नई दिल्ली. भारत त्योहारों का देश हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं में एकादशी का खास महत्व है। एकादशी हर महीने में दो बार- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। इस महीने राम नवमी के बाद अब चार अप्रैल को कामदा एकादशी मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है।
चार अप्रैल को होने वाली कामदा एकादशी हिंदू संवत्सर की पहली एकादशी है। इस एकादशी को मोक्ष देने वाली एकादशी माना जाता है। कामदा एकादशी को फलदा एकादशी भी कहा जाता है। इसमें व्रत रखने से प्रेत योनि से भी मुक्ति मिल सकती है।
कामदा एकादशी की कहानी पौराणिक काल से शुरू होती है। पौराणिक काल में भोगीपुर नाम का नगर था। इसमें राजा पुण्डरीक राज करता था। भोगीपुर में कई अप्सराएं, किन्नर, गन्धर्व रहा करते थे। इस शहर में ललित और ललित नाम के स्त्री-पुरुष निवास करते थे। दोनों में काफी प्यार था।
मिला राक्षस योनी का श्राप
राजा पुणडरीक की सभा में गंधर्वों के साथ ललित भी गाना गा रहे थे। गाना गाते हुए हुए ललित को प्रेमिका ललिता का ध्यान आता है।ललिता की याद के कारण उसका स्वर भंग हो गया। ललित के मन की बात को कार्कोट नाग ने जानकर राजा को बता दिया। राजा ने उसे राक्षस बनने और कच्चा मांस खाने की सजा दे डाली।
पति के राक्षस बनने की बात जब ललिता को पता चला तो उसे काफी दुख हुआ और वह अपने पति के उद्धार का उपाय सोचने लगी। वह अपने पति के साथ जंगल में तकलीफ भोगने लगी। ललिता एक दिन विन्ध्याचल पर्वत पर ललिता श्रृंगी ऋषि के आश्रम में पहुंच गई। उन्होंने जाकर ऋषि से प्रार्थना करने लगी।
राक्षस योनि से मिलती है मुक्ति
श्रृंगी ऋषि ने उपाय बताते हुए कहा कि- कामदा एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य को सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। यदि तू भी कामदा एकादशी का व्रत रखेगी तो तुम्हारा पति शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा।
ललिता ने कामदा एकादशी पर उसका विधि-विधान से व्रत रखा। कामदा एकादशी का फल मिलते ही ललित राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने गंधर्व स्वरूप में लौट आया था। इसके बाद ललित और ललिता स्वर्गलोक को प्रस्तान कर गए।
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