Rice in Ekadashi: एकादशी को चावल क्यों नहीं खाना चाहिए? जानिए क्या कहती हैं मान्यताएं

Ekadashi : पौराणिक मान्यता के अनुसार एकादशी में ब्रह्महत्या सहित समस्त पापों का शमन करने की शक्ति होती है। इस दिन मन, कर्म और वचन द्वारा किसी भी प्रकार का पाप कर्म करने से बचने का प्रयास करना चाहिए।

Rice and Ekadashi Fast
एकादशी व्रत पर न बनाएं चावल 
मुख्य बातें
  • इस दिन चावल खाकर भूल गए सर्प योनी में जन्म मिलेगा
  • शरीर मे बीमारियां उतपन्न होती है
  • सात्विक भोजन करना चाहिए

Do Not Cook Rice in Ekadashi:  सनातन धर्म में यूं तो हर व्रत का अपना महत्व है। लेकिन एकादशी का विशेष स्थान है। हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में दो एकादशी पड़ती हैं। और इस व्रत को करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ऐसी मान्यताएं है कि चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं इसीलिए व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं। एक और पौराणिक कथा है कि माता शक्ति के क्रोध से भागते भागते भयभीत महर्षि मेधा ने अपने योग बल से शरीर छोड़ दिया और उनकी मेधा पृथ्वी में समा गई थी। वही मेधा जौ और चावल के रूप में उत्पन्न हुईं।

चावल खाने से परहेज क्यों करना चाहिए

एकादशी से जुड़े प्रसंग से समझिए एकादशी औऱ चावल की दूरी को ऐसा माना गया है कि यह घटना एकादशी को घटी थी। यह जौ और चावल महर्षि की ही मेधा शक्ति है। जो जीव हैं। इस दिन चावल खाना महर्षि मेधा के शरीर के छोटे छोटे मांस के टुकड़े खाने जैसा माना गया है। इस लिए इस दिन से जौ और चावल को जीवधारी माना गया है।

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चावल का जल से क्या सम्बन्ध है

जहां चावल का संबंध जल से है। वहीं जल का संबंध चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है। मन ही जीवात्मा का चित्त स्थिर-अस्थिर करता है। मन व श्वेत रंग का स्वामी चंद्रमा ही हैं। जो स्वयं जल रस और भावना के कारक हैं। इसीलिए जलतत्त्व राशि के व्यक्ति भावना प्रधान होते हैं। जो अपने जीवन में अक्सर धोखा खाते हैं।

चावल क्यों नहीं खाना चाहिए

वर्ष की चौबीसों एकादशियों में चावल न खाने की सलाह दी जाती है। ऐसा माना गया है कि इस दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है। किन्तु द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है। ऐसी बहुत सारी कथाएं इसके विषय मे तमाम धार्मिक पुस्तकों में लिखित है।

मिट्टी की जरूरत नहीं चावल के लिए

आज भी जौ और चावल को उत्पन्न होने के लिए मिट्टी की भी जरूरत नहीं पड़ती। केवल जल का छींटा मारने से ही ये अंकुरित हो जाते हैं। इनको जीव रूप मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है। ताकि सात्विक रूप से विष्णु स्वरुप एकादशी का व्रत संपन्न हो सके।

इस तरह से हुई चावल की उत्पति

ऐसा कहा जाता है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को खुश करने और उनकी कृपा के लिए रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। इतना ही नहीं इस दिन व्रत और दान पुण्य आदि से व्यक्ति को मृत्यु के बाद भी मोक्ष प्राप्त होता है। एकादशी के दिन चावल खाने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद अगला जन्म जीव का मिलता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु का ध्यान और पूजन करना चाहिए। इस दिन व्रत जप तप और दान पुण्य करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। एकादशी पर सात्विक भोजन करना चाहिए।

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