' विशेषज्ञ नहीं थे, मुझे सिर्फ एक बार ही विश्व चैम्पियनशिप में विशेषज्ञ से मिलने का मौका मिला, हमारे पास केवल पानी के अंदर के कैमरे होते हैं। तैराकी बहुत तकनीकी खेल है जिसमें जितना ज्यादा सहयोग मिलेगा, उतनी ही प्रतिभायें सामने आयेंगी। हमें साल में एक या दो बार ही प्रतियोगितायें मिलती हैं। हमारे स्ट्रोक्स के आकलन से इन्हें सही किया जा सकता है।'