'भाषाएँ और माताएँ शामियानों से नहीं, बेटे-बेटियों से बड़ी बनती हैं'- 'हिंदी दिवस' पर बोले कुमार विश्वास

आज हिंदी दिवस है और आज बेहद लोकप्रिय कवि कुमार विश्वास का जिक्र लाजिमी है, जिन्होंने अपने कविता पाठ से लोगों को दीवाना बना रखा है, कुमार विश्वास को श्रृंगार रस का कवि माना जाता है।

Hindi Divas  is incomplete without mentioning popular poet Kumar Vishwas
कवि कुमार विश्वास द्वारा लिखा काव्य संग्रह 'कोई दीवाना कहता है' युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय है 
मुख्य बातें
  • कुमार विश्वास मंच के कवि होने के साथ साथ हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के गीतकार भी हैं
  • कवि कुमार विश्वास का कहना है कि 'राजनीति 10 साल 5 साल लेकिन कविता हजार साल'
  • कवि कुमार विश्वास अपना कविता पाठ करते हैं तो उस वक्त का माहौल देखने लायक होता है

हिंदी दिवस की बात हो और लोकप्रिय कवि कुमार विश्वास का जिक्र ना हो ऐसा हो नहीं सकता, हिंदी कविता में कुमार विश्वास का योगदान सराहनीय है, शायद ये उनकी ओजस्वी कविता पाठ का ही असर है जो उनके प्रशंसकों की तादात में दिनों दिन इजाफा होता जा रहा है और उनके कवि सम्मेलनों का इंतजार उनके प्रशंसक बेसब्री से करते हैं।

जब कवि कुमार विश्वास अपना कविता पाठ करते हैं तो उस वक्त का माहौल देखने लायक होता है और उनके कवि सम्मेलनों में उमड़ती भीड़ इसका साक्षात प्रमाण है।वे युवाओं के अत्यन्त प्रिय कवि हैं। हिंदी को भारत से विश्व तक पुनः स्थापित करने वाले कुमार विश्वास के कविता के मंचन, वाचन, गायन के साथ साथ वकतृत्व प्रतिभा के भी धनी हैं। मंच संचालन, गायन, काव्य वाचन, पाठन, लेखन आदि सब विधाओं में निपुण कुमार विश्वास हिंदी के प्राध्यापक भी रह चुके हैं।

हिंदी दिवस पर कवि कुमार विश्वास ने ट्वीट करते हुए लिखा-किसी भाषा के सर्जनात्मक जयघोष के लिए समर्पित साधनाएँ,सदैव ही सरकारी प्रयासों से ज़्यादा असरकारी होती हैं...

कुमार विश्वास ने अब तक हज़ारों कवि-सम्मेलनों में कविता पाठ किया है। साथ ही वह कई पत्रिकाओं में नियमित रूप से लिखते हैं। विश्वास मंच के कवि होने के साथ साथ हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के गीतकार भी हैं। उनके द्वारा लिखे गीत अगले कुछ दिनों में फ़िल्मों में दिखाई पड़ेगी। उन्होंने आदित्य दत्त की फ़िल्म 'चाय-गरम' में अभिनय भी किया है। 

'राजनीति 10 साल 5 साल लेकिन कविता हजार साल

कुमार विश्‍वास ने अमेठी से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा, परन्‍तु हार गए थे।राजनीति से रूठे कवि कुमार विश्वास कहते हैं "सियासत में मेरा खोया या पाया हो नहीं सकता। सृजन का बीज हूँ मिट्टी में जाया हो नहीं सकता।" उनका कहना है कि 'राजनीति 10 साल 5 साल लेकिन कविता हजार साल।'कवि-सम्मेलनों और मुशायरों के क्षेत्र में भी डॉ॰ विश्वास एक अग्रणी कवि हैं। वो अब तक हज़ारों कवि सम्मेलनों और मुशायरों में कविता-पाठ और संचालन कर चुके हैं। देश के सैकड़ों प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाओं में उनके एकल कार्यक्रम होते रहे हैं। 

'कोई दीवाना कहता है' युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय

कुमार विश्वास को श्रृंगार रस का कवि माना जाता है। उनके द्वारा लिखा काव्य संग्रह 'कोई दीवाना कहता है' युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय रहा। उन्होंने कई सुंदर कविताएं लिखी हैं जिनमे हिंदी कविता के नवरस मिलते हैं। उनके लिखे गीत कुछ फिल्मों आदि में भी उपयोग किये गए हैं। उन्होंने अपने से पूर्व में हुए महनीय कवियों को श्रद्धांजलि देते हुए 'तर्पण' नामक टीवी कार्यक्रम भी बनाया, जिसमे स्वयं विश्वास ने पुराने कवियों की कविताओं को अपना स्वर दिया है।

हिन्दी गीतकार 'नीरज' जी ने उन्हें 'निशा-नियामक' की संज्ञा दी

विभिन्न पत्रिकाओं में नियमित रूप से छपने के अलावा कुमार विश्वास की दो पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं- 'इक पगली लड़की के बिन' (1996) और 'कोई दीवाना कहता है' (2007 और 2010 दो संस्करण में)। विख्यात लेखक स्वर्गीय धर्मवीर भारती ने डॉ॰ विश्वास को इस पीढ़ी का सबसे ज़्यादा सम्भावनाओं वाला कवि कहा है। प्रथम श्रेणी के हिन्दी गीतकार 'नीरज' जी ने उन्हें 'निशा-नियामक' की संज्ञा दी है। मशहूर हास्य कवि डॉ॰ सुरेन्द्र शर्मा ने उन्हें इस पीढ़ी का एकमात्र आई एस ओ:2006 कवि कहा है।

कुमार विश्वास के पिता उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे

कुमार विश्वास का जन्म 10 फरवरी (वसन्त पंचमी), 1970 को उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ियाबाद के पिलखुआ में एक मध्यवर्गी परिवार में हुआ था।, वे आम आदमी पार्टी के नेता रह चुके हैं। उनका मूल नाम विश्वास कुमार शर्मा है। कुमार विश्वास के पिता उन्हें इंजीनियर बनाना चाहते थे। कुमार विश्वास का मन मशीनों की पढ़ाई में नहीं लगा और उन्होंने बीच में ही वह पढ़ाई छोड़ दी। साहित्य के क्षेत्र में आगे बढ़ने के ख्याल से उन्होंने स्नातक और फिर हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर किया, जिसमें उन्होंने स्वर्ण-पदक प्राप्त किया। तत्पश्चात उन्होंने "कौरवी लोकगीतों में लोकचेतना" विषय पर पीएचडी प्राप्त किया। उनके इस शोध-कार्य को 2001 में पुरस्कृत भी किया गया।

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