Sri Lanka Crisis: श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के अर्श से फर्श तक पहुंचने का ये है 'सिलसिला'

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Updated Jul 13, 2022 | 17:26 IST

President of Sri Lanka chronology: श्रीलंका के हालात बिगड़ते ही जा रहे हैं। राष्ट्रपति भवन पर कब्ज़ा करने के बाद अब खबर है कि श्रीलंका के प्रधानमंत्री ऑफिस पर भी प्रदर्शनकारियों ने कब्ज़ा कर लिया है हालात बिगड़ता देख देश में आपातकाल लागू कर दिया 

President of Sri Lanka chronology
श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे (फाइल फोटो) 

कोलंबो: श्रीलंका में गहराते आर्थिक संकट के बीच बुधवार को देश छोड़कर जाने वाले राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे देश के सबसे शक्तिशाली परिवार के उन छह सदस्यों में से अंतिम सदस्य थे जो सत्ता से चिपके हुए थे।एक आव्रजन अधिकारी ने स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि राजपक्षे, उनकी पत्नी और दो अंगरक्षक देश छोड़कर मालदीव की राजधानी माले चले गए हैं।

उन्होंने ऐसे वक्त में देश छोड़ा है जब भारी संख्या में प्रदर्शनकारी उनके आधिकारिक आवास और कार्यालय में घुस गए थे। प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के आवास में भी घुस गए थे, जिन्होंने कहा है कि वह नयी सरकार के गठन के बाद पद से इस्तीफा दे देंगे।

राजपक्षे परिवार के अर्श से फर्श तक पहुंचने के घटनाक्रम इस प्रकार हैं:-

महिंदा राजपक्षे के 2005 में राष्ट्रपति निर्वाचित होने से पहले राजपक्षे परिवार का ग्रामीण दक्षिण जिले में स्थानीय राजनीति में दशकों से अच्छा-खासा दबदबा था और उनके पास बहुत जमीन थी। द्वीपीय देश की बौद्ध-सिंहली बहुसंख्यक आबादी की राष्ट्रवादी संवेदना की नब्ज पकड़ते हुए उन्होंने 2009 में श्रीलंका को जातीय तमिल विद्रोहियों से छुटकारा दिलाया और 26 साल तक चले क्रूर गृह युद्ध को समाप्त कराया। उनके छोटे भाई गोटबाया उस समय एक प्रभावशाली अधिकारी और रक्षा मंत्रालय में सैन्य रणनीतिकार थे।

महिंदा 2015 तक सत्ता में रहे और उन्हें उनके पूर्व सहायक के नेतृत्व वाले विपक्ष से मात मिली। लेकिन परिवार ने 2019 में वापसी की और गोटबाया ईस्टर संडे आतंकवादी आत्मघाती धमाकों के बाद सुरक्षा बहाल करने के वादे के साथ राष्ट्रपति चुनाव जीते।

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उन्होंने देश में राष्ट्रवाद को वापस लाने तथा स्थिरता और विकास के संदेश के साथ देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने का आह्वान किया। लेकिन इसके बजाय उन्होंने एक के बाद एक घातक गलतियां की, जिसने देश को अभूतपूर्व संकट के गर्त में धकेल दिया। ईस्टर धमाकों के बाद पर्यटन में गिरावट और राष्ट्रपति के गृह क्षेत्र में एक बंदरगाह तथा हवाई अड्डे समेत विवादित विकास परियोजनाओं पर विदेश से लिए कर्ज को चुकाने के दबाव के बीच राजपक्षे ने आर्थिक सलाहकारों की एक नहीं सुनी और देश के इतिहास में करों में सबसे बड़ी कटौती की।

यह खर्च बढ़ाने के लिए किया गया लेकिन आलोचकों ने आगाह किया कि इससे सरकार का राजस्व कम हो जाएगा। कोरोना वायरस महामारी को फैलने से रोकने के लिए लगाए लॉकडाउन और रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध की गलत सलाह ने देश के आर्थिक हालात को खराब करने में बड़ी भूमिका अदा की। देश के पास जल्द ही नकदी की कमी हो गयी और वह भारी भरकम कर्ज नहीं चुका पाया। खाद्य पदार्थ, रसोई गैस, ईंधन और दवाओं की किल्लत ने जन आक्रोश को बढ़ा दिया और कई लोगों ने इसके पीछे कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की वजह बताई।

अंत की शुरुआत :-

राजपक्षे परिवार के अर्श से फर्श पर गिरने की शुरुआत अप्रैल में हुई जब बढ़ते प्रदर्शनों के कारण उनके तीन रिश्तेदारों को सरकार में पद छोड़ने पड़े। मई में सरकार समर्थकों ने हिंसा की एक घटना के बाद प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया। इस पर प्रदर्शनकारियों का गुस्सा महिंदा राजपक्षे के खिलाफ फूट पड़ा और उन पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया गया जिसके बाद उन्होंने किले में तब्दील कर दिए गए एक नौसैन्य अड्डे में शरण ली।


लेकिन गोटबाया के इस्तीफा न देने के अड़ियल रवैये के बाद गलियों में 'गोटा गो होम' के नारों ने जोर पकड़ लिया। इसके बाद भी उन्होंने अपने आप को बचाने के लिए विक्रमसिंघे का सहारा लिया और उन्हें देश को रसातल से बाहर निकालने के लिए प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया। हालांकि, विक्रमसिंघे को इस काम के लिए राजनीतिक सहयोग और जनता का समर्थन नहीं मिला।

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