महंगाई डायन ने पसारे पैर, 5 राज्यों के चुनावों में भाजपा के लिए बनेगी चुनौती !

इलेक्शन
प्रशांत श्रीवास्तव
Updated Dec 15, 2021 | 18:12 IST

Assembly Elections 2022: आजादी के बाद से यह इतिहास रहा है कि महंगाई की वजह से सरकारें गिरती रही हैं। इसका सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा है।

Inflation Issue in Elections
महंगाई चुनावों में डाल सकती है असर  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • 1967 में कई राज्यों में कांग्रेस को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। उस वक्त रिटेल महंगाई दर औसतन 13 फीसदी थी।
  • 2013 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के समय औसतन महंगाई दर 10.92 फीसदी थी।
  • 1998 में दिल्ली विधान सभा चुनाव में प्याज की बढ़ती कीमतों की वजह से भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था।

नई दिल्ली: राजनीति में चुनाव के समय सत्ताधारी दल कभी भी महंगाई को मुद्दा नहीं बनने देना चाहते हैं। लेकिन अगले 2-3 महीने में 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा महंगाई के साये में ही होंगे। क्योंकि जिस तरह से थोक महंगाई दर 30 साल के उच्चतम स्तर पर है और खुदरा महंगाई दर भी 4.9 फीसदी पर पहुंच गई है, उसने चुनावों में भाजपा के खिलाफ विपक्ष को बड़ा हथियार दे दिया है। और कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया है। उसने नवंबर से ही महंगाई के खिलाफ रैली निकाली शुरू कर दी है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में समाजवादी  पार्टी से लेकर बसपा ने भी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है।

30 साल के उच्च स्तर पर थोक महंगाई

क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी.के.जोशी के अनुसार नवंबर में थोक महंगाई दर 14.23 फीसदी पर पहुंच गई है। जो कि 1991 से अब तक का सबसे उच्चतम स्तर है। महंगाई के इस स्तर पर पहुंचने की प्रमुख वजह खाद्य महंगाई (खाने-पीने की चीजें) दर का अक्टूबर के 3.1 फीसदी की तुलना में बढ़कर 6.7 फीसदी पहुंचना है। इसमें भी फल और सब्जियां -10.3 फीसदी से बढ़कर 7.4 फीसदी पर पहुंच गई हैं। इसी तरह पिछले साल के नवंबर महीने से तुलना की जाय तो पेट्रोलियम उत्पादों (पेट्रोल-डीजल) की कीमतें 81.8 फीसदी बढ़ गई है। 

कंपनियों पर दिखा बढ़ी लागत का असर

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर की तरह नवंबर में भी मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में महंगाई दर उच्च स्तर पर रही। नवंबर में यह 11.9 फीसदी थी, जबकि अक्टूबर में यह 12 फीसदी थी।  जोशी के अनुसार बढ़ती लागत का दबाव दिख रहा है। खास तौर से बेसिक मेटल्स, टेक्सटाइल्स, पेपर उत्पादन और केमिकल्स की कीमतों में बढ़ोतरी जारी है। उनके अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष के शुरूआत से ही थोक महंगाई दर दो अंकों में है। और सितंबर से इसमें और बढ़ोतरी हुई। अहम बात यह है कि बढ़ती लागत का दबाव खाद्य महंगाई पर भी दिख रहा है।

नए साल में भी रहेगी महंगाई

जोशी के अनुसार रिकॉर्ड थोक महंगाई की वजह वजह से रिटेल महंगाई दर ऊंची भी दिख रही है। जिसमें अभी जल्द सुधार होने की उम्मीद नहीं है। नवंबर में यह 4.9 फीसदी रही है। इसका सीधा मतलब है कि उत्पादक धीरे-धीरे बढ़ी लागत का बोझ आम उपभोक्ताओं पर डाल रहे हैं। ऐसे में आगे भी ऐसी ही स्थिति बनी रहेगी।

कांग्रेस है आक्रामक

बढ़ती महंगाई को चुनावी मुद्दा बनाने के लिए कांग्रेस लगातार आक्रामक है। उसने 14 नवंबर से 29 नवंबर तक 15 दिनों का जन जागरण अभियान चलाया। इसके बाद उसने 12 दिसंबर को जयपुर में भी महंगाई के खिलाफ एक रैली निकाली। पार्टी का दावा है कि महंगाई और बेरोजगारी की वजह से पिछले 2 साल में 23 करोड़ लोग गरीब बन गए हैं। यानी गरीबी रेखा के नीचे आ गए हैं।

महंगाई से सरकारें गिरने का रहा है इतिहास

-आजादी के बाद 1967 में कई राज्यों में कांग्रेस को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। उसकी एक बड़ी वजह महंगाई थी। उस समय रिटेल महंगाई दर औसतन 13 फीसदी थी।

-1973 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान महंगाई औसतन 16 फीसदी थी। और कांग्रेस सरकार के खिलाफ जे.पी.आंदोलन की जमीन तैयार करने में अहम फैक्टर थी।  उसके बाद 1975 में आपातकाल लागू हो गया। और 1977 में पहली बार केंद्र में गैर कांग्रेस सरकार बनी थी।

-इसी तरह 2013 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के समय औसतन महंगाई दर 10.92 फीसदी थी। और 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा था।

- 1998 में दिल्ली में प्याज की कीमतों को लेकर कांग्रेस ने भाजपा की सरकार के खिलाफ चुनाव लड़ा था और भाजपा की कराई हार हुई थी।

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