नई दिल्ली: “मैं तालिबान आतंकवादियों के आगे कभी नहीं, कभी भी और किसी भी परिस्थिति में नहीं झुकूंगा। मैं अपने नायक अहमद शाह मसूद, कमांडर और गाइड की आत्मा और विरासत के साथ कभी विश्वासघात नहीं करूंगा, ”अफगानिस्तान के अपदस्थ उप राष्ट्रपति अमरूल्ला सालेह ने जब 15 अगस्त को ट्विटर पर ये बातें लिखी थी। तो उस वक्त यह अंदाजा हो गया था कि तालिबान के लिए काबुल से महज 150 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व में स्थित पंजशीर इलाका फिर से सिरदर्द बनने वाला है। और उसकी पुष्टि सालेह ने एक और खुलासे से कर दी है। उन्होंने 23 अगस्त को अपने ट्वीट में युद्द की स्थिति बयां करते हुए लिखा है "तालिबान की भारी मात्रा में फौज अंदराब घाटी में फंसने के बाद मौजूद है। फिलहाल सलांद राजमार्ग को हमारे लड़ाके ने बंद कर दिया है।"
असल में पंजशीर घाटी अफगानिस्तान का आखिरी बचा हुआ ठिकाना है जहां तालिबान विरोधी ताकतें इस्लामी कट्टरपंथी समूह से निपटने के लिए एक गुरिल्ला युदध लड़ रही हैं। और उनके लिए राह आसान नहीं होने वाली है। और इस संघर्ष का नेतृत्व अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़कर जाने के बाद खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर चुके अमरूल्ला सालेह कर रहे हैं।
क्यों कर रहे हैं संघर्ष
मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान की रिसर्च फेलो स्मृति एस.पटनायक ने टाइम्स नाउ नवभारत डिजिटल से बताया "इस संघर्ष को हमें अफगानिस्तान की स्थानीय जातियों के बीच के संघर्ष के रुप में देखना होगा। तालिबान में पश्तूनों का बोलबाला है। जबकि पंजशीर इलाके में ताजिक समुदाय का बहुमत है और उजबेक लोगों की संख्या भी ठीक-ठाक है। इसके भौगोलिक क्षेत्र को भी देखा जाय तो इसकी सीमाएं तजाकिस्तान, उजबेकिस्तान के नजदीक हैं। ऐसे में ऐताहिसिक रुप से इस इलाकों के लोगों को यह डर है कि अगर वह तालिबान की सत्ता स्वीकार करते हैं तो उनकी राजनीतिक और सामाजिक भागीदारी कमजोर हो जाएगी।
इसलिए मौजूदा स्थिति में वह सारे रास्ते खोल कर चल रहे हैं। एक तरफ तो संघर्ष की बातें कर रहे हैं, दूसरी तरफ उनके कुछ नेता बातचीत का रास्ता तलाश रहे हैं। रणनीति यह है कि अगर सत्ता में साझेदारी होती है तो किस तरह से होगी। शायद वह यह भी देख रहे हैं कि उन्हें तालिबान का विरोध करने पर अफगानिस्तान और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितना समर्थन मिलता है। क्योंकि 1996 के समय नार्दन अलायंस को भारत-ईरान-तजाकिस्तान से सहयोग मिल रहा था। इसके अलावा अफगानिस्तान सेना में गिलजाई पश्तून भी हैं जो सैनिक के रुप में कम कर रहे हैं और वह दुर्रान पश्तून की तरह प्रभावशाली नहीं हैं। ऐसे में उनका तालिबान को लेकर क्या रूख होगा? इसको लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। एक बात साफ है कि अगर उन्हें तालिबान के खिलाफ लड़ाई आगे जारी रखनी है तो वह अंतरराष्ट्रीय समर्थन के बिना संभव नहीं है। खास तौर से रिजनल देशों का समर्थन बहुत जरूरी होगा। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका ने जब तालिबान पर विजय प्राप्त की थी तो काबुल पर कब्जा अहमद शाह मसूद ने ही दिलाया था।"
