नई दिल्ली। भारत और नेपाल के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध रहा है। लेकिन चीन के दबाव में नेपाली सरकार भारत से टकराव की मुद्रा में है। हाल ही में नेपाल मे कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को अपने नक्शे में दिखाया था और इस संबंध में अब कानून मंत्री शिवमाया तुबाहंफे ने संशोधन बिल पेश किया है। नेपाल कांग्रेस इस संविधान संशोधन का समर्थन कर रही है। यहां यह जानना जरूरी है कि भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि नेपाल को भारत की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए। नेपाल की तरफ से इस तरह का कदम नहीं उठाया जाना चाहिए जिसकी वजह से तनाव बढ़े।
नेपाल ने संशोधित बिल किया पेश
नेपाल के संशोधित नक्शे में कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को भी शामिल करने पर भारत सरकारी की तरफ से पहले ही आपत्ति जताई जा चुकी है। विदेश मंत्रालय ने साफ कर दिया था कि कुछ ऐतिहासिक सच्चाई है जिसे के पी शर्मा ओली सरकार का स्वीकार करना चाहिए। नेपाल सरकार को कोई भी कदम उठाने से बचना चाहिए जो दोनों देशों के आपसी रिश्ते पर असर डाले। नेपाल कैबिनेट की बैठक में भूमि संसाधन मंत्रालय ने नेपाल का यह संशोधित नक्शा जारी किया था।
8 मई के बााद मामला गरमाया
दरअसल यह समझना जरूरी है कि आखिर नेपाल की तरफ से इस तरह की प्रतिक्रिया क्यों आई। 8 मई को उत्तराखंड के लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर के लिए भारत ने सड़क का उद्घाटन किया था। इसे लेकर नेपाल की तरफ से नाराजगी जताई गई और उसके बदले में सरकार ने संशोधित नक्शा जारी करने का फैसला किया। नेपाल का कहना है कि भारत ने अवैध तौर पर कालापानीस लिपुलेख और लिंपियाधुरा को अपने कब्जे में रखा हुआ है।
कालापानी विवाद
भारत सरकार का दावा है कि उसने नेपाल के साथ लगनी वाली अपनी सीमा में कोई बदलाव नहीं किया है लेकिन नेपाल सरकार का कहना है कि लिपुलेख उसके क्षेत्र में आता है। नेपाल के विदेश मंत्रालय ने कहा कि 'सीमा मसले' का हल निकालने के लिए उनकी सरकार ने गत 23 नवंबर को नई दिल्ली को पत्र लिखा। इस बीच, नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भारत के नए नक्शे और कालापानी विवाद को अपने संज्ञान में लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल सरकार से कहा है कि वह 15 दिनों के भीतर सुगौली संधि पर हस्ताक्षर के दौरान भारत को सौंपे गए वास्तविक नक्शा उसे उपलब्ध कराए।