नई दिल्ली। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान बातें तो बड़ी बड़ी करता है। लेकिन जमीन पर कुछ ठोस दिखाई नहीं देता है। हाल ही में फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स की बैठक में यह उम्मीद थी कि काली करतूत की वजह से पाकिस्तान काली सूची में होगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। इस दफा भी उसके सदाबहार दोस्त चीन ने मदद की।
चीनी विदेश मंत्रालय के ऑफिसियल ट्विटर हैंडल से पाकिस्तान की तारीफ की गई है कि किस तरह उसने आतंकी संगठनों के वित्तीय स्रोतों पर लगाम कसी है। पाकिस्तान के इस कार्रवाई को पेरिस में एफएटीएफ की बैठक में शामिल अधिकांश देशों ने समर्थन भी किया है। चीन का स्पष्ट मानना है कि पाकिस्तान की आतंकी संगठनों के खिलाफ एक्शन को संदेह के नजर से नहीं देखा जाना चाहिए। इसके उलट आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दूसरे देशों को पाकिस्तान की मदद के लिए आगे आना चाहिए।
अगर चीनी विदेश मंत्रालय के ट्वीट को देखें तो साफ है कि उसकी तरफ से FATF की बैठक में पाकिस्तान की मदद की गई। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब चीन ने इमरान सरकार की मदद की हो। पाकिस्तान को आतंक का अड्डा साबित करने के संदर्भ में भारत की तरफ से टनों सबूत मुहैया कराए गए। लेकिन पाकिस्तान के आतंकी अड्डों की व्याख्या चीन अपनी तरह से करता है। ये बात अलग है कि दुनिया के दूसरे मुल्क मानते हैं कि पाक की जमीन पर आतंक की फैक्ट्रियां चल रही हैं और क्या कुछ हो रहा है।
इन सबके बीच फाइनेंसियल एक्शन टॉस्क फोर्स ने पाकिस्तान को जून 2020 का समय दिया है कि वो आतंकी संगठनों के वित्त पोषण के खिलाफ पुख्ता कार्रवाई करे। अगर वो ऐसा नहीं करता है तो उसे और कड़ी कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। पाकिस्तान ने अब तक जो कदम उठाए हैं वो पर्याप्त नहीं हैं।
फाइनेंसियल एक्शन टास्क फोर्स ने जैश-ए-मोहम्मद लश्कर और दूसरे आतंकी आर्थिक मदद पर रोक लगाने में नाकाम रहने पर पाकिस्तान को ‘ग्रे’ सूची में रखने का अक्टूबर में फैसला किया था। सबसे बड़ी बात है कि अभी भारत के लिए उम्मीद की किरण यह है कि अगर अप्रैल तक पाकिस्तान ग्रे सूची से बाहर नहीं निकलता है तो उसके खिलाफ और प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। जिस तरह से ईरान काली सूची वाले देशों में शामिल है वैसे ही इमरान पाकिस्तान को नहीं बचा पाएंगे।