कही जाती है 5 शेरों वाली वााली घाटी
पंजशीर घाटी का मतलब होता है पांच शेरों वाली घाटी। इस नाम की पीछे एक किवदंती है, जिसमें कहा जाता है 10 वीं शताब्दी में, पांच भाइयों ने बाढ़ के पानी को नियंत्रित कर दिया था और गजनी के सुल्तान महमूद के लिए एक बांध बनाया था। उनके साहस की वजह से इस इलाके का नाम पंजशीर पड़ गया।
1990-96 में भी जीत नहीं पाया था तालिबान
पंजशीर घाटी की अफगानिस्तान के सैन्य इतिहास में हमेशा से अहम भूमिका रही है। इसमें उसकी भौगोलिक स्थिति हमेशा उसे अजेय बनाती है। वह ऐसी है कि पूरे अफगानिस्तान से अलग करती है। ऐसे में इस इलाके में पहुंचने का एक मात्रा जरिया पंजशीर नदी से गुजरता हुआ संकरा रास्ता है। ऐसे में किसी भी हमले से इसे बचाकर रखना आसान होता है। अपनी प्राकृतिक सुरक्षा के लिए प्रसिद्ध, हिंदू कुश पहाड़ों में बसा यह क्षेत्र 1990 में तालिबान के हाथों में कब्जे में नहीं आया था। सोवियत संघ भी कभी इसे जीत नहीं पाया था। घाटी के अधिकांश 150,000 निवासी ताजिक जातीय समूह के हैं।
अहमद शाह मसूद का गौरवशाली इतिहास
अपने ट्वीट में अपदस्थ उप राष्ट्रपति अमरूल्ला सालेह ने उत्तर अफगानिस्तान के जिस नायक अहम शाह मसूद की बात की है। उनका एक गौरशाली इतिहास रहा है। साल 2001 से 2021 तक नाटो समर्थित सरकार के समय पंजशीर घाटी देश के सबसे सुरक्षित क्षेत्रों में से एक थी। घाटी की आजादी का यह इतिहास अफगानिस्तान के सबसे प्रसिद्ध तालिबान विरोधी सेनानी अहमद शाह मसूद से बेहद करीब से जुड़ा हुआ है। साल 1953 में अहमद शाह का जन्म हुआ और उसने 1979 में खुद को मूसद (भाग्यशाली) घोषित किया। और उसने काबुल में मौजूद सोवियत संघ की कम्युनिस्ट सरकार का विरोध किया। और बेहद कम समय में प्रभावशाली मुजाहिदीन कमांडरों में से एक बन गया।
1989 में सोवियत संघ की वापसी के बाद, अफगानिस्तान में गृह युद्ध छिड़ गया, जिसे तालिबान ने अंततः जीत लिया। हालांकि, मसूद और उसका संयुक्त मोर्चा (जिसे उत्तरी गठबंधन के रूप में भी जाना जाता है) न केवल पंजशीर घाटी को नियंत्रित करने में सफल रहा, बल्कि चीन और तजाकिस्तान के साथ सीमा तक लगभग पूरे पूर्वोत्तर अफगानिस्तान को नियंत्रित करने में सफल रहा और तालिबान के विस्तार को इस क्षेत्र में रोक दिया। साल 2001 में मसूद की अल कायदा आंतकवादियों द्वारा हत्या कर दी गई। एक बार फिर जब तालिबान अफगानिस्तान पर कब्जा कर चुके हैं तो उनकी अधूरी हसरत फिर से परवान चढ़ने लगी है।
पन्ना से मिलती है ताकत
पंजशीर इलाके में मौजूद ताजिकों की सबसे बड़ी ताकत वहां पर मौजूद रत्न हैं। अफगानिस्तन वाणिज्य मंत्रालय के निर्यात रणनीति 2018-22 के दस्तावेज के अनुसार वहां भारी मात्रा में पन्ना, रुबी, नीलम पाए जाते हैं। जिनकी अफगानिस्तान के निर्यात में करीब 35 फीसदी हिस्सेदारी है। रिपोर्ट के अनुसार 2016 में करीब 8-10 मिलियन डॉलर के पन्ने का उत्पादन होता था। ऐसे में इस क्षेत्र पर जिसका कब्जा रहता है, उसे संघर्ष के लिए आर्थिक रूप से एक सपोर्ट भी मिलता है।