यहां जलती चिता की राख से खेली गई होली, 350 साल से निभाई जा रही है परंपरा, जानें क्या है कारण?

Rangbhari Ekadashi: भारत की होली वैसे तो दुनियाभर में फेमस है। लेकिन, कुछ जगहों की होली देखने और खेलने के लिए काफी दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। इस साल भी बनारस में जलती चिता की राख से होली खेलने के लिए काफी लोग पहुंचे थे।

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रंगभरी एकादशी पर राखों की होली  |  तस्वीर साभार: Twitter
मुख्य बातें
  • भारत की होली दुनियाभर में है फेमस
  • वृंदावन, मथुरा और बनारस की होली देखने के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं
  • बनारस में जलती चिता की राख से लोग होली खेलते हैं

दुनियाभर में होली का त्योहार काफी धूम-धाम से मनाया जाता है। वहीं, भारत में कई जगहों पर लोग इस पर्व को अलग-अलग अंदाज में सेलिब्रेट करते हैं। कुछ जगहों की होली तो पूरी दुनिया में फेमस है। मथुरा, वृंदावन की होली देखने के लिए कई जगहों से लोग पहुंचते हैं और उसका आनंद उठाते हैं। इस लिस्ट में काशी की होली भी शामिल है। क्योंकि, यहां की होली रंगभरी एकादशी से शुरू हो जाती है। सबसे बड़ी बात ये है कि यहां जलती चिता की राख से होली खेली जाती है। तो आइए जानते हैं इस होली के बारे में कुछ दिलचस्प बातें...

बनारस की होली भी दुनियाभर में फेमस है। इसकी शुरुआत रंगभरी एकादशी से हो जाती है और इस देखने और खेलने के लिए काफी दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। रंगभरी एकादशी पर लोग भगवान भोलेनाथ के साथ होली खेलते हैं। लेकिन, होली खेलने का अंदाज काफी अलग होता है। क्योंकि, यहां होली रंगों से नहीं बल्कि चिता की राख से खेली जाती है। दरअसल,  महाशमशान हरिश्चंद्र घाट पर 24 घंटे चिताएं जलती रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं पड़ती है। रंगभरी एकादशी पर लोग यहां चिता की राख से होली खेलते हैं। 14 मार्च को यहां रंगों के साथ लोगों ने चिता की राख से होली खेली। डमरू, मृदंग, घंटे और साउंड सिस्टम के बीच लोग जमकर होली खेलते नजर आए। इस दौरान लोगों का उत्साह देखते बन रहा था। नजारा देखकर ऐसा लगता है जैसे लोग किसी और दुनिया में पहुंच गए हैं। 

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ये है मान्यता

गौरतलब है कि यह होली पिछले 350 साल से खेली जा रही है। हालांकि, इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान भोलेनाथ मां पार्वती से शादी करने के बाद काशी पहुंचे थे। यहां पर उन्होंने अपने गणों के साथ जमकर होली खेली थी। लेकिन, पिशाच, भूत-प्रेत, अघोरियों के साथ वो होली नहीं खेल पाए थे। लिहाजा, रंगभरी एकादशी के दिन उन्होंने चिता की राख से होली खेली थी। इसी दिन से भारत में होली की शुरुआत में मानी जाती है। 

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