अपनी ही पार्टी से बाहर किए गए चीन के 'करीबी'‍ केपी शर्मा ओली, नक्‍शा विवाद में कभी भारत को दिखाए थे तेवर

दुनिया
Updated Jan 24, 2021 | 21:46 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को उनकी ही पार्टी के एक गुट ने बाहर कर दिया है। ओली के खिलाफ पार्टी में बढ़ती नाराजगी के बीच यह फैसला लिया गया है। इस गुट की अगुवाई प्रचंड कर रहे हैं।

अपनी ही पार्टी से बाहर किए गए चीन के 'करीबी'‍ केपी शर्मा ओली, नक्‍शा विवाद में कभी भारत को दिखाए थे तेवर
अपनी ही पार्टी से बाहर किए गए चीन के 'करीबी'‍ केपी शर्मा ओली, नक्‍शा विवाद में कभी भारत को दिखाए थे तेवर 

काठमांडू : नक्‍शा विवाद को लेकर कुछ दिनों पहले भारत को तेवर दिखाने वाले नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को उनकी अपनी ही पार्टी के एक खेमे ने पार्टी से निकाल दिया है। नेपाल में सियासी घमासान के बीच सत्‍तारूढ़ नेपाल कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के एक धड़े का यह फैसला सामने आया है। नेपाल में सरकार पर इसका क्‍या असर होगा, यह फिलहाल साफ नहीं हो सका है। जिस गुट ने ओली सदस्‍यता रद्द करने का फैसला किया है, उसकी अगुवाई पुष्‍प कमल दहल 'प्रचंड' कर रहे हैं।

नेपाल में सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने इसकी पुष्टि की कि पार्टी के एक गुट ने ओली की सदस्यता रद्द कर दी है। पार्टी के इस गुट ने जब यह फैसला किया, प्रधामनंत्री ओली और उनके समर्थक वहां मौजूद नहीं थे। ऐसे में बहुत संभव है कि ओली और उनके समर्थक इस फैसले को मानने से इनकार कर दें। नेपाल में यह फैसला बीते कुछ समय में ओली के फैसलों से पार्टी में बढ़ रहे असंतोष के बीच आया है, जिन्‍हें चीन का करीबी समझा जाता है।

संसद भंग करने के फैसले से बढ़ी नाराजगी

ओली के जिन फैसलों से पार्टी में पिछले कुछ समय में उनके प्रति जो नाराजगी बढ़ी है, उनमें संसद को भंग करने का बीते 20 दिसंबर को अचानक लिया गया उनका फैसला भी है। प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर राष्‍ट्रपति ने संसद भंग करते हुए अप्रैल-मई में मध्यावधि आम चुनाव कराए जाने की घोषणा की थी, जिसके अनुसार नेपाल में दो चरणों में यह चुनाव संपन्‍न होगा। पहले चरण में जहां 30 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे, वहीं दूसरे चरण में 10 मई को मतदान होगा।

पार्टी में प्रधानमंत्री के इस फैसले का कड़ा विरोध हो रहा है। इसके खिलाफ नेपाल की सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दी गई है। ओली पर महत्‍वपूर्ण पदों पर नियुक्ति और और अहम फैसले एकपक्षीय तरीके से लेने के आरोप लगते रहे हैं। कोरोना वायरस महामारी से समुचित तरीके से नहीं निपटने को लेकर भी उनकी आलोचना होती रही है। उन पर भ्रष्‍ट मंत्रियों को बचाने का आरोप भी लगता रहा है। फिर हाल में संवैधानिक परिषद अधिनियम से संबंधित एक अध्यादेश को लेकर विवाद बढ़ गया था।

सत्‍तारूढ़ पार्टी में आंतरिक कलह बढ़ा

केपी ओली ने दिसंबर में ही यह अध्‍यादेश जारी किया था, जिसे वापस लेने का दबाव उन पर बनाया जा रहा था, लेकिन बीते 20 दिसंबर को अचानक उन्‍होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल की आपात बैठक बुलाई, जिसमें संसद भंग करने का फैसला लिया गया और इसकी अनुशंसा राष्‍ट्रपति से की गई। राष्‍ट्रपति से इसकी अनुशंसा के साथ ही ओली सरकार के सात मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद से नेपाल में ओली की अगुवाई में केयरटेकर सरकार सत्‍ता में है।

ओली के इस फैसले के साथ ही सत्‍तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में आंतरिक कलह खुलकर सामने आ गया। ओली के खिलाफ नेपाल में शुक्रवार को एक रैली भी निकाली गई थी, जिसमें देश के तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों- माधव कुमार नेपाल, प्रंचड और झलनाथ कमल ने भी हिस्‍सा लिया था। इसमें ओली के फैसले को असंवैधानिक करार देते हुए इसे वापस लेने की मांग की गई थी। यहां उल्‍लेखनीय है कि नेपाल की सत्‍तारूढ़ पार्टी में बढ़ते घमासान के बीच चीन ने पिछले दिनों यहां अपना विशेष दूत भी भेजा था।

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