UP assembly elections:चुनाव अब धीरे-धीरे पूर्वांचल की ओर बढ़ रहा है, गठबंधन के सूरमाओं की होगी "परीक्षा"

इलेक्शन
आईएएनएस
Updated Feb 22, 2022 | 22:01 IST

पूर्वांचल के सियासी रण में सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर, डा. संजय निषाद, अनुप्रिया पटेल, स्वामी प्रसाद मौर्या और दारा सिंह का बड़ा इम्तिहान ह़ोना है।

election in Purvanchal
पूर्वांचल के सियासी रण में ओमप्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल, स्वामी प्रसाद मौर्या का बड़ा इम्तिहान होना है 

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव अब धीरे-धीरे पूर्वांचल की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में भाजपा और सपा गठबंधन के नेताओं की परीक्षा होनी है। सपा और भाजपा से जुड़े कई ऐसा नेता हैं, जो अपनी जातियों के नाम पर सत्ता पाने का दम भर रहे है। इसमें से कई चुनावी मैदान में भी है। इसके अलावा इसमें कई नेता ऐसे हैं, जो भाजपा से अलग होकर सपा से चुनाव लड़ रहे हैं।

सबसे पहले पूरब में चुनाव का केन्द्र बिन्दु बने जहूराबाद सीट से ताल ठोक रहे सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की अगर बात करें तो वह 2017 में भाजपा के साथ गठबंधन करके चार सीटों पर विजय हासिल करने में कामयाबी हासिल की थी। वह मंत्री भी बने लेकिन कुछ दिनों बाद वह भाजपा से बागवत करके अलग हो गये और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। 

वर्तमान समय में वह सपा से मिलकर चुनाव लड़ रहे है। वह अपने को पिछड़ी जातियों का बड़ा नेता बताते हैं। उनकी पूरी सियासत कुम्हार, बिंद, मल्लाह, प्रजापति, कुशवाहा, कोरी केन्द्रित है। वह इस बार खुद जहूराबाद से चुनावी मैदान में हैं, जबकि उनका बेटा प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के शिवपुर से सजातीय नेता अनिल राजभर के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं। एक जाति के नताओं की बड़ी परीक्षा है।

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ओमप्रकाश राजभर जहूराबाद से मैदान में उनके खिलाफ भाजपा के कालीचरण राजभर व सपा में मंत्री रहीं बसपा उम्मींदवार शादाब फातिमा त्रिकोणीय मुकाबले में हैं। सुभासपा इस बार 18 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

भाजपा ने अनुप्रिया पटेल से अपना गठबंधन किया है

कुर्मी वोटों को बिखराव को रोकने के लिए भाजपा ने अनुप्रिया पटेल से अपना गठबंधन किया है। 2017 के चुनाव में वह 11 सीटों पर चुनाव लड़ी थीं जिसमें उन्हें 9 पर कामयाबी मिली थी। इस बार भाजपा के सामने जातीय समीकरण से निपटने के लिए उसने अपना दल को भरपूर सीटें दी हैं। भाजपा इस बार अनुप्रिया को 17 सीटें दी है। उनके सामने इन सीटों को जीतने और अपने को कुर्मी नेता सिद्ध करने की बड़ी चुनौती है।

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खुद को निषादों का बड़ा नेता बताने वाले डाक्टर संजय निषाद की बात करें तो भाजपा ने उन्हे गठबंधन में 16 सीटें दी है। इनमें से ज्यादातर सीटें पूर्वांचल की है। 2018 के उपचुनाव में जब उन्होंने सपा के समर्थन से भाजपा को उसकी मजबूत गोरखपुर सीट पर परास्त कर दिया तो सत्ता खेमे ने उनकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में संजय निषाद के बेटे संत कबीरनगर से भाजपा के टिकट पर लड़े और वर्तमान में सांसद हैं। इस बार उन्हें भी अपने को बड़ा सिद्ध करने के लिए कड़ी परीक्षा गुजरना है।

स्वामी प्रसाद और दारा सिंह की बड़ी परीक्षा होनी है

पिछले चुनाव में भाजपा का साथ पाकर मंत्री स्वामी प्रसाद और दारा सिंह की बड़ी परीक्षा होनी है। दोनों नेता इस बार सपा के टिकट पर मैदान में है। सपा को ताकत देने के लिए अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल पक्ष में खड़ी हो गई हैं। अपना दल कमेरावादी ने सपा से गठबंधन किया है। उनकी बेटी पल्लवी पटेल उपमुख्यमंत्री केशव के खिलाफ ताल ठोंक रही हैं। ऐसे में खास तौर पर छठवें और सातवें चरण में होने वाले चुनाव में ही स्पष्ट हो सकेगा कि वाकई विकास के आगे बढ़कर जाति की राजनीति करने वाले जाति के ये झंडाबरदार कितने असरदार साबित होते हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि पूर्वांचल की ओर बढ़ रहे चुनाव में सभी दलों के सामने चुनौती है। यहां पर जातीय जकड़न मजबूत होती है। ऐसे में सभी दलों ने अपने गठबंधन के दम पर ताकत झोंक रखी।
 

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