Teacher's Day Savitribai Phule: देश की प‍हली महिला शिक्षक सावित्रीबाई फुले की कहानी, लड़कियों के लिए खोला था पहला स्कूल

Savitribai Phule Facts on Teacher's Day 2022: सावित्रीबाई शिक्षक होने के साथ समाज सुधारक, नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता और कवयित्री भी थी। इन्‍होंने लड़कियों व महिलाओं के लिए उस समय स्‍कूल खोला, जब इनके लिए शिक्षा अभिशाप माना जाता था। सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर पुणे में 1848 में बालिकाओं के लिए पहला स्‍कूल खोला।

Savitribai Phule
पहली महिला टीचर सावित्री बाई फूले के बारे में जाने सब कुछ   |  तस्वीर साभार: Twitter
मुख्य बातें
  • सावित्रीबाई फूले का 3 जनवरी 1831 को सतारा जिले में हुआ जन्‍म
  • 3 जनवरी 1848 को पुणे में बालिकाओं के लिए खोला पहला स्‍कूल
  • पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर एक साल में खोल दिए 5 स्‍कूल

Savitribai Phule: सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला शिक्षक थी। इनका जन्‍म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित नयागांव के एक दलित परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई शिक्षक होने के साथ समाज सुधारक, नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता और कवयित्री भी थी। 18वीं सदी में जब महिलाओं का स्कूल जाना पाप समझा जाता था, तब इन्‍होंने महिलाओं के लिए देश में पहला स्‍कूल खोलकर इनको शिक्षित करने के लिए बड़ा कदम उठाया। हालांकि इसके लिए इन्‍हें समाज के ठेकेदारों से कड़े विरोध का सामना भी करना पड़ा, लेकिन ये अपने लक्ष्य से कभी डगमग नहीं हुई और लड़कियों व महिलाओं को शिक्षा का हक दिलवा कर रहीं। शिक्षक दिवस पर आइए जानते हैं सावित्रीबाई फुले के सराहनीय कार्यों को।

नौ साल की उम्र में हुआ विवाह

सावित्रीबाई का विवाह वर्ष 1840 में महज नौ साल की उम्र में समाजसेवी ज्‍योतिबा फुले के साथ हुई थी। शादी के बाद वह अपने पति के साथ पुणे आ गईं थी। शादी से पहले वह पढ़ी-लिखी नहीं थीं, लेकिन पढ़ाई में उनकी बहुत लगन थी। उनके पढ़ने और सीखने की चाह से प्रभावित होकर ज्‍योतिबा फुले ने उन्हें पढ़ना और लिखना सीखने में मदद की। जिससे आगे चलकर सावित्रीबाई एक योग्य शिक्षिका बनीं।

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18वें जन्‍मदिन पर पहले स्‍कूल की स्‍थापना

सावित्रीबाई ने ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर अपने 18वें जन्‍मदिन पर 3 जनवरी 1848 को पुणे में बालिकाओं के लिए पहले स्‍कूल की स्‍थापना की। इसमें विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं को दाखिला मिला। इसके बाद सावित्रीबाई रूकी नहीं, बल्कि एक ही वर्ष में पांच नये विद्यालय खोल दिए। उस दौर में एक महिला प्रिंसिपल के लिये बालिका विद्यालय चलाना बहुत मुश्‍किल था। क्‍योंकि सामाजिक तौर पर महिलाओं व लड़कियों की शिक्षा पर पाबंदी थी। लेकिन सावित्रीबाई फुले खुद के पढ़ने के साथ दूसरी लड़कियों के पढ़ने की भी पूरी व्‍यवस्‍था की।

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शिक्षा देने के बदले मिले पत्‍थर और गंदगी

सावित्रीबाई का बालिकाओं को शिक्षक करने का सफर बहुत मुश्किल भरा रहा। इसके लिए उन्हें समाज के एक बड़े वर्ग द्वारा विरोध भी झेलना पड़ा। वह स्कूल जाती, तो लोग उन्हें पत्थर मारते और उनपर गंदगी फेंकते। सावित्रीबाई हमेशा अपने थैले में एक साड़ी लेकर चलती और स्कूल पहुंच कर गंदी साड़ी बदलत लेती। सावित्रीबाई ने 1854 में विधवाओं के लिए एक आश्रय भी खोला। यहां निराश्रित महिलाओं, विधवाओं और उन बाल बहुओं को जगह दी गई। सावित्रीबाई उन सभी को पढ़ाती लिखाती थीं।

किया अपने पति का अंतिम संस्कार

वर्ष 1890 में सावित्रीबाई के पति ज्योतिराव का निधन हो गया था। उस समय उन्‍होंने सभी तरह के सामाजिक मानदंडों को पीछे छोड़ते हुए अंतिम संस्कार कर चिता को अग्नि दी। सन् 1897 को पूरे महाराष्ट्र में प्लेग की बीमारी फैली, तो वे लोगों की मदद करने निकल पड़ी, इसी दौरान वे खुद भी प्लेग की शिकार हो गई और 10 मार्च 1897 को उन्होंने आखिरी सांस ली।

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