Kanwar Yatra 2022: ये हैं कलियुग के श्रवण कुमार! कांधे पर कांवड़ में मां-बाप सवार, यूं यात्रा का सपना करा रहे साकार

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अभिषेक गुप्ता
अभिषेक गुप्ता | Principal Correspondent
Updated Jul 19, 2022 | 09:34 IST

Kanwar Yatra 2022: 'हर-हर महादेव', 'बोल बम' और 'जय बाबा की' जैसे नारों के साथ वे इस आध्यात्मिक यात्रा में बढ़ रहे हैं।

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कांवड़ यात्री ने अपने मां-बाप की आंखों पर पट्टी बांध दी थी, ताकि वह यात्रा के दौरान बेटे को होने वाली दिक्कत न देख सकें।  |  तस्वीर साभार: ANI
मुख्य बातें
  • रामायण काल में मिलता है श्रवण कुमार का जिक्र, मां-बाप की भक्ति के लिए याद होता है नाम
  • बुढ़ापे में नेत्रहीन अभिभावकों को कंधे पर बांस के सहारे टोकरियों में बिठा कराए थे तीर्थ दर्शन
  • यात्रा के दौरान इस तरह मां-पिता को साथ ले जाते देख लोग कर रहे इन कांवड़ियों की तारीफ

Kanwar Yatra 2022: बदन पर भगवा-लाल कपड़े, नंगे पैरों में बंधी पट्टी और भोले की मस्ती के बीच कांवड़ यात्रा में आपने कई लोगों को देखा होगा। पर इस बार पवित्र धार्मिक यात्रा पर कुछ ऐसे श्रद्धालु भी निकले, जिन्होंने कांधे पर लदे भारी कांवड़ में अपने मां-बाप को भी बिठा रखा था। सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक इनके फोटो और वीडियो आने पर लोग इन्हें कलियुग के श्रवण कुमार बता रहे हैं, जो कांवड़ में अभिभावकों को बिठा उनका इस यात्रा का सपना पूरा करा रहे हैं।

दरअसल, उत्तराखंड के हरिद्वार में एक बेटा अपने माता-पिता को कंधे पर उठाकर यात्रा करता देखा। जिसने भी उसे इस तरह यात्रा करते पाया, तारीफ की। समाचार एजेंसी एएनआई ने सोमावार (18 जुलाई, 2022) को जब इस बाबत उस युवक से बात की तो उन्होंने बताया, "मुझे बहुत खुशी हो रही है। मैंने अपनी माता-पिता की आंखों पर पट्टी इसलिए बांधी हैं, जिससे वह मेरी कठिनाई देखकर परेशान न हों।"

इस बीच, श्रावण मास में माता-पिता को एक दंपति झारखंड के देवघर स्थित बाबा धाम को निकले हैं। मूल रूप से बिहार के जहानाबाद के निवासी चंदन प्रसाद (बेटा) और रीना (बहू) कांधे पर लंबी बहंगी लेकर चल रहे हैं, जिसमें दोनों छोर पर बड़ी सी डलिया में उनके माता-पिता बैठते हैं। बेटा-बहू ने ठाना है कि वे पूरी यात्रा इसी तरह पैदल करेंगे।

'हर-हर महादेव', 'बोल बम' और 'जय बाबा की' जैसे नारों के साथ वे इस आध्यात्मिक यात्रा में बढ़ रहे हैं। कड़ी धूप और उमस के बीच वह लंबा सफर तय कर रहे हैं। समझा जा सकता है कि इस उम्र में उनके मां-बाप पूरी यात्रा पैदल नहीं सकते हैं, इसलिए उन्होंने अभिभावकों को कांवड़ पर साथ लेकर चलने का फैसला लिया। 

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